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Articles by एलिसन कीडा

परमेश्वर सुन रहा है

चक(Chuck), एक अभिनेता और मार्शल कलाकार(युद्ध-विद्या/कला में प्रशिक्षित) ने अपनी माँ को उनके सौंवे जन्मदिन पर यह बताकर सम्मानित किया कि उनके आध्यात्मिक परिवर्तन में उनकी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है l “माँ दृढ़ता और विश्वास का एक उदाहरण रही है,” उसने लिखाl महामंदी(Great Depression) के दौरान उन्होंने तीन बेटों को अपने दम पर पाला; दो पतियों, एक बेटा, एक सौतेले बेटा और पोते—पोतियों की मौत का सामना किया; और कई ऑपरेशन(surgeries) झेले l “[उन्होंने] सुख दुःख में, जीवन भर मेरे लिए प्रार्थना की हैl” उसने आगे कहा, “जब मैं हॉलीवुड(hollywood) में अपनी आत्मा लगभग हार चुका था, तो वह घर पर मेरी सफलता और उद्धार के लिए प्रार्थना कर रही थीl” उसने निष्कर्ष निकाला, “मैं [अपनी माँ] को परमेश्वर की मदद करने के लिए धन्यवाद देता हूँ कि मुझे वह सब कुछ बनाने में की जो मैं कर सकता हूँ और जो मुझे होना चाहिएl” 

चक की माँ की प्रार्थनाओं ने उसे उद्धार पाने में—और एक धर्मपरायण पत्नी पाने में उसकी मदद की l उसने अपने बेटे के लिए बहुत प्रार्थना की, और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन लीl हमें हमेशा अपनी प्रार्थनाओं का उत्तर उस तरह से नहीं मिलता जैसा हम चाहते हैं, इसलिए हम प्रार्थना को जादू की छड़ी के रूप में उपयोग नहीं कर सकते l हालाँकि, याकूब हमें आश्वस्त करता है कि “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है” (5:16)  इस माँ की तरह, हमें बीमारों और मुसीबत में पड़े लोगों के लिए प्रार्थना करना जारी रखना है (पद.13-15) जब, उसकी तरह, हम प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर के साथ बातचीत करते हैं, तो हमें प्रोत्साहन और शांति और आश्वासन मिलता है कि आत्मा काम कर रही है l 

क्या आपके जीवन में किसी को उद्धार अथवा चंगाई या सहायता चाहिए? विश्वास में अपनी प्रार्थना को परमेश्वर तक उठाएं l वह सुन रहा है l

यीशु के बारे में बात करते रहो!

एक साक्षात्कार (इंटरव्यू)में, एक संगीतकार जो मसीह में विश्वास करता है, उस समय को याद करता है जब उसे "यीशु के बारे में बात करना बंद करने" का आग्रह किया गया था। क्यों? यह सुझाव दिया गया कि उनका बैंड और अधिक प्रसिद्ध हो सकता है और गरीबों को खिलाने के लिए अधिक धन जुटा सकता है यदि वह यह कहना बंद कर दे कि उसका काम यीशु के बारे में है। इसके बारे में सोचने के बाद, उन्होंने फैसला किया, "मेरे संगीत का पूरा उद्देश्य ही मसीह में मेरे विश्वास को साझा करना है। ...किसी भी तरह [मैं] चुप रहने वाला नहीं हूं। उन्होंने कहा कि यीशु के संदेश को साझा करना ही उनकी "ज्वलंत बुलाहट [है]।"

बहुत अधिक खतरनाक परिस्थितियों में, प्रेरितों को एक समान संदेश प्राप्त हुआ। उन्हें जेल में डाल दिया गया था और चमत्कारिक ढंग से एक स्वर्गदूत द्वारा छुड़ाया गया था, जिसने उन्हें दूसरों को मसीह में अपने नए जीवन के बारे में बताना जारी रखने के लिए कहा था (प्रेरितों के काम 5:19-20) जब धर्मगुरुओं को प्रेरितों के बच निकलने का पता चला और वे अभी भी सुसमाचार की घोषणा कर रहे थे, तो उन्हें फटकार कर कहा “क्या हमने तुम्हे चिता कर आज्ञा न दी थी कि तुम इस नाम से उपदेश न करनाI”(पद. 28)

उनका जवाब: "हमें इंसानों के बजाय परमेश्वर का पालन करना चाहिए!" (वि. 29) परिणामस्वरूप, अगुवों ने प्रेरितों को कोड़े मारे और "यह आदेश देकर छोड़ दिया कि यीशु के नाम से फिर कोई बात नहीं करनाI" (पद. 40) प्रेरितों को खुशी हुई कि वे यीशु के नाम के लिए कष्ट उठाने के योग्य हैं, और “दिन प्रतिदिन. . . उपदेश देना और सुसमाचार का प्रचार करना न छोड़ाI” (पद. 42) परमेश्वर हमें उनके उदाहरण पर चलने में हमारी मदद करें!

“चित्ताकर्षक चीजों” से लड़ना

1960 के दशक की एक टीवी श्रृंखला में, एक आदमी एक नायक से कहता है कि उसे अपने बेटे को यह तय करने देना चाहिए कि वह कैसे जीना चाहता है। नायक जवाब देता है कि हम युवा को उनके  लिए खुद निर्णय नहीं लेने दे सकते। जो भी पहली आकर्षक चीज़ वह देखेगा उसे ही पकड़ लेगा । फिर, जब उसे पता चलता है कि उसमें एक कांटा (गलत बात)  है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। गलत विचार इतनी चमक के साथ आते हैं कि उन्हें यह विश्वास दिलाना मुश्किल है कि लंबे समय में अन्य चीजें बेहतर हो सकती हैं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि माता–पिता के लिए  अपने बच्चों में सही व्यवहार बनाना  और “ प्रलोभन को दूर रखने”  में उनकी मदद करना महत्वपूर्ण है।

नायक के शब्द नीतिवचन में पाए जाने वाले ज्ञान से संबंधित हैं: “लड़के को उसी मार्ग की शिक्षा दे जिसमें उसको चलना चाहिएए और वह बुढ़ापे में भी उससे न हटेगा” (22:6) । हालाँकि कई लोग इन शब्दों को एक वादे के रूप में पढ़ सकते हैं, वे वास्तव में एक मार्गदर्शक हैं। यीशु में विश्वास करने के लिये हम सभी को  अपना निर्णय स्वयं करने के लिए बुलाया गया है। परन्तु हम परमेश्वर और पवित्रशास्त्र के प्रति अपने प्रेम के द्वारा बाइबल की नींव रखने में मदद कर सकते हैं। और हम प्रार्थना कर सकते हैं कि जैसे जैसे हमारे छोटे बच्चे बड़े होते हैं, वे मसीह को उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करें और उसके मार्गों पर चलना चुनें, न कि दुष्टों के मार्गों में (पद 5) ।

पवित्र आत्मा की सक्षमता के माध्यम से “चित्ताकर्षक चीजों” चीजेंपर हमारी अपनी जीत भी शक्तिशाली गवाही है। यीशु की आत्मा हमें प्रलोभन का सामना करने में मदद करती है और हमारे जीवन को अनुकरणीय उदाहरणों में ढालती है।

छोटी दयालुता

एमांडा एक अतिथि नर्स के रूप में कार्य करती हैं जो कई नर्सिंग होम्स में जाती हैं—अक्सर अपनी ग्यारह वर्षीय बेटी रूबी को अपने साथ ले जाती है l कुछ करने की इच्छा से रूबी ने निवासियों से प्रश्न पूछना शुरू किया, “यदि आपके पास कोई तीन चीजें होतीं, तो आप क्या चाहते?” और उनके उत्तर अपने नोटबुक में दर्ज करती है l हैरानी की बात यह है कि उनकी कई इच्छाएँ छोटी-छोटी चीजों के लिए थीं जैसे —चिकन, चॉकलेट, पनीर, फल l इसलिए रूबी ने उनकी साधारण इच्छाओं को पूरा करने में मदद करने के लिए एक “गो फण्ड मी” (Go Fund Me) की स्थापना की l और वह उपहार देते समय गले भी लगाती है l वह कहती है, “यह आपको उन्नत करता है l यह वास्तव में ऐसा करता है l”

जब आप रूबी की तरह अनुकम्पा और दयालुता दिखाते हैं, तब हम अपने परमेश्वर को प्रतिबिंबित करते हैं जो “अनुग्रहकारी और दयालु . . . और अति करुणामय है” (भजन 145:8) l इसीलिए प्रेरित पौलुस हमसे आग्रह करता है, परमेश्वर के लोग होने कर कारण, “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो” (कुलुस्सियों 3:12) l इसलिए कि परमेश्वर ने हमलोगों पर बड़ी दया दिखाई है, हम स्वभाविक रूप से दूसरों के साथ उसकी दया साझा करने की इच्छा रखते हैं l और जब हम जानबूझकर ऐसा करते हैं, हम स्वयं उसे “पहन” लेते हैं l 

पौलुस आगे हमसे कहता है : “सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबंध है है बाँध लो” (पद.14) l और वह हमको स्मरण दिलाता है कि हमें “सब प्रभु यीशु के नाम से [करना है]” (पद.17), याद रखते हुए कि सब भलाई परमेश्वर की ओर से आती है l जब हम दूसरों के साथ दयालु होते हैं, हमारी आत्माएं उन्नत होती हैं l 

चमकने के अवसर

शीतल, एक माँ और पत्नी, जो दिल्ली में रहती थीं, उन प्रवासी कामगारों के बारे में चिंतित थीं जो बिना आय और महामारी के दौरान भोजन की कमी के कारण सड़कों पर रहते थे। उनकी दुर्दशा देखकर शीतल ने 10 लोगों के लिए खाना बनाया और बांटा। खबर फैल गई, और कुछ एनजीओ शीतल की मदद के लिए आगे आए, जिसके कारण 'प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा' का जन्म हुआ। एक महिला का एक दिन में 10 भोजन परोसने का उद्देश्य 60,000 से अधिक दैनिक वेतन भोगियों की सेवा करने वाले 50 स्वयंसेवकों तक बढ़ गया।

कोरोनावायरस महामारी से उत्पन्न होने वाली जबरदस्त जरूरतों के जवाब में, सेवा में असंभावित भागीदारों को एक साथ लाया गया, और यीशु में विश्वासियों को दूसरों के साथ मसीह के प्रकाश को साझा करने के नए अवसर मिले। अपने पहाड़ी उपदेश में, यीशु ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि "तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके, कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर" (मत्ती 5:16)। हम मसीह के प्रकाश को चमकाते हैं जब हम आत्मा को प्रेम, दयालु, और अच्छे शब्दों और कार्यों में हमारा मार्गदर्शन करने देते है  (देखें गलातियों 5:22-23)। जब हम यीशु से प्राप्त प्रकाश को अपने दैनिक जीवन में स्पष्ट रूप से चमकने देते हैं, तो हम ".. पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई " (मत्ती 5:16) करते हैं।

इस दिन और हर दिन हम मसीह के लिए चमकें, क्योंकि वह हमें इस संसार में नमक और प्रकाश बनने में मदद करता है जिसे उसकी सख्त जरूरत है।

मुझे बनाया जाना

सात वर्षीय थॉमस एडिसन को स्कूल ना ही पसंद और न वो पड़ने में अच्छे थे। एक दिन, उन्हें एक शिक्षक द्वारा "एडल्ड" (मानसिक रूप से भ्रमित) भी कहा गया था। उन्होंने घर में आकर  तूफ़ान मचा दिया। अगले दिन शिक्षक के साथ बात करने के बाद, उसकी माँ, जो स्वयं एक शिक्षक थी, थॉमस को घर पर पढ़ाने का फैसला किया। उनके प्रेम और प्रोत्साहन (और एडिसन की ईश्वर प्रदत्त निपुणता) की सहायता द्वारा, थॉमस एक महान आविष्कारक बन गए। बाद में उन्होंने लिखा, "मेरी मां ही मेरी बनाने वाली थी। वह इतनी सच्ची थी, मुझ पर इतना यकीन करती थी, की मुझे लगा कि मेरे पास जीने के लिए कोई है, जिसे मुझे निराश नहीं करना चाहिए।”

प्रेरितों के काम १५ में, हम पढ़ते हैं कि बरनबास और प्रेरित पौलुस ने मिशनरियों के रूप में एक साथ सेवा की, जब तक कि उनके बीच इस बारे में एक बड़ी असहमति नहीं थी कि यूहन्ना मरकुस को साथ लाया जाए या नहीं। पौलुस ने विरोध किया क्योंकि मरकुस ने पहले "उन्हें पंफूलिया में छोड़ दिया था" (पद ३६-३८)। नतीजतन, पौलुस और बरनबास अलग हो गए। पौलुस ने सीलास को और बरनबास ने मरकुस को ले लिया। बरनबास मरकुस को दूसरा मौका देने के लिए तैयार था, और उसके प्रोत्साहन ने एक मिशनरी के रूप में सेवा करने और सफल होने के लिए मरकुस की क्षमता में योगदान दिया। उसने आगे जाकर मरकुस के सुसमाचार को लिखा और यहाँ तक कि पौलुस के लिए वह एक सांत्वना देने वाला बना जब वे जेल में था (२ तीमुथियुस ४:११)।

हम में से बहुत से लोग पीछे मुड़कर देख सकते हैं और अपने जीवन में किसी ऐसे व्यक्ति की ओर इशारा कर सकते हैं जिसने हमें प्रोत्साहित किया और हमारे रास्ते में मदद की। हो सकता है कि परमेश्वर आपको भी अपने जीवन में किसी के लिए ऐसा ही करने के लिए बुला रहा हो। आप किसे प्रोत्साहित कर सकते हैं?

यीशु कौन है ?

लोग यीशु को क्या मानते हैं? कुछ लोग कहते हैं कि वह एक अच्छे शिक्षक थे, लेकिन वह सिर्फ एक मनुष्य थे। लेखक सी एस लुईस ने लिखा, या तो यह आदमी परमेश्वर का पुत्र था, और है, या फिर एक पागल, या कुछ इससे भी और बुरा। आप उसे एक मूर्ख बोल कर चुप करा सकते हैं, आप उस पर थूक सकते हैं और उसे एक दुष्ट आत्मा के रूप में मार सकते हैं, या आप उसके चरणों में गिर सकते हैं और उसे परमेश्वर और प्रभु कह सकते हैं, लेकिन हमें उसके महान मानव शिक्षक होने के बारे में कोई भी बेकार का समर्थन नहीं करना चाहिए।” मियर क्रिस्चीऐनिटी के ये अब प्रसिद्ध शब्द बताते हैं कि यदि यीशु ने ईश्वर होने का झूठा दावा किया होता तो वह एक महान भविष्यवक्ता नहीं होता। यह परम विधर्म होगा।

गाँवों के बीच चलते समय अपने शिष्यों से बात करते हुए, यीशु ने उनसे पूछा, “लोग क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँ?  मरकुस (8:27)। उनके उत्तरों में— यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, एलिय्याह और भविष्यद्वक्ताओं में से एक शामिल थे  (पद 28) । लेकिन यीशु जानना चाहते थे कि वे क्या मानते हैं? “तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूं?” पतरस ने इसे सही बताया, “तू मसीह है”, उद्धारकर्ता (पद 29)  ।

लेकिन हम क्या कहते हैं कि यीशु कौन है? यीशु एक अच्छा शिक्षक या भविष्यद्वक्ता नहीं हो सकता था यदि उसने अपने बारे में जो उसने कहा था—  कि वह और पिता परमेश्वर “एक हैं” (यूहन्ना 10:30)— सच नहीं था। उसके अनुयायियों और यहाँ तक कि दुष्टात्माओं ने भी उसकी ईश्वरत्व (दिव्यता) को परमेश्वर के पुत्र के रूप में घोषित किया (मत्ती 8:29;16:16. 1यूहन्ना 5:20)। आज, हम इस बात का प्रचार करें कि मसीह कौन है क्योंकि वह हमें वह प्रदान करता है जिसकी हमें आवश्यकता है।

क्रूस का संदेश

मुकेश का पालन-पोषण इस प्रकार हुआ अर्थात उनके शब्दों में कहे तो, "कोई ईश्वर नहीं, कोई धर्म नहीं, कुछ भी नहीं।" अपने लोगों के लिए लोकतंत्र और स्वतंत्रता की मांग करते हुए, उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में छात्रों का नेतृत्व करने में मदद की। लेकिन विरोध के कारण सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा और सैकड़ों लोगों की जान चली गई। इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए, मुकेश को उनके देश की सर्वाधिक वांछित (गिरफ्तारी) सूची में रखा गया था। थोड़े समय के कारावास के बाद, वह एक दूर के गाँव में भाग गए जहाँ उनकी मुलाकात एक बुजुर्ग किसान से हुई जिन्होंने उन्हें मसीहत से परिचित कराया। उनके पास यहुन्ना के सुसमाचार की केवल एक हस्तलिखित प्रति थी, लेकिन वह पढ़ नहीं सकती थी, इसलिए उन्होंने मुकेश से उसे पढ़ने के लिए कहा। जैसे ही उन्होंने पढ़ा, उन्होंने उसे समझाया — और एक साल बाद वह यीशु में विश्वास करने लगे।

उन्होंने जो कुछ भी सहा, उसके द्वारा, मुकेश ने यह देखा कि परमेश्वर शक्तिशाली रूप से उन्हें क्रूस के समीप ला रहे थे, जहाँ उन्होंने पहली बार अनुभव किया जो प्रेरित पौलुस 1 कुरिन्थियों में कहता है, "क्रूस का संदेश ... परमेश्वर की सामर्थ" (1:18)। जिसे लोग मूर्खता, कमजोरी समझते थे, वही मुकेश की ताकत बन गयी। हम में से कुछ की भी, मसीह के पास आने से पहले यही सोच थी। लेकिन आत्मा के द्वारा, हमने महसूस किया कि परमेश्वर की शक्ति और ज्ञान हमारे जीवन में प्रवेश कर रहा है और हमें मसीह की ओर ले जा रहा है। आज मुकेश एक पादरी के रूप में कार्य करते है जो क्रूस की सच्चाई को उन सभी तक फैलाते है जो उन्हें सुनते हैं।

यीशु के पास कठोर से कठोर हृदय को भी बदलने की शक्ति है। आज उनके शक्तिशाली स्पर्श की आवश्यकता किसे है?

किसी सूत्र की जरूरत नहीं

जब मेघना छोटी थी, उसके सुविचारित संडे स्कूल के शिक्षक ने कक्षा को सुसमाचार देने के लिए प्रशिक्षित किया, जिसमें कई सारे वचनों को याद करना और सुसमाचार साझा करने का एक सूत्र शामिल था। उसने और उसकी एक सहेली ने घबराहट के साथ अपने एक दूसरे दोस्त पर इसे करने की कोशिश की, इस डर से कि कहीं वे किसी महत्वपूर्ण वचन या कदम भूल न जाएँ। मेघना को "याद नहीं है कि यदि उस शाम का अंत मन परिवर्तन के साथ हुआ [लेकिन अनुमान है] ऐसा नहीं हुआ।" यह तरीका व्यक्ति से ज्यादा उस सूत्र पर केंद्रित प्रतीत हुआ।

 

अब, वर्षों बाद, मेघना और उनके पति अपने बच्चों में परमेश्वर के प्रति प्रेम और अपने विश्वास को और अधिक आकर्षक तरीके से साझा करते हैं। वे अपने बच्चों को परमेश्वर, बाइबल और यीशु के साथ एक व्यक्तिगत संबंध के बारे में सिखाने के महत्व को समझते हैं, लेकिन वे इसे परमेश्वर और उसके वचन से प्रेम करने के कारण अपने दैनिक जीवन के उदहारण से करते है । वे यह प्रदर्शित करते हैं कि "जगत की ज्योति" (मत्ती 5:14) होने और दयालुता और सत्कारशील शब्दों के माध्यम से दूसरों तक पहुँचने  का क्या अर्थ है । मेघना कहती हैं, "हम दूसरों को जीवन के वचन नहीं दे सकते, अगर वे खुद हमारे अंदर न हो।" जैसे वह और उनके पति अपने जीवन द्वारा दया दिखाना प्रदर्शित करते  हैं, इससे वे अपने बच्चों को "दूसरों को उनके विश्वास में आमंत्रित करने" के लिए तैयार करते हैं।

हमें दूसरों को यीशु तक ले जाने के लिए किसी नुस्खे की आवश्यकता नहीं है - जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है वे यह है कि परमेश्वर के लिए हमारा प्रेम विवश करता और हमारे द्वारा चमकता है। जैसे-जैसे हम उसके प्रेम में जीते और उसके प्रेम को साझा करते हैं, परमेश्वर दूसरों को भी उसे जानने के लिए आकर्षित करता है।

हमें दूसरों को यीशु तक ले जाने के लिए किसी नुस्खे की आवश्यकता नहीं है - जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है वे यह है कि परमेश्वर के लिए हमारा प्रेम विवश करे और हमारे द्वारा चमके। जैसे-जैसे हम उसके प्रेम में जीते और उसके प्रेम को साझा करते हैं, परमेश्वर दूसरों को भी उसे जानने के लिए आकर्षित करता है।