निर्देश स्वीकारना
जब हम खलिहान में खड़े थे जहाँ मेरी मित्र मिशेल मेरी बेटी को घोड़े की सवारी करना सिखा रही थी, तो वहाँ हवा से चमड़े और घास की गंध आ रही थी। जब मिशेल ने यह दिखाया कि लगाम को घोड़े के दांतों के पीछे कैसे रखा जाता है तो उस समय पर मिशेल के सफेद टट्टू (छोटा घोड़ा) ने अपना मुँह खोल दिया। जैसे ही मेरी बेटी ने उसके कानों पर लगी लगाम खींची, तो मिशेल ने उसे समझाया कि लगाम इसलिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इससे सवार को घोड़े को धीमा करने और उसे बाईं या दाईं ओर चलाने का अधिकार मिलता है।
घोड़े की लगाम, मनुष्य की जीभ की तरह ही, छोटी परन्तु महत्वपूर्ण होती है। दोनों ही का किसी बड़ी और शक्तिशाली वस्तु पर बहुत अधिक प्रभाव होता है— और लगाम के मामले में, यह घोड़ा होता है। जीभ के मामले में, यह हमारे शब्द होते हैं (याकूब 3:3, 5)।
हमारे शब्द अलग-अलग दिशाओं में दौड़ सकते हैं। “इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं, और इसी से मनुष्यों को...श्राप देते हैं” (पद 9)। दुर्भाग्य से, बाइबल इस बात की चेतावनी देती है कि हमारी बोली (बात-चीत) को नियंत्रित करना बहुत कठिन है क्योंकि शब्द हमारे हृदयों से निकलते हैं (लूका 6:45)। इस बात के लिए धन्यवाद हो कि प्रत्येक विश्वासी में वास करने वालापरमेश्वर का आत्मा, हमें धीरज, भलाई और संयम में उन्नति करने में सहायता करता है (गलातियों 5:22-23)। जब हम आत्मा के साथ सहयोग करते हैं, तो हमारे हृदय बदल जाते हैं और हमारे शब्द भी बदल जाते हैं। गाली-गलौज प्रशंसा करने में बदल जाता है। झूठ सच में बदल जाता है । आलोचना प्रोत्साहन में बदल जाती है।
जीभ को वश में करने का अर्थ केवल स्वयं को सही बातें कहने के लिए प्रशिक्षित करना नहीं होता है। यह पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करना है ताकि हमारे शब्द उस करुणा और प्रोत्साहन को उत्पन्न करें जिसकी संसार को आवश्यकता है।
प्रार्थना के साथ संचालन
जब मेरे बेटे को आर्थोपेडिक सर्जरी की जरूरत पड़ी, तो मैं ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर के लिए आभारी थी। डॉक्टर, जो सेवानिवृत्ति के करीब थे, ने हमें आश्वासन दिया कि वह ऐसे ही समस्या वाले हजारों लोगों की मदद किये थे। फिर भी, प्रक्रिया से पहले, उन्होंने प्रार्थना की और प्रभु से एक अच्छा परिणाम प्रदान करने के लिए कहा। और मैं बहुत आभारी हूँ उसने किया।
एक अनुभवी राष्ट्रीय नेता, यहोशापात ने संकट के दौरान भी प्रार्थना की। उसके विरुद्ध तीन जातियाँ इकट्ठी हो गई थीं, और वे उसके लोगों पर चढ़ाई करने को आ रहे थे। हालाँकि उनके पास दो दशकों से अधिक का अनुभव था, फिर भी उन्होंने प्रभु से पूछने का फैसला किया कि क्या करना है। उसने प्रार्थना की, "[हम] संकट में तेरी दोहाई देंगे, और तू हमारी सुनेगा और हमारा उद्धार करेगा" (2 इतिहास 20:9)। उसने यह कहते हुए मार्गदर्शन के लिए भी कहा, "हम नहीं जानते कि क्या करें, परन्तु हमारी आंखें तेरी ओर लगी हैं" (पद. 12)।
चुनौती के प्रति यहोशापात के विनम्र दृष्टिकोण ने परमेश्वर की भागीदारी के लिए उसके हृदय को खोल दिया, जो प्रोत्साहन और ईश्वरीय हस्तक्षेप के रूप में आया (पद. 15-17, 22)। हमारे पास कुछ क्षेत्रों में कितना भी अनुभव क्यों न हो, मदद के लिए प्रार्थना करने से परमेश्वर पर एक पवित्र निर्भरता विकसित होती है। यह हमें याद दिलाता है कि वह हमसे अधिक जानता है, और अंततः वह नियंत्रण में है। यह हमें एक विनम्र स्थान पर रखता है - एक ऐसा स्थान जहाँ वह प्रतिक्रिया देने और हमें समर्थन देने में प्रसन्न होता है, चाहे परिणाम कुछ भी हो।
कमजोरी में ताकत
जब मेरा बेटा लगभग तीन वर्ष का था, तो मुझे एक ऑपरेशन की आवश्यकता थी जिससे ठीक होने में एक महीने या उससे अधिक की आवश्यकता होती। प्रक्रिया से पहले, मैंने कल्पना की कि मैं बिस्तर में हूँ , जबकि सिंक में गंदे बर्तनों का ढेर जमा हो गया है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं एक भागते-दौड़ते बच्चे की देखभाल कैसे करुँगी और खुद को भोजन पकाने के लिए चूल्हे के सामने खड़े होने की कल्पना नहीं कर पा रही थी। मुझे डर था कि मेरी कमजोरी का हमारे जीवन शैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
इससे पहले कि गिदोन की सेना मिद्यानियों का सामना करे, परमेश्वर ने जानबूझकर गिदोन की सेना को कमजोर कर दिया। पहिले, जो डर गए थे उन्हें जाने दिया गया - बाईस हजार पुरूष अपने घर चले गए (न्यायियों 7:3)। तब जो दस हजार रह गए थे, उन में से केवल वही रह सके, जो पीने के लिथे हाथ में जल भरते थे। सिर्फ तीन सौ आदमी बचे थे, लेकिन इस नुकसान ने इस्राएलियों को खुद पर भरोसा करने से रोक दिया (पद. 5-6)। वे यह नहीं कह सकते थे, " कि हम अपने ही भुजबल के द्वारा बचे हैं।" (पद. 2)।
हम में से कई ऐसे समय का अनुभव करते हैं जब हम थका हुआ और शक्तिहीन महसूस करते हैं। जब मेरे साथ ऐसा होता है, तो मुझे एहसास होता है कि मुझे परमेश्वर की कितनी जरूरत है। उसने मुझे भीतरी रूप से अपनी आत्मा के द्वारा और बाहरी रूप से दोस्तों और परिवार की मदद के द्वारा प्रोत्साहित किया। मुझे कुछ समय के लिए स्वमं पर निर्भरता को छोड़ना पड़ा, लेकिन इसने मुझे सिखाया कि कैसे पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर रहना है। क्योंकि "[उसका] सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होता है" (2 कुरिन्थियों 12:9), हम तब आशा रख सकते हैं जब हम अपनी आवश्यकताओं को अपने दम पर पूरा नहीं कर सकते।
परमेश्वर की बाँहे खुली हैं
मैंने घृणा से अपने सेलफोन (मोबाइल फ़ोन) को देखा और आहें भरी। चिंता ने मेरे माथे पर शिकन डाल दी। एक मित्र और मेरे बीच में हमारे बच्चों को लेकर एक मुद्दे पर गंभीर असहमति थी, और मुझे पता था कि मुझे उसे फोन करने और क्षमा माँगने की ज़रूरत है। मैं ऐसा नहीं करना चाहती थी क्योंकि हमारे दृष्टिकोण अभी भी संघर्ष में थे, इस पर मैं यह भी जानती थी कि पिछली बार जब हमने इस मामले पर चर्चा की थी तो मैं दयालु या विनम्र नहीं थी।
फ़ोन कॉल (करने)का अनुमान लगाते हुए, मैंने सोचा, क्या होगा अगर उसने मुझे माफ़ नहीं किया? क्या होगाI अगर वह हमारी मित्रता को जारी नहीं रखना चाहती है? तभी, एक गीत के बोल मेरे मस्तिष्क में आए और मुझे उस क्षण में वापस ले गए जब मैंने परमेश्वर के सामने एक परिस्तिथि में अपना पाप स्वीकार किया था। मुझे राहत महसूस हुई क्योंकि मैं जानती थी कि परमेश्वर ने मुझे क्षमा कर दिया है और मुझे अपराधबोध से मुक्त कर दिया है।
हम यह नियंत्रित नहीं कर सकते कि जब हम संबंधपरक समस्याओं को हल करने का प्रयास करेंगे तो लोग हमें कैसी प्रतिक्रिया देंगे। जब तक हम अपने हिस्से को स्वीकार करते हैं, विनम्रतापूर्वक क्षमा मांगते हैं, और आवश्यक परिवर्तन करते हैं, हम परमेश्वर के हाथों में बहाली/चंगाई सौंप सकते है। भले ही हमें अनसुलझे "लोगों की समस्याओं" का दर्द सहना पड़े, उसके साथ भी शांति हमेशा संभव है। परमेश्वर की बाहें खुली हुई हैं, और वह हमें वह अनुग्रह और दया दिखाने के लिए प्रतीक्षा कर रहा है जिसकी हमें आवश्यकता है। " यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने ,और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (1 यूहन्ना 1:9)
सही यीशु
जैसे ही पुस्तक क्लब के नेता ने उस उपन्यास का सारांश दिया जिस पर समूह चर्चा करने वाला था, कमरे का शोर एक आरामदायक चुप्पी में बदल गया। मेरे दोस्त जोन ने ध्यान से सुना लेकिन साजिश को नहीं पहचाना। अंत में, उसने महसूस किया कि उसने एक गैर.फिक्शन (कथायें जो काल्पनिक न हो) किताब पढ़ी थी जिसका शीर्षक अन्य लोगों द्वारा पढ़े गए फिक्शन (काल्पनिक कथा) के काम के समान था। हालाँकि उसे “गलत” किताब पढ़ने में मज़ा आया, लेकिन वह अपने दोस्तों में शामिल नहीं हो सकी क्योंकि उन्होंने “सही” किताब पर चर्चा करी।
प्रेरित पौलुस नहीं चाहता था कि यीशु में कुरिन्थ के विश्वासी एक गलत यीशु पर विश्वास करें। उसने बताया कि झूठे शिक्षक कलीसिया में घुस आये थे और लोगों को एक अलग यीशु के बारे में बता रहे रहै थे और उन्होंने उस झूठ को सह लिया था (2 कुरिन्थियों 11:3–4)।
पौलुस ने इन नकली शिक्षकों के विधर्म की निंदा की। हालाँकि, कलीसिया को लिखे अपने पहले पत्र में, उन्होंने पवित्रशास्त्र के यीशु के बारे में सच्चाई की समीक्षा की थी। यही यीशु मसीहा था जो “हमारे पापों के लिए मरा —तीसरे दिन जी उठा था —और फिर बारहों को दिखाई दिया” और अंत में स्वयं पौलुस को (1 कुरिन्थियों 15:3–8)। यह यीशु मरियम नाम की एक कुँवारी के द्वारा पृथ्वी पर आया था और उसका नाम इम्मानुएल (परमेश्वर हमारे साथ) रखा गया था, ताकि उसकी दिव्य प्रकृति की पुष्टि की जा सके मत्ती (1:20–23)।
क्या यह उस यीशु की तरह लगता है जिसे आप जानते हैं? उसके बारे में बाइबल में लिखे गए सत्य को समझना और स्वीकार करना हमें विश्वास दिलाता है कि हम उस आत्मिक मार्ग पर हैं जो स्वर्ग की ओर ले जाता है।
क्रिसमस का चमत्कार
एक बाजार में, फेंटे गत्ते के डिब्बे में मुझे यीशु के जन्म का एक सेट मिला। जैसे मैंने शिशु यीशु को उठाया, मैंने शिशु के शरीर के बारीक तराशे गए विवरण को ध्यान से देखा। यह नवजात शिशु कंबल में लिपटा आँख बंद किए हुए नहीं था-वह खुली बाँहों, खुले हाथों और फैली हुई उँगलियों के साथ आंशिक रूप से लिपटा और जगा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि वह कह रहा हैं “मैं यहाँ हूँ!”
उस आकृति ने क्रिसमस के चमत्कार को चित्रित किया-की परमेश्वर ने मानवीय शरीर में अपने पुत्र को पृथ्वी पर भेजा। जैसे-जैसे शिशु यीशु का शरीर परिपक्व हुआ, उनके खिलौने से खेलते छोट्टे हाथ, आगे तोरह (मूसा की पुस्तक) को पकड़ते, और फिर उनकी सेवा शुरू होने से पहले फर्नीचर बनाते। उनके पांव, जन्म के समय सिद्ध और गुदगुदे, आगे विकसित होते है की उन्हें सिखाने और चंगाई देने के लिए जगह जगह लेकर जाए, उनके जीवन के अंत में, ये मानवीय हाथ और पांव उसके शरीर को क्रूस पर टँगाए रखने के लिए किलों से छिदे जाते है।
रोमियों 8:3 कहता है, उस शरीर में परमेश्वर ने अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए बलि देकर पाप का हम पर से नियन्त्रण का अंत कर दिया। यदि हम यीशु के बलिदान को हमारी सारी गलतियों की कीमत के रूप में ग्रहण करते और अपना जीवन उनको समर्पित करते हैं, हम पाप के दासत्व से छुटकारा पाएंगे। क्योंकि परमेश्वर का पुत्र, हमारे लिए एक वास्तविक ,हिलने-डुलने, लात चलाने वाले शिशु के रूप में पैदा हुआ था, उनके साथ अनन्तकाल का आश्वासन और परमेश्वर के साथ शांति पाने का एक तरीका है।
अपनी वाणी का उपयोग
आठ साल की उम्र से, लीसा हकलाहट के साथ संघर्ष करती थी और सामाजिक स्थितियों से डरने लगी जहाँ उसे लोगों से बात करने की ज़रूरत होती थी l लेकिन आगे जीवन में, वाक्-चिकित्सा(स्पीच थेरेपी/speech therapy) की सहायता से अपनी चुनौती पर विजय पाने के बाद लीसा ने अपनी आवाज़ को दूसरों की मदद करने में उपयोग करने का निर्णय लिया l वह एक भावनात्मक संकट टेलेफोन हॉटलाइन(इमोशनल डिस्ट्रेस टेलीफोन हॉट लाइन/emotional distress telephone hotline) के लिए परामर्शदाता के रूप में कार्य करने लगी l
इस्राएलियों को दासत्व से बाहर निकालने में सहायता करने के लिए बोलने के विषय में मूसा को अपनी चिंताओं का सामना करना पड़ा l परमेश्वर ने उसे फिरौन के साथ संवाद करने के लिए कहा, परन्तु मूसा ने विरोध किया क्योंकि वह अपनी बोलने की क्षमता में आत्मविश्वास महसूस नहीं करता था (निर्गमन 4:10) l परमेश्वर ने उसे चुनौती दी, “मनुष्य का मुँह किसने बनाया है? तब उसने मूसा को यह कहते हुए आश्वास्त किया, “मैं तेरे मुख के संग होकर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊँगा” (पद.11-12) l
परमेश्वर का प्रतिउत्तर हमें याद दिलाता है कि वह हमारी सीमाओं में भी हमारे द्वारा शक्तिशाली रूप से कार्य कर सकता है l लेकिन इसे अपने हृदय में जानते हुए भी, इसे जीना कठिन हो सकता है l मूसा संघर्ष करता रहा और किसी और को भेजने के लिए परमेश्वर से विनती की (पद.13) l इसलिए परमेश्वर ने मूसा के भाई हारून को उसके साथ जाने दिया (पद.14) l
हममें से हर एक के पास आवाज़ है जो दूसरों की सहायता कर सकता है l हम भयभीत हो सकते हैं l हम अक्षम महसूस कर सकते हैं l हमें लग सकता है कि हमारे पास सही शब्द नहीं हैं l
परमेश्वर जानता है हम कैसा महसूस करते हैं l वह दूसरों की सेवा करने के लिए शब्द और हमारी सारी आवश्यकता पूरी कर सकता है और अपने काम को पूरा कर सकता है l
जीवन के चिह्न
जब मेरी बेटी को उपहार के रूप में पालतू केकड़ों का एक जोड़ा मिला, तो उसने एक कांच के टैंक को रेत से भर दिया ताकि जीव चढ़ सकें और खुदाई कर सकें। वह उनके खाने के आनंद के लिए पानी, प्रोटीन और सब्जियों के टुकड़ो की आपूर्ति करती थी। वे खुश लग रहे थे, इसलिए जब वे एक दिन गायब हो गए तो यह चौंकाने वाला था। हमने हर जगह तलाश किया। अंत में, हमें पता चला कि वे रेत के नीचे थे, और लगभग दो महीने तक वहां रहेंगे क्योंकि वे अपने एक्सोस्केलेटन को छोड़ते हैं।
दो महीने बीत गए, और फिर एक महीना और बीत गया, और मुझे चिंता होने लगी थी कि वे मर तो नहीं गए। जितनी हम प्रतीक्षा कर रहे थे, उतनी ही मैं बेचैन हो रही थी । फिर, अंत में, हमने जीवन के लक्षण देखे, और रेत से केकड़े निकले।
मैं सोचती हूँ कि क्या इस्राएलियों को संदेह था कि उनके लिए परमेश्वर की भविष्यवाणी पूरी होगी या नहीं जब वे बाबुल में बंधुआई में रहते थे। क्या उन्हें निराशा महसूस हुई? क्या उन्हें चिंता थी कि वे हमेशा के लिए वहाँ रहेंगे? यिर्मयाह के द्वारा, परमेश्वर ने कहा था, "...मैं तुम्हारी सुधि लूँगा, और अपना यह मनभावना वचन की मैं तुम्हें इस स्थान [यरूशलेम] में लौटा ले आऊंगा, पूरा करूँगा।" (यिर्मयाह 29:10)। निश्चित रूप से, सत्तर साल बाद, परमेश्वर ने होने दिया कि फारसी राजा कुस्रू ने यहूदियों को वापस लौटने और यरूशलेम में अपने मंदिर का पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी (एज्रा 1:1-4)।
प्रतीक्षा के समय में जब ऐसा लगता है कि कुछ हो ही नहीं रहा है, परमेश्वर हमें भूल नहीं गया। जैसे पवित्र आत्मा हमें धैर्य विकसित करने में मदद करता है, हम जान सकते हैं कि वह आशा-दाता, वायदा-रखनेवाला और भविष्य को नियंत्रित करने वाला है।
कहाँ मुड़ें
हाई स्कूल में सभी ने जैक के सहज रवैये और एथलेटिक कौशल की प्रशंसा की। वह मैदान पर खेल खेलकर सबसे ज्यादा खुश था। जब जैक ने एक स्थानीय चर्च में भाग लेना शुरू किया उसने यीशु का अनुकरण करने का निर्णय लिया। उस समय तक उन्होंने महत्वपूर्ण पारिवारिक संघर्षों को सहन किया और अपने दर्द का इलाज करने के लिए ड्रग्स का इस्तेमाल किया था। ऐसा लग रहा था कि सब कुछ ठीक चल रहा हैं। लेकिन वर्षों बाद उसने ड्रग्स का इस्तेमाल करना फिर से शुरू कर दिया। उचित हस्तक्षेप और चल रहे उपचार के बिना, वह अंततः एक अधिमात्रा के कारण मर गया। जब हम कठिनाइयों का सामना करते हैं परिचित चीज़ों की ओर मुड़ना बहुत आसान है। जब इस्राएलियों ने आगामी असीरिया हमले के संकट को महसूस किया, वे मदद के लिए रेंगते हुए-- उनके पूर्व गुलाम स्वामी मिस्रियों के पास वापस गए (यशायाह 30:1-5)। परमेश्वर ने कहा था कि यह विनाशकारी होगा, भले ही उन लोगों ने गलत निर्णय लिए, लेकिन उन्होंने उनका देखभाल करना जारी रखा। यशायाह ने परमेश्वर के मन की बात कही: “तौभी यहोवा इसलिये विलम्ब करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिये ऊँचा उठेगा कि तुम पर दया करे।”(18)।
यह हमारे प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण है, यहां तक कि जब हम अपने दर्द को कम करने के लिए कहीं और देखना चुनते हैं। वह हमें मदद करना चाहता है। वह नहीं चाहता कि हम उन आदतों से खुद को चोट पहुँचाएँ जो बंधन पैदा करती हैं। कुछ पदार्थ और क्रियाएं हमें तुरंत राहत की अनुभूति कराती है, लेकिन जैसे हम उसके साथ निकटता से चलते हैं परमेश्वर हमें प्रामाणिक उपचार प्रदान करना चाहते हैं ।