विवाह के छियासठ वर्ष पूरे करके, नब्बे वर्षीय मेरा एक मित्र और उनकी पत्नी, ने अपने बच्चों, नाती-पोंतों और आनेवाली पीढ़ियों के लिए अपना पारिवारिक इतिहास लिखा l अंतिम अध्याय, “माता और पिता की ओर से एक पत्र,” में सीखे गए महत्वपूर्ण जीवन-पाठ हैं l एक से मैंने अपने जीवन-सूची पर विचार किया : “यदि आपको महसूस हो कि मसीहियत आपको थकाकर ऊर्जा छीनता है, तो आप यीशु मसीह के साथ सम्बन्ध का आनंद न लेकर धर्म का अभ्यास कर रहे हैं l प्रभु के साथ आप थकेंगे नहीं, वह आपको स्फूर्तिदायक, सामर्थी और क्रियाशील करेगा” (मत्ती 11:28-29) l

युजिन पिटरसन की व्याख्या अनुसार इस परिच्छेद में यीशु का निमंत्रण निम्नांकित है, “क्या तूम थककर टूट गए हो? धर्म को मानते हुए अक्रियाशील हो गए हो? … मेरे संग चलो और काम करो … अनुग्रह के सहज लय सीखो” (The Message) l

यह सोचकर कि परमेश्वर की सेवा मेरे ऊपर है, मैं उसके साथ  न चलकर, उसके लिए  काम करना आरंभ कर देता हूँ l एक महत्वपूर्ण अंतर है l मसीह के साथ नहीं चलने से, मेरी आत्मा सूखकर भंगुर हो जाती है l लोग मुसीबत हैं, परमेश्वर के स्वरुप में बनाए गए संगी मनुष्य नहीं l कुछ सही नहीं दिखता l

महसूस करके कि मैं यीशु के संग सम्बन्ध का आनंद न लेकर धर्म का अभ्यास कर रहा हूँ, अपना बोझ उतारकर उसके अनुग्रह के सहज लय” में उसके साथ चलने का समय है l