मेरे शहर के एक चर्च में अद्वितीय स्वागत कार्ड सभी के लिए परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह दर्शाता है l उस पर लिखा है, “यदि आप एक . . . संत, पापी, पराजित, विजयी” – संघर्षरत लोगों के लिए अन्य शब्द – “शराबी, पाखंडी, धोखेबाज, भयभीत, बेमेल . . . . हैं, तो आपका स्वागत है l” एक पासबान ने कहा, “हम इस कार्ड को रविवारीय आराधना में ऊँची आवाज़ में मिलकर दोहराते हैं l”

कितनी बार हम खुद को परिभाषित करनेवाले उपनाम चुन लेते हैं l और हम कितनी सरलता से दूसरों को इनसे संबोधित करते हैं l किन्तु परमेश्वर का अनुग्रह उपनामों को चुनौती देता है क्योंकि वह हमारे आत्म-बोध में नहीं, उसके प्रेम में जड़वत है l  चाहे हम खुद को उत्कृष्ट या भयंकर, योग्य या अयोग्य महसूस करें, हम उससे अनंत जीवन का पुरस्कार प्राप्त कर सकते हैं l प्रेरित पौलुस ने रोम के विश्वासियों को स्मरण दिलाया कि “जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिए मारा” (रोमि. 5:6) l

परमेश्वर नहीं चाहता कि हम अपनी सामर्थ्य से बदलें l इसके बदले वह हमें हमारी यथास्थिति में आशा, चंगाई और स्वतंत्रता हेतु बुलाता है l “परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा” (पद.8) l प्रभु हमें हमारी यथास्थिति में स्वीकारने हेतु तैयार है l