धीमा लेकिन निश्चित
मैं एक पुराने दोस्त के पास गया जिसने मुझे बताया कि वह क्या कर रहा है, लेकिन मैं मानता हूं कि वह इतना अच्छा लग रहा रहा था पर सच नहीं l हालांकि, उस बातचीत के कुछ महीनों के भीतर, उसका बैंड(band) हर जगह था - रेडियो पर शीर्ष एकल स्थिति अंकित करने से लेकर टीवी विज्ञापनों के अंतर्गत एक हिट गाने के स्पंदित होने तक । प्रसिद्धि तक उसकी उन्नति त्वरित थी ।
हम महत्व और सफलता से ग्रस्त हो सकते हैं – बड़ा और नाटकीय, त्वरित और आकाशी l लेकिन सरसों के बीज और खमीर के दृष्टांत राज्य (पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य) के तरीके की तुलना छोटी, छिपी हुई, और महत्वहीन प्रतीत होने वाली चीजों से होती है जिनका काम धीमा और नियमित है ।
राज्य अपने राजा की तरह है । मसीह का मिशन उसके जीवन में एक बीज की तरह, पराकाष्ठा पर पहुंचा, जो जमीन में दफन किया गया; खमीर की तरह, आटे में छिपा हुआ l फिर भी वह जीवित हो उठा l जैसे कोई पेड़ मिटटी से बाहर निकल रहा हो, जैसे रोटी जब उसे गर्मी मिलती है l यीशु जी उठा l
हमें उसके मार्ग के अनुसार जीने के लिए आमंत्रित किया गया है, मार्ग जो कायम रहने वाला और सभी जगह फैलने वाला है l परीक्षाओं का सामना करके मामलों को अपने हाथों में लेते हुए, सामर्थ्य को पकड़ने का प्रयास करते हुए, उससे निकले परिणाम द्वारा संसार में अपने व्यवहार को न्यायसंगत ठहराना l परिणाम – “एक ऐसा पेड़ . . . कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा [करें]” (पद.32) और रोटी जो भोज का प्रबंध करती है – मसीह का कार्य होगा, हमारा नहीं l
अंत से शुरू करें
“आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं?” मुझसे एक बच्चे के रूप में अक्सर यह सवाल पुछा जाता था l और जबाब हवा की तरह बदल जाते थे l एक चिकित्सक l दमकर कर्मी l एक मिशनरी l किसी आराधना का अगुआ l एक भौतिक विज्ञानी – या एक पसंदीदा टीवी चरित्र l अब, चार बच्चों के पिता के रूप में, मुझे लगता है कि उनसे ये सवाल पूछना कितना मुशिकल होगा l ऐसे समय होते हैं जब मैं कहना चाहता हूँ, “मुझे पता है कि तुम किसमें महान बनोगे!” माता-पिता कभी-कभी अपने वच्चों में अधिक देख सकते हैं, जो बच्चे स्वयं में नहीं देख सकते हैं l
फिलिप्पियों के विश्वासियों में पौलुस ने जो देखा, उससे यह समझ में आता है – वे जिनसे वह प्यार करता था और जिनके लिए प्रार्थना करता था (फिलिप्पियों 1:3) l वह अंत देख सकता था; वह जानता था कि जब सब कहा और किया जाएगा तो वे कैसे होंगे l बाइबल हमें कहानी के अंत का भव्य दर्शन देती है - पुनरुत्थान और सभी चीजों का नवीकरण (देखें 1 कुरिन्थियों 15 और प्रकाशितवाक्य 21) l लेकिन यह हमें यह भी बताती है कि कहानी कौन लिख रहा है l
पौलुस ने जेल से लिखे एक पत्र की शुरूआती पंक्तियों में, फिलिप्पी की कलीसिया को याद दिलाया कि “जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलिप्पियों 1:6) l यीशु ने काम शुरू किया और वही इसे पूरा करेगा l शब्द पूरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है – कहानी सिर्फ पूरी नहीं होती, क्योंकि परमेश्वर कुछ भी अधुरा नहीं छोड़ता है l
मित्रवत मीनपक्ष(Friendly Fin)
एक समुद्रीय जीवविज्ञानी तैर रही थी, जब 50,000 पौंड की व्हेल अचानक दिखाई दी और उसे अपने मीनपक्ष(fin) में छिपा लिया l महिला को लगा कि उसकी ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी है l लेकिन हलकों(circle) में धीरे-धीरे तैरने के बाद, व्हेल ने उसे जाने दिया l यह तब जब जीवविज्ञानी ने एक शार्क को वह क्षेत्र छोड़ते देखा l महिला का मानना है कि व्हेल उसकी रक्षा कर रही थी – उसे खतरे से बचाकर l
खतरे के संसार में, हमें दूसरों की देखभाल करने के लिए बुलाया जाता है l लेकिन आप अपने आप से पूछ सकते हैं, क्या मुझे वास्तव में किसी और के लिए जिम्मेदार होने की उम्मीद करनी चाहिये? या कैन के शब्दों में : “क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?” (उत्पत्ति 4:9) l पुराने नियम का बाकी हिस्सा गरजनेवाली प्रतिक्रिया के साथ गूंज उठता है : हाँ! जैसे आदम को बगीचे की देखभाल करनी थी, वैसे ही कैन को हाबिल की देखभाल करनी थी l इस्राएल को कमज़ोर लोगों और ज़रुरतमंदों की देखभाल करनी थी l फिर भी उन्होंने विपरीत काम किया – लोगों का शोषण किया, गरीबों पर अत्याचार किया, और अपने पड़ोसियों से अपने समान प्रेम करने के आह्वान को त्याग दिया (यशायाह 3:14-15) l
फिर भी, कैन और हाबिल की कहानी में, परमेश्वर कैन को दूर भेज दिये जाने के बाद भी उस पर नज़र रखना जारी रखा (उत्पत्ति 4:15-16) l परमेश्वर ने कैन के लिए जो किया वह कैन को हाबिल के लिए करना चाहिये था l यह यीशु में परमेश्वर का एक सुन्दर पूर्वाभास है जो वह हमारे लिए करने वाला था l यीशु हमें अपने देखभाल में रखता है, और वह हमें जाकर दूसरों के लिए उसी तरह करने में समर्थ बनाता है l
दास सुनता है
अगर वायरलेस रेडियो चालू होता, तो उन्हें पता चल जाता कि टाइटैनिक डूब रहा है l एक अन्य जहाज के रेडियो ऑपरेटर सिरिल इवांस ने टाइटैनिक के रेडियो ऑपरेटर जैक फिलिप्स को एक संदेश भेजने की कोशिश की थी - उन्हें बताने के लिए कि वे बर्फ के एक बड़े तैरते टुकड़े का सामना कर चुके हैं l लेकिन टाइटैनिक का रेडियो ऑपरेटर यात्रियों के संदेशों को आगे भेजने में व्यस्त था और उसने उसे रुखाई से चुप रहने को कहा l इसलिए दूसरे ऑपरेटर ने अनिच्छा से अपने रेडियो को बंद कर दिया और सोने चला गया l दस मिनट बाद, टाइटैनिक ने बर्फ के एक चट्टान से टकराया l उनके संकट के संकेत के कोई उत्तर नहीं मिले क्योंकि कोई भी नहीं सुन रहा था l
1 शमूएल में हमने पढ़ा कि इस्राएल के याजक भ्रष्ट थे और राष्ट्र के खतरे में पड़ने के कारण उनकी आध्यात्मिक दृष्टि और सुनने की शक्ति ख़त्म हो गए थे l “उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ था, और दर्शन कम मिलता था” (1 शमूएल 3:1) l फिर भी परमेश्वर अपने लोगों को नहीं छोड़ने वाला था l उसने शमूएल नाम के एक युवा लड़के से बात करनी शुरू की, जिसका पालन पोषण याजक के घर में किया जा रहा था l शमूएल के नाम का अर्थ है “परमेश्वर सुनता है” – परमेश्वर द्वारा उसकी माँ की प्रार्थना सुनने का स्मारक l लेकिन शमूएल को सीखना था कि परमेश्वर को कैसे सुनना होगा l
“कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है l” (पद.10) l यह दास ही है जो सुनता है l हम भी सुनने और पवित्रशास्त्र में परमेश्वर द्वारा प्रगट बातों को माने l आइये हम उसको अपना जीवन समर्पित करें और दीन सेवकों की तरह व्यवहार करें - जिनके “रेडियो” चालू हैं l
एक महान कार्य
सुरक्षा गार्ड ने टेप का एक टुकड़ा देखकर उसे हटा दिया जो एक दरवाजे को बंद होने से रोक रहा था l बाद में, जब उसने दरवाजे को जांचा, तो पाया कि इसमें फिर से टेप लगा दिया गया था l उसने पुलिस को फोन किया, जिन्होंने पांच चोरों को गिरफ्तार किया l
वाशिंगटन डी.सी. अमेरिका में, एक प्रमुख राजनीतिक दल के मुख्यालय, वाटरगेट भवन में काम करते हुए, युवा गार्ड ने केवल अपनी नौकरी को गंभीरता से लेते हुए और उसे अच्छी तरह से करते हुए अपने जीवन के सबसे बड़े राजनीतिक घोटाले को उजागर किया था l
नहेम्याह ने यरूशलेम के चारों ओर की दीवार को फिर से बनाना शुरू किया — एक ऐसा काम जिसे उसने बहुत गंभीरता से लिया l प्रोजेक्ट के अंत में, पड़ोसी प्रतिद्वंद्वियों ने उससे पास के एक गाँव में मिलने के लिए कहा l एक दोस्ताना निमंत्रण की आड़ में एक घातक जाल था (नहेम्याह 6: 1-2) l फिर भी नहेम्याह की प्रतिक्रिया से उसके दृढ़ विश्वास की गहराई का पता चलता है : “मैं तो भारी काम में लगा हूँ, वहां नहीं जा सकता; मेरे इस छोड़कर तुम्हारे पास जाने से वह काम क्यों बंद रहे?’ (पद.3) l
हालाँकि वह निश्चित रूप से कुछ अधिकार रखता था, लेकिन नहेम्याह ने नायक के पैमाने पर बहुत ऊंचे श्रेणी में नहीं होगा l वह एक महान योद्धा नहीं था, कवि या नबी नहीं था, राजा या ज्ञानी नहीं था l वह एक पियाऊ/साकी(cup-bearer) था जो ठेकेदार बन गया था l फिर भी वह मानता था कि वह परमेश्वर के लिए कुछ महत्वपूर्ण कर रहा है l काश हम उसे गंभीरता से लें जो उसने हमें उसकी शक्ति और प्रावधान में करने के लिए दिया है l
परमेश्वर के संसार को उन्नत करना
“पापा, आपको काम पर क्यों जाना है?” मेरी किशोरी पुत्री का सवाल मेरे साथ उसके खेलने की उसकी इच्छा से प्रेरित था l मैं काम को छोड़कर उसके साथ समय बिताना पसंद करता, लेकिन काम की लम्बी बढ़ती सूची थी जिन पर मुझे ध्यान देना ज़रूरी था l सवाल, फिर भी, अच्छा है l हम काम क्यों करते हैं? क्या ये केवल अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए प्रबंध करना है? उस श्रम के विषय क्या जो अवैतनिक है – हम ऐसा क्यों करते हैं?
उत्पत्ति 2 हमें बताता है कि परमेश्वर ने पहले मानव को वाटिका में इसलिए रखा कि वह “उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे” (पद.15) l मेरे ससुर एक किसान हैं, और वह अक्सर मुझसे भूमि और पशुधन के प्रति अपने सच्चे प्यार के विषय बताते हैं l यह सुन्दर है, लेकिन यह उनके लिए अनवरत सवाल छोड़ देता है जो अपने काम से प्यार नहीं करते हैं l क्यों परमेश्वर ने हमें एक ख़ास स्थान पर एक ख़ास काम के साथ रखा है?
उत्पत्ति 1 हमें उत्तर देता है l हमें परमेश्वर के स्वरुप में रचा गया है कि हम उसके द्वारा बनाए गयी सृष्टि की सावधानी से रखवाली करें (पद.26) l सृष्टि की रचना की गैर-मसीही कहानियाँ बताती हैं कि ‘कथित ईश्वरों” ने मनुष्यों को अपने दास होने के लिए बनाया है l उत्पत्ति घोषणा करती है कि एकमात्र सच्चे परमेश्वर ने मनुष्यों को अपना प्रतिनिधि बनाया है – उसके पक्ष में उसकी सृष्टि की देखभाल करने के लिए l काश हम सब उसकी बुद्धिमान और प्रेमी व्यवस्था को इस संसार में प्रतिबिंबित करें l काम परमेश्वर के संसार में उसकी महिमा के लिए उसे उन्नत करने की एक बुलाहट है l
कीमती आनंद
डिजिटल स्वर की मधुरता पर, हम सभी छह जन हरकत में आ गए l कुछ ने जूते पहन लिए, दूसरे नंगे पाँव दरवाजे की ओर दौड़े l पल भर में हम सभी तेजी से नीचे दौड़ते हुए सड़क पर आइसक्रीम के ट्रक का पीछा कर रहे थे l यह गर्मी के मौसम का पहला गर्म दिन था, और ठन्डे, मीठे दावत(treat) के साथ जश्न मनाने का इससे अच्छा तरीका नहीं था! ऐसे चीजें हैं जो हम आनंद के कारण करते हैं, अनुशासन या दायित्व के कारण नहीं l
मत्ती 13:44-46 में पाए गए दृष्टान्तों की जोड़ी में, कुछ पाने के लिए सब कुछ बेचने पर बल दिया गया है l हम सोचते होंगे कि ये कहानियां त्याग के विषय है l लेकिन वह बात नहीं है l वास्तव में, पहली कहानी यह घोषणा करती है कि यह “आनंद” था जिसके कारण उस आदमी को सब कुछ बेचकर खेत खरीदना पड़ा l आनंद परिवर्तन लाता है – अपराध बोध या फ़र्ज़ नहीं l
यीशु हमारे जीवनों का एक खण्ड नहीं है; उसका पूरा दावा हम पर है l कहानियों में दोनों पुरुषों ने “सब कुछ” बेच दिया (पद.44) l लेकिन यहाँ पर सबसे अच्छा हिस्सा है : सब कुछ बेचने का वास्तविक परिणाम लाभ है l शायद हमने अनुमान नहीं लगाया होगा l क्या मसीही जीवन क्रूस उठाने के विषय नहीं है? हाँ l यह है l लेकिन जब हमारी मृत्यु होती है, हम जीते हैं ; जब हम अपना जीवन खो देते हैं, तो हम इसे पा लेते हैं l जब हम “सब कुछ बेच देते है,” हम सबसे बड़ा धन पाते हैं : यीशु! आनंद ही कारण है; समर्पण प्रत्युत्तर है l
यीशु को जानना इनाम है l
खुद को कम आंकना
वह युवा अपनी टीम का कप्तान बन गया l पेशेवर स्पोर्ट्स दल का नेतृत्व अब मृदुल-शिष्ट युवा कर रहा था, जिसे शायद ही दाढ़ी बनाने की ज़रूरत थी l उसकी पहली प्रेस कांफ्रेंस प्रभावशाली नहीं थी l वह अपने कोच और अपने साथियों की ओर झुका रहा, और वह अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा है के विषय घिसा पिटा उत्तर बुदबुदाता रहा l टीम ने उस मौसम में खराब प्रदर्शन किया, और इसके अंत तक युवा कप्तान बदल दिया गया l वह यह नहीं समझ पाया कि नेतृत्व करने का अधिकार उसे सौंपा गया है, या शायद उसे कभी विश्वास नहीं हुआ कि वह ऐसा कर सकता है l
अपनी विफलताओं के कारण, शाऊल “अपनी [ही] दृष्टि में छोटा था” (1 शमूएल 15:17) – जो एक आदमी के बारे में कहने के लिए एक मजेदार बात है जिसे लम्बा बताया गया है l वह वास्तव में उल्लेखनीय रूप से बाकी लोगों से बेहतर था (9:2) l फिर भी वह उस तरीके से अपने को नहीं देखता था l वास्तव में, उस अध्याय में उसके कार्यों ने उसे लोगों की स्वीकृति जीतने की कोशिश करते हुए दिखाया है l वह पूरी तरह से समझ नहीं पाया था कि परमेश्वर ने – लोगों ने नहीं - उसे चुना था और उसे एक मिशन(उद्देश्य) दिया था l
लेकिन शाऊल की गलती हर इंसान की विफलता की एक तस्वीर है : हम भूल सकते हैं कि उसके राज्य को प्रतिबिंबित करने के लिए हम परमेश्वर के स्वरुप में बनाए गए हैं, और ऐसा न हो कि हम अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हुए अंत करें अर्थात् संसार में विनाश l इसे पूर्ववत करने के लिए, हमें परमेश्वर की ओर लौटने की आवशयकता है : पिता को हमें अपने प्रेम से परिभाषित करने दें, उसे हमें अपनी आत्मा से भरने दें, और यीशु को हमें दुनिया में भेजने दें l
जहां चुनाव ले जाता है
किसी भी मोबाइल सेवा और मार्ग नक़्शे के बिना, हम आरम्भ से ही एक निश्चित नक़्शे की याद रखकर उसी के मार्गदर्शन में चल रहे थे l एक घंटे से अधिक समय के बाद, हम जंगल में से पार्किंग स्थल में पहुँच गए l मोड़ को भूलने पर जिससे हम आधी मील के भीतर यात्रा पूरी कर लेते, हमें कहीं अधिक लम्बी पैदल यात्रा करनी पड़ी l
जीवन ऐसा हो सकता है : हमें सरलता से यह नहीं पूछना है कि क्या कुछ सही है या गलत, परन्तु यह कहाँ ले जाएगा l भजन 1 जीवन जीने के दो तरीकों की तुलता करता है – धर्मी का (वे जो परमेशवर से प्यार करते हैं) और दुष्ट का (परमेश्वर से प्रेम करनेवालों के शत्रु) l धर्मी वृक्ष के समान फलते-फूलते हैं, परन्तु दुष्ट भूसी के समान उड़ जाते हैं (पद.3-4) l यह भजन प्रगट करता है कि फलना फूलना वास्तव में कैसा होता है l जो ऐसा जीवन जीता है वह नवीनीकरण और जीवन के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहता है l
इसलिए हम किस प्रकार इस प्रकार का व्यक्ति बन सकते हैं? दूसरी चीजों में, भजन 1 हमसे विनाशकारी संबंधों और अस्वास्थ्यकर आदतों से अलग रहने और परमेश्वर के निर्देशों में आनंदित रहने का आग्रह करता है (पद.2) l आखिरकार, हमारे फलने फूलने का कारण परमेश्वर का हम पर ध्यान देना है : “यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है” (पद.6) l
अपने सारे मार्ग परमेश्वर पर डाल दो
,
उसे पुराने नमूनों से आपको पुनः निर्दिष्ट(
re-direct)
करने दें जो व्यर्थ की ओर ले जाते हैं और पवित्र वचन को दरिया बनने दें जो आपके हृदय की जड़ प्रणाली को पोषित करता है
l