Month: अगस्त 2024

और अधिक यीशु की तरह दिखाई दें

ईश्वर ने बड़े भूरे उल्लू(great gray own) को छिपने में निपूर्ण होने के लिए बनाया है l इसके सिल्वर-ग्रे पंखों में रंग का एक सामूहिक नमूना होता है जो इसे पेड़ों पर बैठने पर छिपने में घुलने-मिलने की अनुमति देता है l जब उल्लू अदृश्य रहना चाहते हैं, तो वे सादे दृश्य में छिप जाते हैं, अपने पंखों वाला छिपने की सहायता से अपने वातावरण में मिल जाते हैं l 

परमेश्वर के लोग अक्सर बड़े भूरे उल्लू की तरह होते हैं l हम आसानी से संसार में घुलमिल सकते हैं और जानबूझकर या अनजाने में मसीह में विश्वासियों के रूप में पहचाने नहीं जा सकते l यीशु ने अपने शिष्यों के लिए प्रार्थना की—जिन्हें पिता ने उसे “जगत में से उसे दिया था,” जिन्होंने उसके वचन को “मान लिया था” (यूहन्ना 17:6) l परमेश्वर पुत्र ने पिता परमेश्वर से उसके जाने के बाद उनकी रक्षा करने और उन्हें पवित्रता और निरंतर आनंद में रहने के लिए सशक्त बनाने के लिए कहा (पद.7-13) l उसने कहा, “मैं यह विनती नहीं करता कि तू उन्हें जगत से उठा ले; परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख” (पद.15) l यीशु जानता था कि उसके शिष्यों को पवित्र बनाने और अलग करने की ज़रूरत है ताकि वे उस उद्देश्य को पूरा कर सकें जिसे पूरा करने के लिए उसने उन्हें भेजा था (पद.16-19) l 

पवित्र आत्मा हमें लालच से निकालकर संसार में घुलने-मिलने वाले छद्मवेशों का स्वामी(masters of camouflage) बनने में मदद कर सकता है l जब हम प्रतिदिन उसके प्रति समर्पण करते है, तो हम यीशु की तरह अधिक दिख सकते हैं l जब हम एकता और प्रेम में रहते हैं, वह अपनी सारी महिमा में दूसरों को मसीह की ओर आकर्षित करेगा l

निर्जन/वीरान स्थान

जब मैं एक युवा विश्वासी था, मैंने सोचा था कि “पहाड़ की चोटी” के अनुभव ही वह जगह हैं जहां मैं यीशु से मिलूँगा l लेकिन वे ऊँचाइयाँ शायद ही कभी टिकीं या विकास की ओर ले गयीं l लेखिका लीना अबुजामरा का कहना है कि यह निर्जन/वीरान स्थानों में है जहाँ हम परमेश्वर से मिलते हैं और उन्नति करते हैं l अपने बाइबल अध्ययन थ्रू द डेजर्ट(Through the Desert) में वह लिखती है, “परमेश्वर का उद्देश्य हमें मजबूत बनाने के लिए हमारे जीवन में निर्जन/वीरान स्थानों का उपयोग करना है l” वह आगे कहती है, “परमेश्वर की भलाई आपके दर्द के बीच में प्राप्त करने के लिए होती है, दर्द की अनुपस्थिति से साबित नहीं होती l”

दुःख, हानि और दर्द के कठिन स्थानों में परमेश्वर हमें अपने विश्वास में बढ़ने और उसके करीब आने में मदद करते हैं l जैसा कि लीना ने सीखा, “निर्जन/वीरान स्थान परमेश्वर की योजना में कोई चूक नहीं है, बल्कि[हमारे] विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है l”

परमेश्वर ने कई पुराने नियम के कुलपतियों को निर्जन/वीरान स्थान में पहुँचाया l अब्राहम, इसहाक और याकूब सभी के पास बियाबान/जंगल के अनुभव थे l यह जंगल में ही था कि परमेश्वर ने मूसा के दिल को तैयार किया और उसे अपने लोगों को गुलामी से बाहर निकालने के लिए बुलाया (निर्गमन 3:1-2, 9-10) l और यह निर्जन/वीरान स्थान था कि परमेश्वर ने अपनी मदद और मार्गदर्शन के साथ चालीस वर्षों तक “[इस्राएलियों की] देखभाल करता रहा” (व्यवस्थाविवरण 2:7) l 

परमेश्वर निर्जन/वीरान स्थान में हर कदम पर मूसा और इस्राएलियों के साथ था, और वह हमारे और आपके साथ है l निर्जन/वीरान स्थान में हम परमेश्वर पर भरोसा करना सीखते हैं l वहाँ वह हमसे मिलता है—और वहाँ हम उन्नति करते हैं l 

अन्तरिक्ष की दौड़

29 जून, 1955 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने अन्तरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की l इसके तुरंत बाद, सोवियत संघ ने भी ऐसा ही करने की अपनी योजना घोषित की l अन्तरिक्ष की दौड़ आरम्भ हो गयी थी l सोवियत संग पहला उपग्रह (स्पुतनिक/Sputnik) प्रक्षेपित करने वाला था जब युरी गगारिन(Yuri Gagarin) एक बार हमारे गृह की परिक्रमा की थी यह दौड़ तब तक जारी रही, जब तक कि 20 जुलाई, 1969 को चंद्रमा की सतह पर नील आर्मस्ट्रांग की “मानव जाति के लिए विशाल छलांग/giant leap for mankind” ने अनौपचारिक रूप से प्रतियोगिता को समाप्त नहीं कर दिया l जल्द ही सहयोग का मौसम आरम्भ हुआ, जिससे अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन का निर्माण हुआ l 

कभी-कभी प्रतिस्पर्धा स्वस्थ्य हो सकती है, जो हमें उन चीज़ों को हासिल करने के लिए प्रेरित करती है जो अन्यथा हम प्रयास नहीं कर पाते l हालाँकि, अन्य समय में, प्रत्स्पर्धा विनाशकारी होती है l कुरिन्थुस के चर्च में यह एक समस्या थी क्योंकि विभिन्न समूह विभिन्न चर्च अगुओं को अपनी आशा की किरण के रूप में देखते थे l पौलुस ने इसे संबोधित करने का प्रयास किया जब उसने लिखा, “न तो लगानेवाला कुछ है और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर ही सब कुछ है जो बढ़ानेवाला है” (1 कुरिन्थियों 3:7), जिससे यह निष्कर्ष निकलता है, “क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं”(पद.9) l

सहकर्मी—प्रतिस्पर्धी/Co-workers—not competitors नहीं l और न केवल एक दूसरे के साथ बल्कि स्वयं परमेश्वर के साथ भी! उनके अधिकार प्रदान करना और उनके मार्गदर्शन के द्वारा, हम अपने सम्मान के बजाय उनके सम्मान के लिए, यीशु के सन्देश को आगे बढ़ाने के लिए साथी कार्यकर्ताओं के रूप में एक साथ सेवा कर सकते हैं l 

नये सिरे से चलना

जब स्कूल के शीर्ष छात्रों को शैक्षिक उपलब्धि के लिए श्रेष्ठता प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ तो तालियाँ गूंज उठीं l लेकिन कार्यक्रम समाप्त नहीं हुआ था l अगले पुरस्कार में उन छात्रों को सम्मानित किया गया जो स्कूल के “सर्वश्रेष्ठ” नहीं थे, बल्कि उनमें सबसे अधिक सुधार हुआ था l उन्होंने असफल ग्रेड बढ़ाने, विघटनकारी व्यवहार को सुधारने, या बेहतर उपस्थिति के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए कड़ी मेहनत की थी l उनके माता-पिता मुस्कराए और तालियाँ बजायीं, यह स्वीकार करते हुए कि उनके बच्चे उच्च पथ की ओर बढ़ रहे हैं—अपनी पिछली कमियों पर नहीं बल्कि एक नए रास्ते पर चल रहे हैं l 

हृदय को छू लेने वाला दृश्य इस बात की एक छोटी सी तस्वीर पेश करता है कि हमारे स्वर्गिक पिता हमें कैसे देखते हैं—हमारे पुराने जीवन में नहीं बल्कि अब, मसीह में, अपने बच्चों के रूप में l यूहन्ना ने लिखा, “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया” (यूहन्ना 1:12) l 

कितना प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण है! इसलिए पौलुस ने नए विश्वासियों को याद दिलाया कि एक समय “[तुम] अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे”(इफिसियों 2:1) l लेकिन वास्तव में, “हम उसके बनाए हुए है, और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिए सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहले से हमारे करने के लिए तैयार किया [है]” (पद.10) l 

इस प्रकार, पतरस ने लिखा, हम “एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा [हैं], इसलिए कि जिसने [हमें] अंधकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट [करें]”(1 पतरस 2:9-10) l  परमेश्वर की दृष्टि में, हमारे पुराने मार्ग का हम पर कोई दावा नहीं है l आइये स्वयं को परमेश्वर की दृष्टिकोण से देखें—और नए सिरे से चले l 

एक पश्चातापी हृदय

एक मित्र ने अपने विवाह की प्रतिज्ञा का उल्लंघन किया था l उसे अपने परिवार को नष्ट करते हुए देखना दर्दनाक था l जैसे ही उसने अपने पत्नी के साथ सुलह का प्रयास किया, उसने मुझसे सलाह मांगी l मैंने उससे कहा कि उसे शब्दों से अधिक कुछ देने की आवश्यकता है; उसे अपनी पत्नी से प्रेम करने और पाप के किसी भी नमूना को दूर करने में सक्रीय होने की ज़रूरत थी l 

नबी यिर्मयाह ने उन लोगों को भी ऐसी ही सलाह दी थी जिन्होंने परमेश्वर के साथ अपनी वाचा को तोड़ दिया था और अन्य देवताओं का अनुसरण किया था l उसके पास लौटना पर्याप्त नहीं था (यिर्मयाह 4:1), हलांकि वह सही आरम्भ था l उन्हें अपने कार्यों को वे जो कह रहे थे उसके अनुरूप बनाने की  ज़रूरत थी l इसका अर्थ था अपनी “घिनौनी वस्तुओं” से छुटकारा पाना (पद.1) l यिर्मयाह ने कहा कि यदि उन्होंने “सच्चाई और न्याय और धर्म से” प्रतिबद्धताएं निभायीं, तो परमेश्वर राष्ट्रों को आशीष देगा(पद.2) l समस्या यह थी कि लोग खोखले वादे कर रहे थे l उनका हृदय इसमें नहीं था l 

परमेश्वर केवल शब्द नहीं चाहता; वह हमारा दिल चाहता है l जैसा कि यीशु ने कहा, “जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है” (मत्ती 12:34) l यही कारण है कि यिर्मयाह उन लोगों को प्रोत्साहित करता है जो अपने हृदय की बंजर भूमि को तोड़ने और काँटों के बीच बीज न बोने की बात नहीं सुनते थे (यिर्मयाह 4:3) l 

अफ़सोस की बात है कि बहुत से लोगों की तरह, मेरे मित्र ने बाइबल की उचित सलाह पर ध्यान नहीं दिया और परिणामस्वरूप उसका विवाह टूट गया l जब हम पाप करते हैं, तो हमें उसे स्वीकार करना चाहिए और उससे विमुख होना चाहिए l परमेश्वर खोखले वादे नहीं चाहता; वह ऐसा जीवन चाहता है जो वास्तव में उसके अनुरूप हो l