एक आदमी झूठ बोलकर अपने  ट्रैफिक चलान के भुक्तान से बचने में माहिर था। जब वह अदालत में विभिन्न न्यायाधीशों के सामने पेश होता, तो वो एक ही कहानी सुनाता: “मेरा अपने दोस्त से झगड़ा हो गया था और वह मेरी जानकारी के बिना मेरी कार ले गई।” इसके अलावा, नौकरी के दौरान दुर्व्यवहार के लिए उसे बार-बार फटकार भी लगाई जाती थी। अभियोजकों ने अंततः उस पर झूठी गवाही देने के चार आरोप लगाए,   और शपथ के तहत न्यायाधीशों से कथित तौर पर झूठ बोलने के लिए जालसाजी के पांच मामले और फर्जी पुलिस रिपोर्ट उपलब्ध कराने के मामले ।    इस आदमी के लिए झूठ बोलना जीवन भर की आदत बन गई थी। 

इसके विपरीत, प्रेरित पौलुस ने कहा कि सच बोलना यीशु में विश्वासियों के लिए एक महत्वपूर्ण आदत है। उसने इफिसियों को याद दिलाया कि उन्होंने अपने जीवन को मसीह को समर्पित करके अपने पुराने जीवन जीने के तरीके को त्याग दिया है (इफिसियों 2:1-5)। इसलिए अब, जबकि वें एक नई सृष्टि बन गए है तो उन्हें कुछ कामों को अपने जीवन में शामिल करते हुए नया जीवन जीना भी आवश्यक है । ऐसा एक काम जिसे करना छोडना है – वह है –”झूठ को छोडना ” – और दूसरा काम जिसे अभ्यास में लाना है- “अपने पड़ोसी से सच बोलना” (4:25)। क्योंकि इससे कलीसिया की एकता सुरक्षित रहती है, इसलिए इफिसियों के लिए था कि उनके शब्द और काम हमेशा “दूसरों के निर्माण (उन्नति) ” के लिए हो (पद 29)। 

जब पवित्र आत्मा हमारी सहायता करता है (पद 3-4), यीशु में विश्वास करने वाले अपने शब्दों और कामों में सत्य के लिए प्रयास कर सकते हैं। तब कलीसिया एकीकृत होगी, और परमेश्वर को इसके द्वारा आदर पहुँचेगा।