एक विषय पर विचारों में अंतर होने पर मैंने ई-मेल द्वारा अपनी सहेली का सामना किया किन्तु उसने उत्तर नहीं दिया l क्या मैंने हद पार कर दी थी? मैं उसको परेशान करके स्थिति को और बदतर नहीं बनाना चाहती थी, और उसकी विदेश यात्रा से पूर्व समस्या का समाधान चाहती थी l आनेवाले कुछ दिनों तक उसकी याद आने पर, मैंने आगे की बातें न जानते हुए भी उसके लिए प्रार्थना की l तब एक दिन स्थानीय पार्क में घूमते हुए मैंने उसे देखा l जब उसने मुझे देखा उसके चेहरे पर दर्द था l “प्रभु धन्यवाद, कि मैं उससे बातें कर सकती हूँ, मैं धीरे से बोलकर इच्छित हृदय से उसकी ओर बढ़ी l हम दोनों खुलकर बातें किये और समस्याएँ सुलझ गयीं l

कभी-कभी हमारे संबंधों में जब तकलीफ और खामोशी आ जाती है, उनको ठीक करना हमारे नियंत्रण से बाहर महसूस होता है l किन्तु जिस तरह प्रेरित पौलुस इफिसुस की कलीसिया को लिखता है, कि हमें अपने संबंधों में परमेश्वर की चंगाई को ढूंढते हुए, परमेश्वर की आत्मा द्वारा शांति और एकता के लिए, दीनता, नम्रता, और धीरज को धारण करने के लिए बुलाया गया है l प्रभु हममें एकता चाहता है, और उसकी आत्मा द्वारा वह अपने लोगों को एक कर सकता है-अनपेक्षित रूप से भी जब हम पार्क में घूमने जाते हैं l