
नई दृष्टि
अपना नया चश्मा पहने हुए जैसे ही मैं पवित्र स्थान में गई, मैं बैठ गई। चर्च के दूसरी तरफ सीधे गलियारे के सामने मैंने अपनी एक दोस्त को बैठे देखा। मैंने उसे देखकर अपना हाथ हिलाया, वह बहुत पास और साफ दिख रही थी। भले ही वह कुछ गज़ की दूरी पी थी, पर मुझे ऐसा लगा कि मैं उस तक पहुंचकर उसे छू सकती हूं। बाद में, जब हमने आराधना के बाद बात की, मुझे एहसास हुआ कि वह उसी सीट पर थी जिस पर वह हमेशा बैठती थी। अपने नए चश्मे के कारण मैं उसे बेहतर तरीके से देख सकती थी।
भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा बोलते हुए, परमेश्वर जानता था कि बेबीलोन की बंधुआई में फंसे इस्राएलियों को एक नए नुस्खे की आवश्यकता होगी—एक नया दृष्टिकोण। उसने उनसे कहा, “मैं एक नई बात करता हूँ! मैं जंगल में मार्ग बनाऊंगा।” (यशायह 43:19)। और उसके आशा के संदेश में अनुस्मारक शामिल थे कि उसने उन्हें बनाया था, उन्हें छुडाया था, और वह उनके साथ रहेगा। “तुम मेरे हो”, उसने उन्हें प्रोत्साहित किया (पद 1)।
आज आप जिस चीज़ का भी सामना कर रहे हैं, उसमें पवित्र आत्मा आप के लिए बेहतर दृष्टि प्रदान कर सकता है; पुरानी को पीछे छोड़ने और नई की तलाश करने के लिये। परमेश्वर के प्रेम से (पद 4) यह आपके चारों ओर नजर आ रहा है। क्या आप देख सकते हैं कि वह आपके दुख और बंधनों में क्या काम कर रहा है? आइए हम अपना नया आध्यात्मिक चश्मा पहनें ताकि वह नया देख सकें जो परमेश्वर हमारे वीराने में भी कर रहा है।

बचाव अभियान
ऑस्ट्रेलिया में एक कृषि पशु बचाव संगठन के स्वयंसेवकों को एक भटकती हुई भेड़ मिली जो 34 किलो से अधिक गंदी, उलझी हुई ऊन के बोझ से दबी थी। बचाव दल को संदेह था कि भेड़ भूल से, कम से कम पांच साल से खोई हुई थी, और झाडी में फंसी थी। स्वयंसेवकों ने उसके भारी ऊन को कष्टप्रद प्रक्रिया द्वारा काटा और उसे शांत किया। एक बार अपने बोझ से मुक्त होकर, बराक ने अच्छी तरह खाया । उसके पैर मजबूत हो गए। शरणस्थान में अपने बचाव दल और अन्य जानवरों के साथ समय बिताने के साथ–साथ वह और अधिक आश्वस्त और संतुष्ट हो गया।
भजनहार दाऊद ने भारी बोझ से दबे होने, भूले हुए और खोए हुए महसूस करने और बचाव अभियान के लिए बेताब होने के दर्द को समझा। भजन संहिता 38 में, दाऊद ने परमेश्वर की दोहाई दी। उसने अलगाव, विश्वासघात, और लाचारी का अनुभव किया था (पद 11–14)। फिर भी, उसने पूरे विश्वास के साथ प्रार्थना की, “हे प्रभु, मैं तेरी बाट जोहता हूं, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू उत्तर देगा (पद 15)। दाऊद ने अपनी दुर्दशा से इनकार नहीं किया, या अपने आंतरिक कष्ट और शारीरिक बीमारियों को कम नहीं किया (पद 16–.20)। इसके बजाय, उसने भरोसा किया कि परमेश्वर निकट होगा और उसे सही समय पर और सही तरीके से उत्तर देगा (पद 21– 22) ।
जब हम शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक बोझों से बोझिल महसूस करते हैं, जिस दिन से उसने हमें बनाया है उस दिन से परमेश्वर उस बचाव अभियान के प्रति वचनबद्ध है जिसकी उसने योजना बनाई थी। हम उसकी उपस्थिति पर भरोसा कर सकते हैं जब हम उसे पुकारते हैं, “हे मेरे प्रभु, और मेरे उद्धारकर्ता, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर (पद 22)।

आनंद चुनें
सामान खरीदते हुये कीथ अच्छा महसूस नही कर रहा था। उनके हाथ पार्किंसंस रोग के पहले लक्षणों से कांप रहे थे। उसके जीवन की गुणवत्ता कितनी जल्दी कम होने लगी? उसकी पत्नी और बच्चों के लिए इसका क्या अर्थ होगा? कीथ की उदासी, हँसी से टूट गई—व्हीलचेयर में बैठे, हंसते हुए अपने बेटे को एक आदमी ने आलू के ऊपर धकेल दिया। उस आदमी ने झुक कर अपने बेटे से धीमी आवाज में कुछ कहा जो अपना मुस्कुराना बंद नहीं कर सका। उसकी हालत कीथ की तुलना में काफी खराब थी फिर भी वह और उसके पिता,जहां भी हो सकता था खुशी पा रहे थे ।
अपने मुकदमे के परिणाम की प्रतीक्षा करते हुये, जब प्रेरित पौलुस जेल से या घर में नजरबंद होकर लिख रहा था, तो लगता था कि प्रेरित पौलुस को आनन्दित होने का कोई अधिकार नहीं था (फिलिप्पियों 1 12–13)। उस समय सम्राट नीरो था, जो एक दुष्ट व्यक्ति था, जो हिंसा और क्रूरता के लिए बहुत अधिक प्रसिद्ध था, इसलिए पौलूस के चिंतित होने का कारण था। वह यह भी जानता था कि ऐसे उपदेशक थे जो उसकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर अपने लिए गौरव हासिल कर रहे थे। उन्होंने सोचा था कि वे पौलुस के लिए “ मुसीबत खड़ी कर सकते हैं” जब वह कैद में था (पद 17)।
तौभी पौलुस ने आनन्दित होना चुना (पद 18–21), और उसने फिलिप्पियों से उसके उदाहरण का अनुसरण करने के लिए कहा: “प्रभु में सदा आनन्दित रहो। मैं फिर कहता हूंरू आनन्दित रहो!” (4:4) । हमारी स्थिति अंधकारमय लग सकती है, फिर भी यीशु इस समय हमारे साथ है, और उसने हमारे गौरवशाली भविष्य की गारंटी दी है। मसीह, जो अपनी कब्र से बाहर निकल आया, अपने अनुयायियों को अपने साथ रहने के लिए, उठाने के लिए वापस आएगा। जब हम इस नए साल की शुरुआत करते हैं, हम आनन्दित हों!

एक छोटी शुरुआत
1883 में पूरा होने पर ब्रुकलिन ब्रिज को “दुनिया का आठवां आश्चर्य” माना जाता था। लेकिन ढांचे की सफलता के लिए पुल की एक टावर से दूसरी तक एक एकल, पतला तार बांधा जाना जरूरी था। इसलिये पहले तार में अतिरिक्त तार, तीन दूसरे केबलों के साथ, तब तक जोड़े गए जब तक ये एक साथ बुन कर एक बडा केबल तैयार नहीं हुआ। समाप्त होने पर प्रत्येक केबल ने, जो पांच हजार से अधिक गैल्वेनाइज्ड तारों से बना था, अपने समय के सबसे लंबे सस्पैन्शन (लटकते हुये) पुल को सहारा देने में मदद करी। जिसकी शुरूआत कुछ छोटे से हुई वह ब्रुकलिन ब्रिज के एक बड़े हिस्से में बदल गया।
यीशु का जीवन की शुरूआत भी एक छोटे ढ़ंग से हुई। एक छोटे से शहर में एक बच्चे का जन्म हुआ और उसे एक चरनी में (जानवरों को खिलाने वाली कुंड) रखा गया (लूका 2:7) । भविष्यद्वक्ता मीका ने उसके दीन जन्म की भविष्यवाणी करते हुए लिखा, “हे बेतलेहेम, प्राताए यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तौभी तुझ में से मेरे लिये एक पुरूष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करने वाला होगा” (मीका 5:2; मत्ती 2:6) भी देखें। एक छोटी सी शुरुआत, लेकिन यह शासक और चरवाहा अपनी प्रसिद्धि और मिशन को “पृथ्वी की छोर तक देखेगा” (मीका 5:4)।
यीशु का जन्म बहुत सादगी और दीनता से एक छोटे से स्थान में हुआ था, और पृथ्वी पर उसका जीवन अपने आप को दीन बनने में समाप्त हुआ, और एक क्रूस पर एक अपराधी की मृत्यु सही (फिलिप्पियों 2:8)। लेकिन अपने अपार बलिदान से उसने हमारे और परमेश्वर के बीच की दूरी को दूर किया और सभी विश्वास करने वालों को उद्धार दिया। इस समय में, आप विश्वास के द्वारा यीशु में परमेश्वर का महान उपहार प्राप्त कर सकते हैं। और यदि आप विश्वास करते हैं, तो जो उसने आपके लिए किया है उसके लिये, आप नए सिरे से नम्रतापूर्वक उसकी स्तुति करें।