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Articles by डेविड मैकेसलैंड

सबके लिए उपलब्ध

वर्तमान के कीर्ति-आसक्त संस्कृति में, यह आश्चर्यजनक नहीं कि उद्यमी “मशहूर लोगों को उत्पाद की तरह बेचते हुए ... उन्हें अपना व्यक्तिगत समय और आदर-सत्कार बेचने की अनुमति देते हैं l” द न्यू यॉकर  में वोव्हिनी वारा का लेख कहता है कि 15,000 डॉलर में, आप गायिका शकीरा के साथ व्यक्तिगत मुलाकर कर सकते हैं, जबकि 12,000 डॉलर आपके साथ 11 अतिथियों को मशहूर शेफ(रसोइया) माइकल चियारेलो के साथ उसके ही घर में भोजन करने का अवसर दे सकता है l

     अनेक लोगों ने यीशु को ख्यातिप्राप्त व्यक्ति मानकर जगह-जगह उसका अनुसरण करते हुए, उसकी शिक्षा को सुना, उसके आश्चर्यकर्मों पर ध्यान दिया, और उसके स्पर्श से चंगाई पाने की कोशिश की l फिर भी यीशु अभिमानी अथवा अलग रहनेवाला व्यक्ति न होकर, सबके लिए उपलब्ध था l जब उसके अनुयायी याकूब और यूहन्ना व्यक्तिगत रूप से  चतुराई से उसके आनेवाले राज्य में पद पाने का प्रयास कर रहे थे, यीशु ने अपने शिष्यों को याद दिलाया, “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने; और जो कोई तुममें प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने” (मरकुस 10:43-44) l

     यीशु के यह कहने के शीघ्र बाद, उसने लोगों के एक भीड़ से रुककर एक अंधे भिखारी से पूछने को कहा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” (पद.51) l “हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूं,” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया l” वह तुरंत चंगा होकर यीशु के पीछे चल पड़ा(पद.52) l

     हमारा प्रभु “इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपना प्राण दे” (पद.45) l काश हम भी आज उसकी तरह, करुणामयी और सबके लिए उपलब्ध रहें l

अनुग्रह दिखाना

युएस मास्टर्स गोल्फ प्रतियोगिता 1934 में आरंभ हुआ, और उस समय से केवल तीन खिलाड़ियों ने ही लगातार दो बार प्रतियोगिता जीता है l अप्रैल 10, 2016 में, ऐसा प्रतीत हुआ कि 22 वर्षीय जॉर्डन स्पिथ चौथे व्यक्ति होंगे l किन्तु अंत में वे चुक गए और दूसरे के साथ दूसरे स्थान को साझा किया l निराशाजनक हार के बावजूद, स्पिथ प्रतियोगिता के विजेता डैनी विलेथ के प्रति दयालु थे, और “गोल्फ से कुछ अधिक विशेष” उनकी जीत और उनके पहले बच्चे के जन्म पर उनको शुभकामनाएं दीं l

केरेन क्राउस ने द न्यू यॉर्क  टाइम्स  में लिखा, “एक इनाम(ट्राफी) समारोह में बैठकर किसी और की तस्वीर खीँचते हुए देखने के शीर्घ बाद एक बड़े दृश्य को देखने के लिए अनुग्रह चाहिए l क्राउस ने आगे कहा, “स्पिथ पूरा सप्ताह बॉल को निशाने पर मार न सके, किन्तु उसका चरित्र सुरक्षित था l”

पौलुस ने कुलुस्से में यीशु के अनुयायियों से निवेदन किया ,” बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से व्यवहार करो l तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए” (कुलु. 4:5-6) l

परमेश्वर का अनुग्रह बिना मूल्य प्राप्त करनेवालों के रूप में, हमारे लिए अवसर और बुलाहट है कि हम जीतें अथवा हारें, जीवन की हर स्थिति में उसे प्रगट करें l

सब पीढ़ीयाँ

1933 के महामंदी में मेरे माता-पिता ने शादी की l मेरी पत्नी और मैं द्वितीय विश्वयुद्ध पश्चात जन्म दर में नाटकीय वृद्धि के समय  बच्चा जन्म दर वृद्धि काल में जन्में l 70 और 80 के दशक में जन्मीं हमारी चार बेटियाँ, पीढ़ी X और Y की हैं l इन भिन्न समयों में बढ़ने के कारण अनेक बातों में परस्पर मतभिन्नता चकित करनेवाली बात नहीं!

          पीढ़ियाँ अपने जीवन अनुभवों और मान्यताओं में बेहद भिन्न होती हैं l और यह मसीह के अनुगामियों में सच है l किन्तु हमारी भिन्नताओं के बावजूद, हमारा आत्मिक संपर्क सुदृढ़ है l

          परमेश्वर का स्तुति गीत, भजन 145, हमारा विश्वास बंध घोषित करता है l “तेरे कामों की प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामों का वर्णन, पीढ़ी पीढ़ी होता चला जाएगा  ... लोग तेरी बड़ी भलाई [की] ... चर्चा करेंगे” (पद.4,7) l उम्र और अनुभव की बड़ी भिन्नता में, हम प्रभु का आदर करते हैं l वे तेरे राज्य की महिमा ... और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे” (पद.11) l

          जबकि भिन्नता और प्राथमिकताएँ हमें विभाजित करेंगी, यीशु मसीह में सहभाजी विश्वास हमें आपसी भरोसा, उत्साह, और प्रशंसा में एक करेगा l हमारी उम्र और दृष्टिकोण कुछ भी हो, हमें परस्पर ज़रूरत है l हम किसी भी पीढ़ी के हों, हम परस्पर सीखकर प्रभु का आदर करते हैं-“कि वे आदमियों पर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें” (पद.12) l

जो हम वापस लाते हैं

जॉन एफ. बर्न्स विश्व घटनाओं पर 40 वर्षों तक द न्यू यॉर्क टाइम्स  के लिए लिखते रहे l 2015 में बर्न्स सेवानिवृति पश्चात् एक लेख में, कैंसर पीड़ित घनिष्ठ मित्र और संगी-पत्रकार के शब्द याद किये l “कभी न भूलना,” सहकर्मी ने कहा, “यह महत्वपूर्ण नहीं आपने कितनी लम्बी यात्रा की है; आप क्या वापस लाए हैं महत्वपूर्ण है l”

भजन 37 दाऊद की चरवाहा से सैनिक से राजा तक की जीवन यात्रा से “वापस लायी हुई बातों” की सूची हो सकती है l भजन 37 दुष्ट का धर्मी से तुलना, और प्रभु में भरोसा करनेवालों की पुष्टि करनेवाले दोहा श्रृंखला है l

“कुकर्मियों से मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर ! क्योंकि वे घास के समान ... मुरझा जाएँगे” (पद.1-2) l

“मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, ... चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है” (पद.23-24) l

“मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूँ; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है” (पद.25) l

परमेश्वर ने हमें, हमारे जीवन के अनुभवों से क्या सिखाया है? हमने कैसे उसकी विश्वासयोग्यता और प्रेम का अनुभव् किया है? किस तरह परमेश्वर के प्रेम ने हमारे जीवनों को गढ़ा है?

महत्वपूर्ण यह नहीं हम जीवन में कितनी दूर चले हैं, किन्तु जो हम वापस लेकर आये हैं l

उपनाम से परे

मेरे शहर के एक चर्च में अद्वितीय स्वागत कार्ड सभी के लिए परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह दर्शाता है l उस पर लिखा है, “यदि आप एक . . . संत, पापी, पराजित, विजयी” – संघर्षरत लोगों के लिए अन्य शब्द – “शराबी, पाखंडी, धोखेबाज, भयभीत, बेमेल . . . . हैं, तो आपका स्वागत है l” एक पासबान ने कहा, “हम इस कार्ड को रविवारीय आराधना में ऊँची आवाज़ में मिलकर दोहराते हैं l”

कितनी बार हम खुद को परिभाषित करनेवाले उपनाम चुन लेते हैं l और हम कितनी सरलता से दूसरों को इनसे संबोधित करते हैं l किन्तु परमेश्वर का अनुग्रह उपनामों को चुनौती देता है क्योंकि वह हमारे आत्म-बोध में नहीं, उसके प्रेम में जड़वत है l  चाहे हम खुद को उत्कृष्ट या भयंकर, योग्य या अयोग्य महसूस करें, हम उससे अनंत जीवन का पुरस्कार प्राप्त कर सकते हैं l प्रेरित पौलुस ने रोम के विश्वासियों को स्मरण दिलाया कि “जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिए मारा” (रोमि. 5:6) l

परमेश्वर नहीं चाहता कि हम अपनी सामर्थ्य से बदलें l इसके बदले वह हमें हमारी यथास्थिति में आशा, चंगाई और स्वतंत्रता हेतु बुलाता है l “परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा” (पद.8) l प्रभु हमें हमारी यथास्थिति में स्वीकारने हेतु तैयार है l

क्या मैं वह कह सकता था?

विकासात्मक व्यवहारवादी शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ. बारबरा होवार्ड, कहती हैं, “भाई बहनों की दुश्मनी में पक्षपात की अनुभूति एक सबसे बड़ा कारण है” (“When Parents Have a Favorite Child” nytimes.com) l पुराने नियम का युसूफ एक उदहारण है जो अपने पिता का पसंदीदा पुत्र था, जिसने अपने बड़े भाईयों को क्रोधित किया (उत्पति 37:3-4) l इसलिए उन्होंने उसे मिस्र जाते हुए व्यापारियों को बेचकर यह जताया कि किसी जंगली जानवर ने उसे मार दिया था (37:12-36) l उसके सपने बिखर गए और उसका भविष्य आशाहीन दिखाई दिया l

फिर भी, युसूफ की जीवन यात्रा में, उसने बदतर परिस्थिति में भी, अपने परमेश्वर के प्रति सच्चा रहकर उस पर टिका रहा l अपने मालिक की पत्नी द्वारा झूठा आरोप लगाने और कैद होने पर भी, युसूफ अन्याय से संघर्ष करते हुए प्रभु पर भरोसा रखा l

वर्षों बाद अकाल के समय उसके भाई अनाज खरीदने मिस्र आए और अपने भाई को प्रधान मंत्री देखकर घबरा गए l किन्तु युसूफ बोला, “अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहाँ बेच डाला इससे उदास मत हो; क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिए मुझे तुम्हारे आगे भेज दिया है ... मुझ को यहाँ पर भेजनेवाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा” (45:5,8) l युसूफ के शब्द मुझे चकित करते हैं कि मैं बदला लेने के लिए तैयार होता l या मैं विनीत होता क्योंकि मेरा भरोसा परमेश्वर पर था?

संगीत समारोह में बजाना

हमारी पौत्री के स्कूल बैंड संगीत गोष्ठी, में 11 और 12 वर्ष के बच्चों को एक साथ ख़ूबसूरती से बजाते देख मैं प्रभावित हुआ l हर एक अकेले प्रदर्शित करके उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते थे जो उन्होंने साथ मिलकर किया l सभी साजों ने अपनी भागीदारी निभायी और परिणाम था मधुर संगीत!

रोमियों को पौलुस ने लिखा, “हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं l जबकि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं” (रोमियों 12:5-6) l पौलुस द्वारा वर्णित वरदानों में भविष्यवाणी, सेवा, सिखाना, उपदेश देना, दान देना, अगुवाई, उत्साहित करना और दया है (पद.7-8) l प्रत्येक वरदान हर एक के लाभ के लिए स्वतंत्र रूप से उपयोग किया जाए (1 कुरिं. 12:7) l

संगीत मण्डली  में  की एक परिभाषा है “बनावट अथवा योजना में सहमति; संयुक्त क्रिया; तालमेल अथवा सामंजस्य l” यीशु मसीह द्वारा हम जो उसकी संतान हैं, के लिए प्रभु की योजना यही है l “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो” (पद.10) l लक्ष्य सहभागिता है, प्रतियोगिता नहीं l

एक अर्थ में, हम प्रतिदिन देखनेवाले और सुननेवाले संसार के “मंच पर हैं l” परमेश्वर की संगीत मण्डली में कोई अकेला गायक नहीं है, किन्तु सभी वाद्य विशेष हैं l हम दूसरों के साथ एकता में अपने योगदान देकर संगीत को सर्वोत्तम बनाते हैं l

अनुग्रह के लय

विवाह के छियासठ वर्ष पूरे करके, नब्बे वर्षीय मेरा एक मित्र और उनकी पत्नी, ने अपने बच्चों, नाती-पोंतों और आनेवाली पीढ़ियों के लिए अपना पारिवारिक इतिहास लिखा l अंतिम अध्याय, “माता और पिता की ओर से एक पत्र,” में सीखे गए महत्वपूर्ण जीवन-पाठ हैं l एक से मैंने अपने जीवन-सूची पर विचार किया : “यदि आपको महसूस हो कि मसीहियत आपको थकाकर ऊर्जा छीनता है, तो आप यीशु मसीह के साथ सम्बन्ध का आनंद न लेकर धर्म का अभ्यास कर रहे हैं l प्रभु के साथ आप थकेंगे नहीं, वह आपको स्फूर्तिदायक, सामर्थी और क्रियाशील करेगा” (मत्ती 11:28-29) l

युजिन पिटरसन की व्याख्या अनुसार इस परिच्छेद में यीशु का निमंत्रण निम्नांकित है, “क्या तूम थककर टूट गए हो? धर्म को मानते हुए अक्रियाशील हो गए हो? ... मेरे संग चलो और काम करो ... अनुग्रह के सहज लय सीखो” (The Message) l

यह सोचकर कि परमेश्वर की सेवा मेरे ऊपर है, मैं उसके साथ  न चलकर, उसके लिए  काम करना आरंभ कर देता हूँ l एक महत्वपूर्ण अंतर है l मसीह के साथ नहीं चलने से, मेरी आत्मा सूखकर भंगुर हो जाती है l लोग मुसीबत हैं, परमेश्वर के स्वरुप में बनाए गए संगी मनुष्य नहीं l कुछ सही नहीं दिखता l

महसूस करके कि मैं यीशु के संग सम्बन्ध का आनंद न लेकर धर्म का अभ्यास कर रहा हूँ, अपना बोझ उतारकर उसके अनुग्रह के सहज लय” में उसके साथ चलने का समय है l

पंद्रह मिनट की चुनौती

लम्बे समय तक हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे, डॉ. चार्ल्स डब्ल्यू इलियट, मानते थे कि साधारण लोग भी निरंतर विश्व के महान साहित्य से कुछ मिनट प्रतिदिन पढ़कर अनमोल ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं l 1910 में, उन्होंने विश्व-साहित्यों से कुछ भाग चुनकर द हार्वर्ड क्लासिक्स नाम से पचास पुस्तकें संकलित कीं l पुस्तकों के हर सेट में डॉ. इलियट की “हर दिन पंद्रह मिनट” शीर्षक की पठन मार्गदर्शिका थी जिसमें पूरे वर्ष हर दिन आठ से दस पृष्ठ पढ़ने की सलाह थी l

कितना अच्छा होता यदि हम प्रतिदिन पन्द्रह मिनट परमेश्वर का वचन पढ़ते? हम भजनकार के साथ बोल पाते, “मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे l मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला” (भजन 119:36-37) l

प्रतिदिन पन्द्रह मिनट जुड़कर एक वर्ष में इक्यानवे घंटे हो जाते हैं l किन्तु हम बाइबिल पठन के लिए जितना भी समय देते हों, रहस्य निरंतरता और मुख्य सामग्री सिद्धता नहीं किन्तु दृढ़ता है l यदि हम एक दिन अथवा एक सप्ताह भूल जाते हैं, हम पुनः आरंभ करें l जैसे पवित्र आत्मा सिखाता है, परमेश्वर का वचन हमारे मस्तिष्क से हृदय को ओर, उसके बाद हमारे हाथों और पैरों तक अर्थात हमें ज्ञान से रूपांतरण तक ले जाता है l

“हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अंत तक पकड़े रहूँगा” (पद.33) l