मेरी माँ का चमकदार लाल क्रूस कैंसर देखभाल केंद्र में उनके बिस्तर के बगल में टंगा हुआ होना चाहिए था। और मुझे उनके निर्धारित उपचारों के बीच छुट्टियों में मिलने की तैयारी करना चाहिए था। क्रिसमस के लिए मैं बस अपनी माँ के साथ एक और दिन चाहती थी । इसके बजाय, मैं घर पर थी . . .  उसके क्रूस को एक नकली पेड़ पर टांगते हुए।

जब मेरे बेटे जेवियर ने लाइट जलायी तो मैंने फुसफुसाकर कहा, “धन्यवाद।” उसने कहा “यू आर वेलकम।” मेरे बेटे को नहीं पता था कि टिमटिमाते बल्बों का उपयोग करके आँखों को आशा की चिरस्थायी रोशनी—यीशु—की ओर मोड़ने के लिए मैं परमेश्वर को धन्यवाद दे रही थी ।

भजन 42 के लेखक ने परमेश्वर के प्रति अपनी वास्तविक भावनाओं को व्यक्त किया (पद.1-4)। पाठकों को प्रोत्साहित करने से पहले उन्होंने अपने “उदास” और “परेशान” आत्मा को स्वीकार किया : “परमेश्‍वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं . . . फिर उसका धन्यवाद करूँगा।” (पद.5)। हालाँकि वह दुःख और पीड़ा की लहरों से उबर गया था, भजनकार का आशा परमेश्वर के अतीत विश्वासयोग्यता की याद से चमक उठा (पद.6-10)। उसने अपनी शंकाओं पर प्रश्न करते हुए और अपने परिष्कृत विश्वास के लचीलेपन की पुष्टि करते हुए समाप्त किया : हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्‍वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्‍वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा (पद.11)।

हममें से कई लोगों के लिए, क्रिसमस का मौसम खुशी और दुःख दोनों का अनुभव कराता है। शुक्र है, इन मिश्रित भावनाओं को भी आशा की सच्ची रोशनी—यीशु के वादों के द्वारा समेटा और मुक्त किया जा सकता है।