ऐन, प्रारंभिक परीक्षा के लिए अपने ओरल सर्जन से मिल रही थी — जो एक चिकित्सक थे जिसे वह कई वर्षों से जानती थी। उसने ऐन से पूछा, “क्या कोई प्रश्न पूछना है?” उसने कहा “हाँ“ क्या आप पिछले रविवार को चर्च गए थे?” उसका सवाल आलोचनात्मक नहीं था, उसने केवल विश्वास के बारे में बातचीत शुरू करने के लिए यह पूछा था।

सर्जन के पास चर्च का कोई सकारात्मक अनुभव नहीं था जब वह बड़ा हो रहा था और वह फिर कभी लौट के वहां गया नहीं । ऐन के प्रश्न और उनकी बातचीत के कारण, उसने अपने जीवन में यीशु और चर्च की भूमिका पर पुनर्विचार किया। जब ऐन ने बाद में उसे एक बाइबल दी जिस पर उसका नाम लिखा हुआ था तो बाइबल लेते समय उसकी आंखों में आंसू आ गये। 

कभी कभी हम विरोध से डरते हैं या अपने विश्वास को साझा करने में बहुत आक्रामक नहीं दिखना चाहते। लेकिन यीशु के बारे में गवाही देने का एक अच्छा तरीका हो सकता है कि —प्रश्न पूछें।

एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो परमेश्वर था, और सब कुछ जानता था, यीशु ने निश्चित रूप से बहुत सारे प्रश्न पूछे। जबकि हम उसके उद्देश्यों को नहीं जानते हैं, यह स्पष्ट है कि उसके प्रश्नों ने दूसरों को प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्य अन्द्रियास  से पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” (यूहन्ना 1:38)। उसने अंधे बरतिमाई से पूछा“ तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूं?” (मरकुस 10:51; लूका 18:41)। उसने लकवे के रोगी से पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” (यूहन्ना 5:6)। यीशु के प्रारंभिक प्रश्न के बाद इनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए बदलाव हुआ।

क्या कोई ऐसा है जिससे आप विश्वास के मामलों के बारे में संपर्क करना चाहते हैं? परमेश्वर से मांगें कि वह आपको पूछने के लिए सही प्रश्न दे।