कठिन समय में प्रार्थना
लेखक और धर्मशास्त्री रसेल मूर ने रूसी अनाथालय में भयानक सन्नाटे/चुप्पी पर ध्यान देने का वर्णन किया जहां से उन्होंने अपने लड़कों को गोद लिया था। बाद में किसी ने उन्हें बताया कि वहाँ बच्चों ने रोना इसलिए बंद कर दिया है क्योंकि उन्हें पता चल गया है कि कोई भी उनके रोने का जवाब नहीं देगा।
जब हम कठिन समय का सामना करते हैं, तो हम भी महसूस कर सकते हैं कि कोई नहीं सुनता। और सबसे बुरी बात यह है कि हम महसूस कर सकते हैं कि परमेश्वर स्वयं हमारी पुकार नहीं सुनता या हमारे आँसू नहीं देखता। लेकिन वह देखता है! और इसलिए हमें विनती और विरोध की भाषा की आवश्यकता है जो विशेष रूप से भजन संहिता की पुस्तक में पायी जाती है। भजनकार परमेश्वर से मदद के लिए विनती करते हैं और अपनी स्थिति का विरोध भी उससे करते हैं। भजन संहिता 61 में, दाऊद अपने सृष्टिकर्ता के सामने अपनी विनतियों और विरोधों को लाता है, यह कहते हुए, “मैं तुझे पुकारता हूं, मेरा हृदय मूर्छित हो जाता है; जो चट्टान मुझ से ऊंची है उस पर मुझको चलाI” (पद. 2) दाऊद परमेश्वर को पुकारता है क्योंकि वह जानता है कि केवल वही उसका "शरणस्थान" और "दृढ़ गढ़" हैI (पद. 3)
भजन संहिता में विनतियों और विरोधों के लिए प्रार्थना करना परमेश्वर की संप्रभुता की पुष्टि करने और उसकी अच्छाई और विश्वासयोग्यता की गुहार लगाने का एक तरीका है। वे उस आत्मीय/सुपरिचित संबंध के प्रमाण हैं जिसे हम परमेश्वर के साथ अनुभव कर सकते हैं। कठिन क्षणों में, हम सभी इस झूठ पर विश्वास करने के लिए प्रलोभित हो सकते हैं कि उसे हमारी परवाह नहीं है। लेकिन वह करता है। वह हमारी सुनता है और हमारे साथ है।
विलाप से स्तुति तक
मोनिका ने अपने बेटे के लिए प्रभु के पास लौटने के लिए बहुत उत्तेजना से प्रार्थना की। वह उसके गलत तौर तरीकों पर रोती थी और यहां तक कि उन विभिन्न शहरों में भी उसे ढूंढती थी जहां उसने रहना चुना था। स्थिति निराशाजनक लग रही थी। फिर एक दिन ऐसा हुआ: उसके बेटे का प्रभु से आमना सामना हो गया। और वह कलीसिया के सबसे महान धर्मशास्त्रियों में से एक बन गया। हम उसे हिप्पो के बिशप, ऑगस्टाइन के नाम से जानते हैं।
“कब तक प्रभु?” हबक्कूक 1:2। भविष्यवक्ता हबक्कूक ने सत्ता में बैठे लोगों के बारे में परमेश्वर की निष्क्रियता पर शोक व्यक्त किया जिन्होंने न्याय को बिगाड कर रखा था(पद 4) । उस समय के बारे में सोचें जब हम हताशा में परमेश्वर की ओर मुड़े हैं—अन्याय के कारण अपने विलाप को उसके सामने व्यक्त किया, एक निराशाजनक चिकित्सीय यात्रा, न रुकने वाले खर्चों से संघर्ष, या बच्चे जो परमेश्वर से दूर चले गए हैं।
जब भी हबक्कूक विलाप करता, परमेश्वर ने उसकी दोहाई सुनी। जब हम विश्वास में प्रतीक्षा करते हैं, तो हम अपने विलाप को स्तुति में बदलने के लिए भविष्यवक्ता से सीख सकते हैं, क्योंकि उसने कहा, “मैं प्रभु में आनन्दित रहूंगा, मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर में आनन्दित रहूंगा” (3:18)। वह परमेश्वर के तरीकों को नहीं समझता था, लेकिन उसने उस पर भरोसा किया। विलाप और स्तुति दोनों ही विश्वास के कार्य हैं, विश्वास की अभिव्यक्ति हैं। हम उसके चरित्र के आधार पर प्रभु से एक बिनती के रूप में विलाप करते हैं। और उसके बारे में हमारी स्तुति इस पर आधारित है कि वह कौन है– हमारा अद्भुत, सर्वशक्तिमान परमेश्वर। एक दिन उनकी कृपा से हर विलाप स्तुति में बदल जाएगा।
छुड़ाने वाला परमेश्वर
एक प्रवचन चित्रण के हिस्से के रूप में, मैं उस खूबसूरत पेंटिंग की ओर चल पड़ा जिसे एक कलाकार मंच पर बना रहा था।और मैंने उसके बीच में एक काली लकीर बना दी। पूरी कलीसिया डर से हैरान हो गई। कलाकार बस खड़ी रही और देखती रही कि मैंने उसके द्वारा बनाई गई चीज़ों को बिगाड़ दिया है। फिर, उसने एक नए ब्रश को चुना और प्यार से खराब हुई पेंटिंग को कला के उत्कृष्ट काम में बदल दिया।
उसका पुनर्स्थापना (पहले जैसे बना देने) का कार्य मुझे उस कार्य की याद दिलाता है जिसे परमेश्वर हमारे जीवन में कर सकता है जब हम गडबडी करते हैं। भविष्यद्वक्ता यशायाह ने इस्राएल के लोगों को उनके आत्मिक अंधेपन और बहरेपन के लिए फटकार लगाई (यशायाह 42:18–19); लेकिन फिर उसने परमेश्वर के छुटकारे और पाप से मुक्ति की आशा की घोषणा की, “मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है” (43:1)| वह हमारे लिए भी ऐसा ही कर सकता है हमारे पाप करने के बाद भी यदि हम अपने पापों को अंगीकार करते हैं और परमेश्वर की ओर फिरते हैं, तो वह हमें क्षमा करता है और पुनर्स्थापित करता है (5–7; 1 यूहन्ना 1:9 देखें)। हम गंदगी से सुंदरता को बाहर नहीं ला सकते, लेकिन यीशु कर सकते हैं। सुसमाचार का शुभ समाचार यह है कि उसने अपने लहू के द्वारा हमें छुड़ाया है। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक हमें आश्वासन देती है कि अंत में, मसीह हमारे आँसू पोंछ डालेगा, पहली बातें मिटा देगा, और सब कुछ नया बना देगा (प्रकाशितवाक्य 21:4–5)।
हमारे पास अपनी कहानी के बारे में एक सीमित दृष्टि है। परन्तु परमेश्वर जो हमें “नाम से” जानता है (यशायाह 43:1), हमारे जीवन को हमारी कल्पना से भी अधिक सुंदर बना देगा। यदि आपको यीशु में विश्वास के द्वारा छुड़ाया गया है, तो आपकी कहानी का उस चित्र की तरह एक शानदार अंत है।
दैनिक निर्भरता
एक सुबह हमारे छोटे बच्चों ने जल्दी उठने और खुद के लिए नाश्ता बनाने का निर्णय लिया। कठिन सप्ताह से थके हुए, उस शनिवार की सुबह मैं और मेरी पत्नी कम से कम 7 बजे तक सोने की कोशिश कर रहे थे। अचानक मैंने एक तेज आवाज सुनी! मैं बिस्तर पर से कूदा और बिखरा हुआ नीचे की ओर दौड़ा, और देखा, टूटा कटोरा,पूरे फर्श पर दलिया, और योना-हमारा पांच साल का-( अधिक गंदगी फैलाने वाला प्रतीत हो रहा था) फ़र्श पर झाडू लगाने की पूरी कोशिश कर रहा था। मेरे बच्चे भूखे थे, पर उन्होंने मदद न मांगने का निर्णय लिया था। निर्भरता के साथ पहुंचने के बजाय उन्होंने आत्मनिर्भरता को चुना, और परिणाम निश्चित रूप से एक अच्छा पकवान नहीं था।
मानवीय दृष्टि से, बच्चे निर्भरता से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए हैं। लेकिन परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते में, परिक्वता मतलब आत्मनिर्भरता से उस पर निर्भरता की ओर बढ़ना। प्रार्थना वह जगह है जहाँ हम ऐसे निर्भरता के तरीकों का अभ्यास करते हैं। जब यीशु ने अपने चेलों को सिखाया - और हम सबको जो उस पर विश्वास करने आते है —प्रार्थना करना सिखाया, हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे। (मत्ती 6:11), वह एक निर्भरता की प्रार्थना सिखा रहे थे। रोटी जीविका, उद्धार और मार्गदर्शन के लिए एक रूपक है (vv.11-13)। हम इन सब के लिए और बहुत कुछ के लिए परमेश्वर पर निर्भर है।
यीशु में कोई स्व-निर्मित विश्वासी नहीं हैं, और हम उसकी अनुग्रह से कभी स्नातक नहीं होंगे। हमारे पूरे जीवन में, जब हम “हमारे पिता ..जो स्वर्ग में है; ..” (v.9) से प्रार्थना करते हैं हम हमेशा अपने दिन की शुरुआत निर्भरता की दशा में होकर करें।
बुद्धिमान या मूर्ख?
बैंड का संगीत था l मेरे पिताजी, जिनका पालन-पोषण एक हिन्दू घर में हुआ था, लेकिन जिन्होंने यीशु में उद्धार प्राप्त किया था, को यह मंजूर नहीं था l वे चाहते थे कि हमारे घर में केवल आराधना संगीत बजे l मैंने समझाया कि यह एक मसीही बैंड था, लेकिन इससे उनका विचार नहीं बदला l थोड़ी देर बाद, उन्होंने सुझाव दिया कि मैं एक सप्ताह के लिए उन गीतों को सुनूँ और फिर तय करूँ कि क्या वे मुझे परमेश्वर के करीब लाए या मुझे उनसे और दूर कर दिया l उस सलाह में कुछ उपयोगी बुद्धिमता थी l
जीवन में बातें हैं जो स्पष्ट रूप से सही या गलत हैं, लेकिन कई बार हम विवादास्पद विषयों के साथ जूझते हैं (रोमियों 14:1-19) l निर्णय करने में कि क्या करना चाहिए, हम अवश्य ही पवित्र बाइबल में निहित बुद्धि ढूंढ़ते हैं l पौलुस ने इफिसुस के विश्वासियों को उत्साहित किया, “ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमानों के समान चलो” (इफिसियों 5:15) l एक अच्छे अभिभावक की तरह, पौलुस जानता था कि वह संभवतः वहां नहीं हो सकता या हर स्थिति के लिए निर्देश नहीं दे सकता था l यदि वे “अवसर को बहुमूल्य [समझेंगे], क्योंकि दिन बुरे हैं,” उन्हें स्वयं ही अपने लिए निर्णय लेना होगा और “[समझना होगा कि] प्रभु की इच्छा क्या है” (पद.16-17) l बुद्धिमत्ता का जीवन विवेक और अच्छे निर्णयों को आगे बढ़ाने के लिए एक निमंत्रण है जब परमेश्वर तब भी हमारा मार्गदर्शन करता है जब हम मतभेद या तर्क-वितर्क के साथ जूझते हैं l
योजनाएं और मितव्ययिती
२००० में, एक नयी बढ़ती कंपनी ने अपनी कंपनी को ३७५ करोड़ रुपये में दूसरी कंपनी को बेचने की पेशकश की, होम मूवीज़ और वीडियो गेम रेंटल जो उस समय पर राजा जैसे थे। इस कंपनी नेटफ्लिक्स के लगभग ३,००,००० ग्राहक थे, जबकि बड़ी मूवी रेंटल कंपनी के पास लाखों और लाखों थे। इस कंपनी ने अपने छोटे प्रतियोगी को खरीदने का अवसर आगे बढ़ा दिया। परिणाम? आज नेटफ्लिक्स के १८ करोड़ से अधिक ग्राहक हैं और इसकी कीमत लगभग १५ लाख करोड़ रुपये है। जहां तक दूसरी कंपनी की बात है,जिसको वें बेचना चाहते थे, . . यह गिर गयी। हममें से कोई भी भविष्य में क्या होगा नहीं जान सकता।
हम यह मानने के लिए प्रलोभन में होते हैं कि हमारा जीवन हमारे नियंत्रण में हैं और भविष्य के लिए हमारी योजनाएँ सफल होंगी। परन्तु याकूब कहता है, " तुम तो भाप के समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है फिर लोप हो जाती है" (४:१४)। जीवन जितना हम अक्सर महसूस करते हैं, उससे अधिक संक्षिप्त, त्वरित और अधिक नाजुक होता है। योजना बनाना आवश्यक है, लेकिन अनुमान का पाप इस धारणा में है कि हमारे हाथ में नियंत्रण में हैं। यही कारण है कि याकूब हमें चेतावनी देता है कि "[हमारी] अभिमानी योजनाओं में डींग न मारे," क्योंकि "ऐसा सब घमण्ड बुरा है" (पद १६)।
इस पापपूर्ण अभ्यास से बचने का तरीका है ईश्वर के साथ कृतज्ञ भागीदारी। कृतज्ञता हमें याद दिलाती है कि वह हर "अच्छे और सिद्ध वरदान" का स्रोत है (१:१७)। फिर जब हम परमेश्वर के पास आते हैं, तो हम उससे केवल हमारी वर्तमान और भविष्य की योजनाओं को आशीष देने के लिए नहीं बल्कि जो वह कर रहे हैं उसमें शामिल होने में हमारी सहायता करने के लिए कहते हैं। प्रार्थना करने का यही अर्थ है, "यदि प्रभु की इच्छा हो तो" (४:१५)।
योजनाएं और मितव्ययिती
२००० में, एक नयी बढ़ती कंपनी ने अपनी कंपनी को ३७५ करोड़ रुपये में दूसरी कंपनी को बेचने की पेशकश की, होम मूवीज़ और वीडियो गेम रेंटल जो उस समय पर राजा जैसे थे। इस कंपनी नेटफ्लिक्स के लगभग ३,००,००० ग्राहक थे, जबकि बड़ी मूवी रेंटल कंपनी के पास लाखों और लाखों थे। इस कंपनी ने अपने छोटे प्रतियोगी को खरीदने का अवसर आगे बढ़ा दिया। परिणाम? आज नेटफ्लिक्स के १८ करोड़ से अधिक ग्राहक हैं और इसकी कीमत लगभग १५ लाख करोड़ रुपये है। जहां तक दूसरी कंपनी की बात है,जिसको वें बेचना चाहते थे, . . यह गिर गयी। हममें से कोई भी भविष्य में क्या होगा नहीं जान सकता।
हम यह मानने के लिए प्रलोभन में होते हैं कि हमारा जीवन हमारे नियंत्रण में हैं और भविष्य के लिए हमारी योजनाएँ सफल होंगी। परन्तु याकूब कहता है, " तुम तो भाप के समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है फिर लोप हो जाती है" (४:१४)। जीवन जितना हम अक्सर महसूस करते हैं, उससे अधिक संक्षिप्त, त्वरित और अधिक नाजुक होता है। योजना बनाना आवश्यक है, लेकिन अनुमान का पाप इस धारणा में है कि हमारे हाथ में नियंत्रण में हैं। यही कारण है कि याकूब हमें चेतावनी देता है कि "[हमारी] अभिमानी योजनाओं में डींग न मारे," क्योंकि "ऐसा सब घमण्ड बुरा है" (पद १६)।
इस पापपूर्ण अभ्यास से बचने का तरीका है ईश्वर के साथ कृतज्ञ भागीदारी। कृतज्ञता हमें याद दिलाती है कि वह हर "अच्छे और सिद्ध वरदान" का स्रोत है (१:१७)। फिर जब हम परमेश्वर के पास आते हैं, तो हम उससे केवल हमारी वर्तमान और भविष्य की योजनाओं को आशीष देने के लिए नहीं बल्कि जो वह कर रहे हैं उसमें शामिल होने में हमारी सहायता करने के लिए कहते हैं। प्रार्थना करने का यही अर्थ है, "यदि प्रभु की इच्छा हो तो" (४:१५)।
स्वर समता(symphony) की तरह
मैंने अपनी पत्नी को संगीत समारोह(concert) के टिकट के साथ उस आदाकार को सुनने के लिए जिसे वह हमेशा देखना चाहती थी आश्चर्यचकित कर दिया l प्रतिभाशाली गायक के साथ सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा था, और विन्यास समुद्र तल से 6,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर दो 300 फीट चट्टान की संरचनाओं के बीच निर्मित एक खुली रंगभूमि(open-air amphitheater) थी l ऑर्केस्ट्रा ने अनेक अति पसंदीदा उत्कृष्ट गाने और लोक धुन बजाए l उनका अंतिम प्रस्तुति उत्कृष्ट गीत “फज़ल अजीब(Amazing Grace)” का नूतन मिरुपण था l खूबसूरत, स्वर योजन विन्यास ने हमें अचंभित कर दिया!
समरसता(harmony) के बारे में कुछ खूबसूरत है──व्यक्तिगत साजों का इस प्रकार बजना जो एक बड़ा और अधिक परतदार ध्वनि परिदृश्य उत्पन्न करता है l प्रेरित पौलुस ने समरसता (harmony) की ओर इंगित किया जब उसने फिलिप्पियों को “एक, मन,” “एक ही प्रेम,” और “एक ही चित्त और एक मनसा” रखने के लिए कहा (फिलिप्पियों 2:2) l वह उन्हें एक जैसा बनने को नहीं कह रहा था लेकिन नम्र स्वभाव और यीशु के आत्म-बलिदानी प्रेम को गले लगाने के लिए कह रहा था l सुसमाचार, जिस तरह पौलुस जानता और सिखाता था, हमारे विभेद को मिटाता नहीं है, लेकिन वह हमारे मतभेदों/विभाजनों को समाप्त कर सकता है l
यह भी रुचिकर है कि अनेक विद्वान् यहाँ पर (पद.6-11) पौलुस के शब्दों को एक प्राचीन गीत के आरम्भ के रूप मानते हैं l मुद्दा यह है : जब हम पवित्र आत्मा को हमारे विशिष्ट जीवनों और सन्दर्भों में होकर काम करने देते हैं, जो हमें और अधिक यीशु के समान बनाता है, मिलकर हम एक समरसता(harmony) बन जाते हैं जो मसीह के नम्र प्रेम के साथ गुंजायमान होता है l
अंधकार का सामना
1960 के दशक के मध्य में, दो लोगों ने मानव मानस पर अंधेरे के प्रभावों पर शोध में भाग लिया l उन्होंने अलग-अलग गुफाओं में प्रवेश किया, जबकि शोधकर्ताओं ने उनके खाने और सोने की आदतों पर नज़र रखी l एक 88 दिनों तक, दूसरा 126 दिनों तक पूर्ण अंधेरे में रहा l प्रत्येक ने अनुमान लगाया कि वे कितने समय तक अंधेरे में रह सकते हैं और महीनों तक परे रहे l एक ने सोचा कि वह केवल एक झपकी ले रहा था, केवल यह जानने के लिए कि वह 30 घंटे तक सोया l अंधेरा गुमराह करता है l
परमेश्वर के लोगों ने खुद को आसन्न निर्वासन के अंधेरे में पाया l इस बात से अनिश्चित रहकर, उन्होंने इंतजार किया कि क्या होनेवाला था l यशायाह ने उनके भटकाव के लिए रूपक के तौर पर और परमेश्वर के न्याय के बारे में बोलने के तरीके के रूप में अंधेरे का उपयोग किया (यशायाह 8:22) l इससे पहले, मिस्रियों पर एक महामारी के रूप में अंधेरा आया था (निर्गमन 10:2129) l अब इस्राएल ने खुद को अंधेरे में पाया l
लेकिन एक रोशनी आनेवाली थी l “जो लोग अंधियारे में चल रहे थे उन्होंने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी” (यशायाह 9:2) l उत्पीड़न समाप्त होनेवाला था, और भटकाव खत्म होनेवाला था l एक बालक सब कुछ बदलने और एक नया दिन लाने के लिए आनेवाला था─क्षमा और छुटकारे का दिन (पद. 6) l
सचमुच यीशु आया! और यद्यपि संसार का अंधकार गुमराह करनेवाला हो सकता है, हम मसीह में मिलने वाले क्षमा, छुटकारा, और ज्योति में आराम का अनुभव करें l