सही ध्यान केन्द्रित करना
हम खा को एक वर्ष से अधिक समय से जानते हैं। वह चर्च के हमारे उस छोटे समूह का हिस्सा था जो परमेश्वर के बारे में हम जो सीख रहे थे उस पर चर्चा करने के लिए साप्ताहिक बैठक करते थे। एक शाम हमारी नियमित बैठक के दौरान, fd उन्होंनेबताया कि उन्होंने ओलंपिक में भाग लिया था। उनका यह बताना इतना अनौपचारिक था कि मुझे इसका ध्यान ही नहीं रहा। और देखो, मुझे पता चला कि मैं एक ओलंपियन को जानता हूं जिन्होंने कांस्य पदक मैच में भाग लिया था! मैं समझ नहीं पाया कि उन्होंने पहले इसका उल्लेख नहीं किया था, लेकिन खा के लिए, जबकि उनकी एथलेटिक उपलब्धि उनकी कहानी का एक विशेष हिस्सा थी, अधिक महत्वपूर्ण चीजें उनकी पहचान के केंद्र में थीं: उनका परिवार, उनका समुदाय और उनका विश्वास।
लूका 10:1-23 की कहानी बताती है कि हमारी पहचान के केंद्र में क्या होना चाहिए। जब बहत्तर लोग जिन्हें यीशु ने दूसरों को परमेश्वर के राज्य के बारे में बताने के लिए भेजा था, अपनी यात्रा से लौट आए, तो उन्होंने उसे बताया कि "यहां तक किदुष्टात्मा भी आपके नाम पर हमारे अधीन हो जाते हैं" (पद 17)। जबकि यीशु ने स्वीकार किया कि उसने उन्हें जबरदस्त शक्ति और सुरक्षा से समर्थ किया है, उन्होंने कहा कि वे गलत चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके आनंदित होने का कारण यह होना चाहिए क्योंकि उनके "नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं" (पद20)।
परमेश्वर ने हमें जो भी उपलब्धियाँ या क्षमताएँ प्रदान की हैं, हमारे आनन्दित होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यदि हमने स्वयं को यीशु को सौंपा है, तो हमारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं, और हम अपने जीवन में उनकी दैनिक उपस्थिति का आनंद लेते हैं।
बूँद बूँद करके
सोलहवीं सदी की विश्वासी अविला की टेरेसा लिखती हैं, "हर चीज़ मेंहम परमेश्वर की सेवा के सुखद तरीके तलाशते हैं।" वह उन कई तरीकों पर हृदयस्पर्शी ढंग से विचार करती है जिनसे हम परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की तुलना में आसान, अधिक "सुखद" तरीकों के माध्यम से नियंत्रण में रहना चाहते हैं। हम धीरे-धीरे, अस्थायी रूप से, और यहां तक कि अनिच्छा से अपने आप में उस पर भरोसा करने लगते हैं। और इसलिए, टेरेसा कबूल करती हैं, "यद्यपि हम आपके लिए अपना जीवन एक समय में थोड़ा सा मापते हैं, बूंद-बूंद करके अपने उपहार प्राप्त करने के लिएतोहमें संतुष्ट रहना चाहिए, जब तक हम अपना जीवन पूरी तरह से आपको समर्पित नहीं कर देते।”
मनुष्य के रूप में, हममें से कई लोगों में विश्वास स्वाभाविक रूप से नहीं आता है। इसलिए यदि परमेश्वर के अनुग्रह और प्रेम का अनुभव उस पर भरोसा करने और उसे प्राप्त करने की हमारी क्षमता पर निर्भर होता, तो हम मुसीबत में पड़ जाते!
लेकिन, जैसा कि हम 1 यूहन्ना 4 में पढ़ते हैं, हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम पहले आता है (पद 19)। इससे पहले कि हम उससे प्रेम कर पाते, उसने हमसे बहुत पहले प्रेम किया, इतना कि वह हमारे लिए अपने बेटे का बलिदान देने को तैयार था।"यह प्रेम है," यूहन्ना आश्चर्य और कृतज्ञता में लिखते हैं (पद10)।
धीरे-धीरे, कोमलता से, थोड़ा-थोड़ा करके, परमेश्वर अपने प्यार को पाने के लिए हमारे दिलों को ठीक (चंगा)करते हैं - बूंद-बूंद करके, परमेश्वर काअनुग्रहहमें अपने भय को त्यागने में मदद करती है (पद18)। बूँद-बूँद करके, परमेश्वर का अनुग्रह हमारे दिलों तक पहुँचती है जब तक कि हम स्वयं उनकी पर्याप्त सुंदरता और प्रेम की वर्षा का अनुभव नहीं कर लेते।
परमेश्वर को पुकारना
डॉ. रसेल मूर ने अपनी पुस्तक एडॉप्टेड फॉर लाइफ में एक बच्चे को गोद लेने के लिए अपने परिवार की अनाथालय यात्रा का वर्णन किया है। जैसे ही वे नर्सरी में दाखिल हुए, सन्नाटा चौंका देने वाला था। पालने में रहने वाले बच्चे कभी नहीं रोते थे, और ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि उन्हें कभी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं होती थी, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने सीख लिया था कि कोई भी इतनी परवाह नहीं करता कि उनके रोने का जवाब दे।
उन शब्दों को पढ़कर मेरा दिल दुख गया। मुझे अनगिनत रातें याद हैं जब हमारे बच्चे छोटे थे। मैं और मेरी पत्नी गहरी नींद मेंसोये होते थे तभी उनके रोने की आवाज से हमारी नींद खुल जाती: "पिताजी, मैं बीमार हूँ!" या "माँ, मुझे डर लग रहा है!" हममें से कोई तुरंत उठता और उन्हें आराम देने और उनकी देखभाल करने की पूरी कोशिश करने के लिए उनके शयनकक्ष में जाता था। अपने बच्चों के प्रति हमारे प्यार ने उन्हें हमारी मदद के लिए पुकारने का कारण दिया।
भजनों की एक बड़ी संख्या परमेश्वर के लिए पुकार या विलाप है। इस्राएल उनके साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर अपना विलाप उनके पास लाये । ये वे लोग थे जिन्हें परमेश्वर ने अपना "पहिलौठा (जेठा) " कहा था (निर्गमन 4:22) और वे अपने पिता से परिस्थिति के अनुसार कार्य करने के लिए कह रहे थे। भजनसंहिता 25 में ऐसा ईमानदार विश्वास देखा जाता है:“ हे यहोवा मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; क्योंकि मैं अकेला और दीन हूं।” (पद 16-17)। जो बच्चे देखभाल करने वाले के प्यार के प्रति आश्वस्त होते हैं वे रोते हैं। यीशु में विश्वासियों के रूप में—परमेश्वर की संतानहोने के नाते —उसने हमें उसे पुकारने का कारण दिया है। वह अपने महान प्रेम के कारण सुनता है और परवाह करता है।
परमेश्वर का सुरक्षात्मक प्रेम
एक गर्मी की रात, हमारे घर के पास पक्षी अचानक गड़बड़ीऔर शोर वाली आवाजें करने लगे। उनकी चीख.पुकार तेज हो गई जब गानेवाले पक्षियों ने पेड़ों से भेदने वाली आवाजें करीं । आख़िरकार हमें एहसास हुआ कि ऐसा क्यों हो रहा है। जैसे ही सूरज डूबा, एक बड़े बाज़ ने पेड़ की चोटी से झपट्टा मारा, जिससे पक्षी चीखते हुए तितर-बितर हो गए, और उड़ते हुएउन्होंने खतरे की चेतावनी भी दी।हमारे जीवन में, आत्मिक चेतावनियाँ पूरे पवित्रशास्त्र में सुनी जा सकती हैं - उदाहरण के लिए, झूठी शिक्षाओं के प्रति चेतावनियाँ। हमें संदेह हो सकता है कि हम यही सुन रहे हैं। हालाँकि, हमारे प्रति अपने प्रेम के कारण, हमारे स्वर्गीय पिता हमें ऐसे आत्मिक खतरों को स्पष्ट करने के लिए पवित्रशास्त्र की स्पष्टता प्रदान करते हैं।
यीशु ने सिखाया,"झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं।"(मत्ती7:15)। उसने आगे कहा, “उनके फल से तुम उन्हें पहचान लोगे। . . . हर अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है, परन्तु बुरा पेड़ बुरा फल लाता है।”फिरउसनेहमेंचेतावनीदी, "उनके फल से तुम उन्हें पहचानोगे" (पद16-17; 20)।
नीतिवचन 22:3 हमें याद दिलाता है, “चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़कर दण्ड भोगते हैं।” ऐसी चेतावनियों में परमेश्वरका सुरक्षात्मक प्रेम निहित है, जो हमारे लिए उनके शब्दों में प्रकट होता है।
जैसे पक्षियों ने एक-दूसरे को शारीरिक खतरे के बारे में चेतावनी दी, क्या हम आत्मिक खतरे से बचने औरपरमेश्वर की शरण में जाने के लिए बाइबल की चेतावनियों पर ध्यान दे सकते हैं।