एक प्रिय मित्र की मृत्यु के कुछ सप्ताह बाद, मैंने उसकी माँ से बात की। मैं उनसे यह पूछने में झिझक रहा था कि वह कैसी थी क्योंकि मुझे लगा कि यह एक अनुचित प्रश्न था; वह शोक मना रही थीI लेकिन अपनी अनिच्छा को हटाते हुए मैंने बस पूछ ही लिया कि वह कैसी स्थिति में है। उनका उत्तर था: “सुनो, मैं आनंद चुनती हूँ।”
उस दिन जब मैं अपने जीवन में कुछ अप्रिय परिस्थितियों से आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहा था, तो उनके वह शब्द मेरे लिए सहायक साबित हुए। और उनके शब्दों ने मुझे व्यवस्थाविवरण के अंत में इस्राएलियों को दिए गए मूसा के आदेश की भी याद दिला दी। मूसा की मृत्यु और वादा किए गए देश में इस्राएलियों के प्रवेश से ठीक पहले, परमेश्वर चाहता था कि उन्हें पता चले कि उनके पास एक चुनाव (विकल्प) है। मूसा ने कहा, “मैंने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है। इसलिए तू जीवन ही को अपना ले” (व्यवस्थाविवरण 30:19)। वे परमेश्वर के नियमों का पालन कर सकते थे और अच्छी तरह से जीवन जी सकते थे, या वे उससे दूर हो सकते थे और “मृत्यु और विनाश” के परिणामों के साथ जीवन जी सकते थे (पद 15)।
किस प्रकार जीवन जीना है हमें इसका भी चुनाव करना होगा। हम अपने जीवन के लिए परमेश्वर के वादों पर विश्वास और भरोसा करके आनंद चुन सकते हैं। या फिर हम अपनी जीवन यात्रा के नकारात्मक और कठिन हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करना चुन सकते हैं, जिससे वे हमारी खुशियाँ छीन सकें। ऐसा करने के लिये पवित्र आत्मा से मदद के लिए उस पर निर्भर रहने और अभ्यास की आवश्यकता होगी, लेकिन हम आनंद को चुन सकते हैं – यह जानते हुए कि “जो लोग परमेश्वर से प्रेम करतें हैं उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है ” (रोमियों 8:28)।
आज अपनी परिस्थितियों के बावजूद आप आनंद को कैसे चुन सकते हैं? आनंद को चुनना किस प्रकार जीवन को चुनने के समान होता है जैसा कि परमेश्वर ने इस्राएलियों को बताया था?
आनंद देने वाले प्यारे परमेश्वर, कृपया मुझे आज आपका अनुसरण करने और आप पर विश्वास करने का चुनाव करने में मेरी मदद करें।