लगभग सत्य अभी भी असत्य है
छायांकन/सिनेकला(cinematography)? बहुत अच्छा l देखिये? विश्वसनीय l सामग्री? दिलचस्प और प्रासंगिक l वीडियो प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान का था, जो राजनैतिक बयान दे रहे थे जो उनसे बिलकुल अलग लग रहे थे l ऑनलाइन कई लोगों का मानना था कि यह सच था, और सोचा कि शायद यह अभिनेता की ओर से एक नयी घोषणा थी l
लेकिन यह वायरल वीडियो गलत था l यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(AI) का उपयोग करके अभिनेता का गहरा नकली प्रतिरूपण(deep-fake impersonation) था, और इसका उद्देश्य अशांति पैदा करने की स्वार्थी महत्वाकांक्षा थी l अभिनेता ने वास्तव में वे बयान नहीं दिए थे, और वीडियो जितना रोमांचक था, वह झूठ पर आधारित था l
हम अपने को ऐसे युग में जीते हुए देख रहे हैं, जहां हमारी तकनीकियों के कारण, झूठ को इस सीमा तक बढ़ाया और गुणित किया जाता है कि वह हमें सच प्रतीत होता है l नीतिवचन की पुस्तक, जो ईश्वरीय ज्ञान का संग्रह है, अक्सर सत्य और झूठ के बीच के अंतर के बारे में बात करती है l नीतिवचन कहती है, “सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है”(नीतिवचन 12:19) l और अगली उक्ति हमें बताती है, “बूरी युक्ति करनेवालों के मन में चल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करनेवालों को आनंद होता है”(पद.20) l
परमेश्वर के आदेशों से लेकर बॉलीवुड अभिनेताओं के बारे में वीडियो तक हर चीज़ पर ईमानदारी लागू होती है l सच्चाई “सदा बनी रहेगी l”
चरवाहे से साहस
जोहान्सबर्ग के स्टेडियम में लगभग 1,00,000 लोग इंतज़ार में खड़े थे क्योंकि 2007 के T20 विश्व कप फाइनल में भारत को हराने के लिए पाकिस्तान को आखिरी ओवर में केवल 13 रन बनाने थे l मिस्बाह(Misbah) ने सबसे पहले छक्का लगाया और फिर 3 गेंद बच गए l हालाँकि अभी भी शांत दिख रहे जोगिंदर शर्मा ने दोबारा गेंदबाजी की l इस बार गेंद का स्वागत दो भारतीय हाथों से किया गया—एक विकेट गिर गया था l मिस्बाह चले गए और स्टेडियम में भगदड़ मच गयी, भारत ने अपना पहला T20 विश्व कप जीत लिया है l
ऐसे गहन क्षणों में भजन 23:1 जैसे बाइबल पद अहम् स्थान पर आते हैं l भजनकार लिखता है, “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी l” जब हमें सामर्थ्य और निश्चयता की ज़रूरत होती है, तो हम एक चरवाहे के रूप में परमेश्वर के गहन व्यक्तिगत रूपक(metaphor) का सहारा ले सकते हैं l
भजन 23 एक प्रिय भजन है क्योंकि यह हमें निश्चय देता है कि हम शांति में रह सकते हैं, या आराम पा सकते हैं, क्योंकि हमारे पास एक प्रेमी और भरोसेमंद चरवाहा है जो सक्रीय रूप से हमारी देखभाल करता है l दाऊद ने गहन या कठिन स्थितियों में डर की वास्तविकता के साथ-साथ परमेश्वर द्वारा प्रदान की जाने वाली शांति की भी गवाही दी(पद.4) l “शांति” शब्द का अनुवाद आश्वासन, या उसकी मार्गदर्शक उपस्थिति के कारण आगे बढ़ते रहने का आत्मविश्वास और साहस दर्शाता है l
चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में चलते समय—यह न जानते हुए कि परिणाम क्या होगा—हम साहस रख सकते हैं क्योंकि हम उस कोमल ताकीद को दोहराते हैं कि अच्छा चरवाहा हमारे साथ है l
राष्ट्रों से प्रेम करना
मध्य और दक्षिण अमेरिका के दो प्यारे और मेहनती माता-पिता की बेटी होने के नाते, मैं आभारी हूँ कि उनमें बेहतर अवसरों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवास करने वाले अपने परिवार के पहले व्यक्ति होने का साहस था l वे न्यूयॉर्क शहर में युवा वयस्कों के रूप में मिले, विवाह किया, उनके पास मेरी बहन और मैं थी, और वे आगे बढ़कर अपना-अपना व्यवसाय चलाने लगे l
न्यूयॉर्क के मूल निवासी के रूप में, मैं अपनी हिस्पैनिक/Hispanic(लातिनी अमरिकी) विरासत को अपनाते हुए बड़ी हुयी हूँ और विविध पृष्ठभूमि के लोगों से आकर्षित हुयी हूँ l उदाहरण के लिए, मैंने एक बार एक बहुसांस्कृतिक(multicultural) चर्च में एक शाम की आराधना में विश्वास की अपनी कहानी साझा की थी जो एक पूर्व ब्रॉडवे थिएटर(Broadway theater) में इकठ्ठा होती है l परमेश्वर के प्रेम के बारे में एक बहुसांस्कृतिक समूह से बात करना केवल इस बात की एक झलक है कि स्वर्ग कैसा होगा जब हम विभिन राष्ट्रों के लोगों को मसीह की देह के रूप में एक साथ मिलते देखेंगे l
प्रकाशितवाक्य में, प्रेरित यूहन्ना हमें स्वर्ग का यह अद्भुत चित्र देता है : “मैंने दृष्टि की, और देखो, हर एक जाति और कुल और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था . . . मेमने के सामने खड़ी है”(प्रकाशितवाक्य 7:9) l हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को “स्तुति और महिमा’ प्राप्त होगी और इससे भी अधिक वह “युगानुयुग बनी रहे”(पद.12) l
अभी तो हमें बस एक झलक मिली है कि स्वर्ग कैसा होगा l लेकिन एक दिन, हम जो यीशु में विश्वास करते हैं, उनके साथ और विभिन्न देशों, संस्कृतियों और भाषाओं के लोगों के साथ एकजुट होंगे l चूँकि परमेश्वर राष्ट्रों से प्रेम करता है, आइये हम भी मसीह में अपने वैश्विक परिवार से प्रेम करें l
हमारे विश्वासयोग्य पिता
मेरे छह फुट तीन इंच के ज़ेवियर ने अपने खिलखिलाते बच्चे ज़ेरियन को आसानी से हवा में उठा लिया l उसने अपने बड़े हाथ से अपने बेटे के छोटे-छोटे पैरों को थामा और उसे अपनी हथेली में मजबूती से पकड़ लिया l अपनी लम्बी भुजा फैलाकर, उसने अपने बेटे को स्वयं संतुलन बनाने के लिए उत्साहित किया, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर उसे पकड़ने के लिए अपना खाली हाथ भी तैयार रखा l ज़ेरियन ने अपने पैर सीधे किये और खड़ा हो गया l अपनी चौड़ी मुस्कराहट और अपनी भुजाएं बगल में रखते हुए, उसकी आँखें अपने पिता की ओर टिकी हुयी थीं l
नबी यशायाह ने हमारे स्वर्गिक पिता पर ध्यान केन्द्रित करने के लाभों की घोषणा की : जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शांति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है”(यशायाह 26:3) l उसने परमेश्वर के लोगों को पवित्रशास्त्र में उसकी तलाश करने के लिए समर्पित होने और प्रार्थना और उपासना के द्वारा उससे जुड़ने के लिए उत्साहित किया l उन विश्वासयोग्य लोगों को पिता के साथ अपनी स्थापित संगति के द्वारा निर्मित एक भरोसेमंद विश्वास का अनुभव होगा l
परमेश्वर के प्यारे बच्चों के रूप में, हम साहस के साथ दोहाई दे सकते हैं : “यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है”(पद.4) l क्यों? क्योंकि हमारा स्वर्गिक पिता विश्वासयोग्य है l वह और पवित्रशास्त्र कभी नहीं बदलते l
जैसे ही हम अपनी निगाहें अपने स्वर्गिक पिता पर टिकाएंगे, वह हमारे पैरों को अपने हाथों में मजबूती से रखेगा l हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि वह सदैव प्रेमपूर्ण, विश्वासयोग्य और अच्छा बना रहेगा!
भलाई के लिए परमेश्वर की सेवा
मितुल एक नए शहर में गया और उसे तुरंत एक चर्च मिल गया जहाँ वह आराधना कर सकता था l वह कुछ सप्ताहों तक आराधनाओं में गया, और फिर एक रविवार को उसने पास्टर से किसी भी तरह से आवश्यक सेवा करने की अपनी इच्छा के बारे में बात की l उसने कहा, “मुझे केवल “झाड़ू चाहिए l” उसने उपासना के लिए कुर्सियां लगाने और शौचालय की सफाई में सहायता करके आरम्भ की l चर्च परिवार को बाद में पता चला कि मितुल की प्रतिभा शिक्षण में थी, लेकिन वह कुछ भी करने को तैयार था l
यीशु ने अपने दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना और उनकी माँ को दास की तरह सेवा करने का पाठ पढ़ाया l उनकी माँ ने अनुरोध किया कि जब मसीह अपने राज्य में आए तो उनके बेटों को उनके दोनों तरफ सम्मान का स्थान मिले(मत्ती 20:20-21) l अन्य शिष्य सुनकर उन पर क्रोधित हो गए l शायद वे ये पद अपने लिए चाहते थे? यीशु ने उन्हें बताया कि दूसरों पर अधिकार जताना जीने का तरीका नहीं है(पद.25-26), बल्कि सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण है l “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने”(पद.26) l
मितुल के शब्द “मुझे झाड़ू चाहिए” एक व्यवहारिक तस्वीर है कि हममें से प्रत्येक अपने समुदायों और कलीसियाओं में मसीह की सेवा करने के लिए क्या कर सकता है l मितुल ने परमेश्वर के प्रति अपने जीवन की लालसा का वर्णन इस प्रकार किया : “मैं परमेश्वर की महिमा के लिए, संसार की भलाई के लिए और अपनी ख़ुशी के लिए सेवा करना चाहता हूँ l” जब परमेश्वर हमारी अगुवाई करता है तो आप और मैं “सेवक की तरह कैसे सेवा करेंगे?”