जानते और प्रेम करते हुए
"जीसस लव्स में दिस आई नो" मसीही अराधना के सर्वप्रचलित गीतों में से एक इस गीत में बड़े कोमल भाव में यीशु के साथ हमारे सम्बंध की बात करता है-हमसे प्रेम किया जाता है।
किसी ने मेरी पत्नी को एक पट्टिका दी जो इन शब्दों को एक सरल मोड़ दे कर एक नया अर्थ देती है। उसमें ऐसा लिखा है, "जीसस नोस मी दिस आई लव"। यह उनके साथ हमारे सम्बंध पर एक भिन्न दृष्टिकोण प्रदान करता है-हमें जाना जाता है।
भेड़ से प्रेम करना और उनके बारे में जानना यह बात प्राचीन इज़राइल में, एक सच्चे चरवाहे को मजदूर चरवाहे से भिन्न बनाती थी। चरवाहा भेड़ों के साथ इतना समय बिताता कि उसे सदा भेड़ का ख्याल और परवाह होती। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि यीशु ने उसकी अपनी भेड़ों के लिए कहा "अच्छा चरवाहा मैं हूं...(यूहन्ना 10:14, 27)।
वे हमें जानते हैं और हमें प्यार करते हैं! हमारे प्रति उनकी योजनाओं पर हम भरोसा कर सकते हैं और अपनी परवाह वायदे पर विश्राम कर सकते हैं क्योंकि उनका पिता "[हमारे] माँगने से पहले ही जानता है....(मत्ती 6:8)। आप जब उतार चढ़ाव का सामना करें, तो विश्राम में बने रहें। आपकी आत्मा का चरवाहा आपको जानता है और आपसे प्रेम करता है।
बड़ा संसार, उससे बड़ा परमेश्वर
जब हम अपनी गाड़ी से उत्तरी मिशिगन से होकर जा रहे थे, मारलीन आश्चर्य से बोली, “विश्वास नहीं होता कि संसार इतना बड़ा है!” उसने यह बात तब कही जब हम उस संकेत को पार किये जो भूमध्य रेखा और उत्तरी ध्रुव के बीच है l हम आपस में बातचीत किये कि हम कितने छोटे हैं और हमारा संसार कितना विशाल है l फिर भी, विश्व के आकर से तुलना करने पर, हमारा छोटा गृह धूल का एक कण है l
यदि हमारा संसार बड़ा है, और विश्व उससे भी कहीं बड़ा, इसका बनानेवाला कितना बड़ा होगा जिसने इसे अपनी शक्ति से बनाया? बाइबल हमसे कहती है, “क्योंकि [यीशु में] सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हों अथबा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएं, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिए सृजी गयी हैं” (कुलुस्सियों 1:16)
सुसमाचार यह है कि यही यीशु जो इस विश्व का सृष्टिकर्ता है हमें हमारे पापों से प्रतिदिन और हमेशा के लिए बचाने आया l जिस दिन यीशु मरा उसके पहले वाली रात, यीशु ने कहा, “मैं ने ये बातें तुम से इसलिए कहीं हैं कि तुम्हें मुझ में शांति मिले l संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33) l
जीवन की बड़ी और छोटी चुनौतियों का सामना करते हुए, हम संसार के सृष्टिकर्ता को पुकारते हैं जिसने मृत्यु सही और मुर्दों में से जी उठा, और संसार के टूटेपन पर विजयी हुआ l हमारे संघर्ष के समय, वह सामर्थ्य के साथ हमें अपनी शांति देता है l
आनंद और न्याय
एशिया के एक सम्मलेन में, कुछ ही घंटों की बातचीत की अवधि में दो बार मेरी आँखें खुल गयी l पहले, एक पासवान ने बताया कि रिहा से पूर्व हत्या का गलत आरोप सिद्ध होने के कारण उसे ग्यारह वर्ष जेल काटनी पड़ी l उसके बाद, कुछ परिवारों ने बताया कि किस तरह अपने देश में धार्मिक सताव से बचने के लिए उन्होंने अपनी सम्पत्ति खर्च कर दी, और जिन लोगों पर छुटकारे का भरोसा किया उन्होंने ही उनको धोखा दिया l अब वर्षों तक एक शरणार्थी शिविर में रहने के बाद, उनका सोचना है कि शायद ही कभी उनके पास घर होगा l
दोनों ही घटनाओं में, अत्याचार के साथ न्याय नहीं था, जो हमारे संसार के टूटेपन का एक प्रमाण है l किन्तु इस न्याय का खालीपन स्थायी स्थिति नहीं है l
भजन 67 परमेश्वर के लोगों से इस दुःख देनेवाले संसार का परिचय परमेश्वर से कराने के लिए कहा गया है l केवल परमेश्वर के प्रेम के कारण ही नहीं किन्तु उसके न्याय के कारण भी उसका परिणाम आनंद होगा l भजनकार कहता है, “राज्य राज्य के लोग आनंद करें, और जयजयकार करें, क्योंकि तू देश देश के लोगों का न्याय धर्म से करेगा” (पद.4) l
यद्यपि बाइबिल के लेखकों ने समझा कि “न्याय” (निष्पक्षता और न्याय) परमेश्वर के प्रेम का भाग है, उन्होंने जाना कि भविष्य में ही यह पूरी तौर से समझा जाएगा l उस समय तक, हम अपने अन्यायी संसार में, दूसरों को परमेश्वर के पवित्र न्याय के विषय बताते रहें l उसका आना “न्याय [का] नदी के समान, और धर्म [का] महानद के समान होगा” (आमोस 5:24) l
बच्चों के लिए प्रेम
थॉमस बार्नाडो चीन देश में मेडिकल मिशनरी बनने का सपना देखते हुए लन्दन हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल में 1865 में दाखिला लिया l बार्नाडो को जल्द ही अपने घर के सामने अनेक बेघर बच्चे दिखाई दिये जो लन्दन की सड़कों पर मर रहे थे l उसने इस भयानक स्थिति के विषय कुछ करने का निर्णय लिया l लन्दन के पूर्वी छोर पर उसने इन गरीब बच्चों के लिए एक आवास बनाया और 60,000 लड़के और लड़कियों को गरीबी और अकाल मृत्यु से बचा लिया l धर्मशास्त्री और पासवान जॉन स्टोट ने कहा, “आज हम उन्हें लावारिस बच्चों के संरक्षक संत पुकार सकते हैं l”
यीशु ने कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है” (मत्ती 19:14) l कल्पना करें कि इस घोषणा पर भीड़ और यीशु के शिष्य कैसा महसूस किये होंगे l प्राचीन संसार में, बच्चों का महत्त्व कम था और उन्हें जीवन में मुख्य स्थान नहीं दिया जाता था l फिर भी यीशु ने उनका स्वागत किया, उनको आशीष देकर उनको अनमोल बताया l
नए नियम के लेखक याकूब ने, मसीह के अनुयायियों को यह कहकर चुनौती दी, “हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उसकी सुधि लें ...” (याकूब 1:37) l प्रथम शाताब्दी के अनाथों की तरह वर्तमान में भी, अनाथ, और हर स्तर, हर नस्ल के बच्चे, और पारिवारिक माहौल, मानव व्यापार, दुर्व्यवहार, नशीले पदार्थ, और बहुत सी, उपेक्षाओं के कारण जोखिम में है l हम किस तरह स्वर्गिक पिता को आदर दे सकते हैं जो इन छोटे बच्चों की जिन्हें यीशु अपने पास बुलाता है, की देखभाल करके हमसे प्रेम करता है?
जीवित किये गए
मेरे पिता अपने युवावस्था में मित्रों के एक समूह के साथ शहर के बाहर एक स्पोर्ट्स कार्यक्रम में जा रहे थे जब उनकी कार के पहिये गीली सड़क पर फिसल गए l उनके साथ गंभीर दुर्घटना हुई l एक मित्र को पक्षघात हो गया और दूसरे की मृत्यु l मेरे पिता को मृत घोषित करके लाश-घर में रख दिया गया l उनके स्तंभित और शोक-संतप्त माता-पिता उन्हें पहचानने पहुँचे l किन्तु मेरे पिता उस गहरे कोमा से वापस पुनर्जीवित हो गए l उनका विलाप आनंद में बदल गया l
इफिसियों 2 में, प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है कि मसीह से अलग हम “अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे” (पद.1) l किन्तु हमारे लिए उसके महान प्रेम के कारण, “परमेश्वर ने जो दया का धनी है, ... जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें मसीह के साथ जिलाया” (पद.4-5) l मसीह के द्वारा हमें मृत्यु से जीवन में लाया गया है l
तो एक भाव में, हम सभों के जीवन का श्रोत स्वर्गिक परमेश्वर है l उसके महान प्रेम के द्वारा, उसने उनको जो पापों में मृत थे उसके पुत्र के द्वारा जीवन और उद्देश्य को संभव किया l
एक छोटी आग
सितम्बर में एक रविवार की रात, जब सब लोग सो रहे थे, पुडिंग लेन पर थॉमस फेरिनर की बेकरी में छोटी सी आग लगी l जल्द ही आग एक घर से दूसरे घर में फ़ैल गयी और लन्दन 1966 के भयानक आग में घिर गया l इस आग से 70,000 से अधिक लोग बेघर हो गए जिसने शहर के चार बटे पाँच हिस्से को अपने चपेट में ले लिया l एक छोटी सी आग से कितना अधिक विनाश!
बाइबिल हमें एक और छोटी किन्तु विनाशक अग्नि के विषय चिताती है l याकूब यह लिखते समय, “जीभ भी एक छोटा सा अंग है और वह बड़ी-बड़ी डींगें मारती है l देखो, थोड़ी से आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है” (याकूब 3:5) l
किन्तु हमारे शब्द रचनात्मक भी हो सकते हैं l नीतिवचन 16:24 ताकीद देता है, “मनभावने वचन मधुभारे छत्ते के सामान प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं l” प्रेरित पौलुस कहता है, “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो कि तुम्हें हर महुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए” (कुलु. 4:6) l जैसे नमक भोजन को स्वादिष्ट करता है, हमारे अनुग्रही शब्द दूसरों का निर्माण करते हैं l
पवित्र आत्मा की सहायता से हमारे शब्द दुखित लोगों को, विश्वास में बढ़ने को इच्छित, अथवा जिन्हें उद्धारकर्ता के निकट आना ज़रूरी है, को उत्साहित करते हैं l हमारे शब्द आग उत्पन्न करने की जगह आग बुझा सकते हैं l
तस्वीर बनाना
इंग्लैंड, लन्दन में नेशनल पोर्ट्रेट दीर्घा में सदियों के ढेर सारे तस्वीर हैं, जिसमें विंस्टन चर्चिल के 166, विलियम शेक्सपियर की 94, और जॉर्ज वाशिंगटन की 20 तस्वीरें हैं l पुरानी तस्वीरों को देखकर हम सोचेंगे : क्या ये लोग वास्तव में ऐसे ही दिखाई देते थे?
जैसे, स्कॉटलैंड के देश-प्रेमी विलियम वालस (c. 1270-1305) के 8 चित्र हैं, किन्तु हमारे पास इनसे तुलना करने के लिए शायद ही चित्र हैं l हम कैसे जाने कि चित्रकार ने वाल्स का सही चित्र बनाया?
कुछ ऐसा ही यीशु की समानता के साथ भी हो सकता है l बिना जाने, यीशु में विश्वास करनेवाले दूसरों पर उसकी छाप छोड़ रहे हैं l चित्रकारी ब्रश और रंग से नहीं, किन्तु आचरण, कार्य, और संबंधों के द्वारा l
क्या हम उसके हृदय की समानता का चित्र प्रदर्शित कर रहे हैं? प्रेरित पौलुस की यही चिंता थी l “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो” (फिलि. 2:5) l हमारे प्रभु को उचित रूप में प्रदर्शित करने की इच्छा के साथ, उसने यीशु के अनुयायियों को दूसरों तक उसकी दीनता, आत्म-बलिदान और करुणा दर्शाने का आग्रह किया l
ऐसा कहा गया है, “हम ही केवल वह यीशु हैं जिसे कुछ लोग कभी देखेंगे l” हम “दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा [समझकर] (पद.3), संसार को स्वयं यीशु का हृदय दिखाएँगे l
सम्पूर्ण पहुँच
कुछ वर्ष पूर्व, मेरा एक मित्र मुझे प्रथम गोल्फ प्रतियोगिता देखने के लिए आमंत्रित किया l पहली बार देखने के कारण, मेरी अपेक्षाएं शून्य थीं l वहाँ पहुँचकर, मैं उपहार, सूचना, और गोल्फ के मैदान का नक्शा पाकर चकित हुआ l लेकिन सबसे अच्छी बात यह थी कि हमें 18 वीं ग्रीन (गोल्फ खेल में एक विशेष बिंदु/स्थान) के पीछे विशिष्ट दीर्घा में पहुँच मिली, जहाँ मुफ्त भोजन और बैठने का स्थान था l यद्यपि मैं इस आतिथ्य दीर्घा में स्वयं नहीं पहुँच सकता था l मुख्य व्यक्ति मेरा मित्र था; केवल उसके द्वारा मुझे पूर्ण पहुँच मिली l
खुद पर भरोसे से हम, नाउम्मीदी में परमेश्वर से दूर रहते l किन्तु यीशु, हमारा दंड लेकर, अपना जीवन और परमेश्वर तक पहुँच देता है l प्रेरित पौलुस ने लिखा, “[परमेश्वर की इच्छा थी कि] अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का विभिन्न प्रकार का ज्ञान ... प्रगट किया जाए” (इफि. 3:10) l इस ज्ञान ने यहूदी और गैरयहूदी का मसीह में मेल कराया, जिसने हमारे लिए परमेश्वर पिता तक पहुँच दी l “[यीशु पर] विश्वास करने से साहस और भरोसे के साथ परमेश्वर के निकट आने का अधिकार है” (पद.12) l
यीशु में भरोसा करने पर, हमें सबसे महान पहुँच मिलती है-परमेश्वर तक पहुँच जो हमसे प्रेम करता है और हमसे सम्बन्ध रखना चाहता है l
कल की ओर दृष्टि
मुझे खुला नीला आसमान देखना पसंद है l आसमान हमारे महान सृष्टिकर्ता की श्रेष्ठ कृति का एक सुन्दर भाग है l कल्पना करें पायलट इस दृश्य को कितना पसंद करते होंगे l वे उड़ान भरने के लिए खुले आसमान का वर्णन करने के लिए अनेक वैमानिक शब्दों का उपयोग करते हैं, किन्तु मेरा पसंदीदा है, “कल की ओर दृष्टि l”
“कल की ओर दृष्टि” हमारे देखने से परे है l हम कभी-कभी आज क्या होगा भी जानने अथवा समझने में संघर्ष करते हैं l बाइबिल कहती है, “और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा ... जीवन है ही क्या? तुम तो भाप के सामान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है फिर लोप हो जाती है” (याकूब 4:14) l
किन्तु हमारी सीमित दृष्टि निराशा का कारण नहीं l इसके बिल्कुल विपरीत l हमारा विश्वास हमारे कल को पूरी तौर से देखने वाले परमेश्वर पर है-और हमारे भविष्य की चुनौतियों की ज़रूरतों को जाननेवाला l प्रेरित पौलुस यह जानता था l इसलिए पौलुस आशापूर्ण शब्दों से उत्साहित करता है, “हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं” (2 कुरिन्थियों 5:7) l
जब हम अपने आज और आनेवाले कल के लिए परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, हम अपने जीवन में आनेवाली किसी बात के लिए चिंतित नहीं होते l हम भविष्य जानने वाले के साथ चलते हैं l वह भविष्य को सँभालने में सामर्थी और बुद्धिमान है l