“मेरा विश्वास कहाँ है?—यहाँ गहराई में भी खालीपन और अँधेरे के सिवा कुछ भी नहीं है . . . यदि ईश्वर है तो कृपया मुझे क्षमा करें l” 

उन शब्दों की लेखिका आपको आश्चर्यचकित कर सकती है : मदर टेरेसा l भारत के कलकत्ता में गरीबों की एक अथक सेविका के रूप में प्रिय और प्रसिद्ध, मदर टेरेसा ने पांच दशकों तक चुपचाप अपने विश्वास के लिए एक हताश युद्ध छेड़ा l 1997 में उनकी मृत्यु के बाद, वह संघर्ष तब सामने आया जब उनकी पत्रिका के अंश कम बी माई लाईट(Come Be My Light) पुस्तक में प्रकाशित हुए l 

हम ईश्वर की अनुपस्थिति के अपने संदेहों या भावनाओं के साथ क्या करते हैं? वे क्षण कुछ विश्वासियों को दूसरों की तुलना में अधिक परेशान कर सकते हैं l लेकिन यीशु में कई वफादार विश्वासियों को, अपने जीवन में किसी बिंदु पर, ऐसे संदेह के क्षणों या अवसरों का अनुभव हो सकता है l 

मैं आभारी हूँ कि पवित्रशास्त्र ने हमें एक सुन्दर, असंगत/दोअर्थी प्रार्थना दी है जो विश्वास और उसकी कमी दोनों को बताती है l मरकुस 9 में, यीशु का सामना एक ऐसे पिता से होता है जिसका बेटा बचपन से ही दुष्टात्मा पीड़ित था (पद.21) l जब यीशु ने कहा कि मनुष्य में विश्वास होना चाहिए (“विश्वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है,” पद.23), तो उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अविश्वास का उपाय कर” (पद.24) l 

वह ईमानदार, स्नेहपूर्ण विनती उनको आमंत्रित करती है जो संदेह के साथ संघर्ष करते हुए इसे ईश्वर को सौंपते हैं, विश्वास के साथ कि वह हमारे विश्वास को मजबूत कर सकता है और उन सबसे गहरी, अँधेरी घाटियों में भी हमें मजबूती से थामे रख सकता है, जिनसे हम कभी गुजरे होंगे l