आगे बढ़ते रहो
व्यवसायिक जगत में काम करने ने मुझे अनेक प्रतिभावान और ऊँचे स्तर के लोगों (के) साथ बात करने का अवसर प्रदान किया। परन्तु शहर से बाहर एक निरीक्षक की अगुवाई में किया गया एक कार्य एक अपवाद था। समूह की प्रगति पर ध्यान दिए बिना यह प्रबन्धक कठोरता के साथ हमारे काम की आलोचना करता था और हर सप्ताह काम का ब्यौरा लेने के लिए किए गए फोन पर और काम करने की माँग करता था। इस प्रकार बीच में आ जाने से मैं निरुत्साहित और भयभीत हो गई थी। मैं काम छोड़ देना चाहती थी।
सम्भव है कि मूसा ने भी उसके काम को छोड़ देने का अनुभव किया होगा, जब अन्धियारे की महामारी के दौरान उसका सामना फिरौन से हुआ था। परमेश्वर ने मिस्र में आठ अन्य भयावह महामारियाँ भेजी और अंततः फिरौन चिल्ला उठा, मेरे सामने से चला जा; और सचेत रह; मुझे अपना मुख फिर न दिखाना; क्योंकि जिस दिन तू मुझे मुँह दिखाए उसी दिन तू मारा जाएगा।” (निर्गमन 10:28)।
इस खतरे के बावजूद भी मूसा को परमेश्वर के द्वारा इस्राएलियों को फिरौन के नियन्त्रण से आज़ाद करवाने के लिए इस्तेमाल किया गया। “विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर उसने मिस्र को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।”(इब्रानियों 11:27)। मूसा ने फिरौन पर यह विश्वास करने के द्वारा जय प्राप्त कर ली कि परमेश्वर छुड़ाने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करेगा। (निर्गमन 3:17).
आज, हम परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर निर्भर हो सकते हैं कि वह हर परिस्थिति में हमारे साथ है और वह अपने पवित्र आत्मा से हमारी सहायता कर रहा है। वह हमें दिव्य सामर्थ, प्रेम, और आत्म नियन्त्रण प्रदान (2 तीमुथियुस 1:7) करने के द्वारा हमें धमकी के दबाव का विरोध करने और इस पर गलत प्रतिक्रिया करने में सहायता करता है। हमारे जीवनों में बढ़ते रहने और परमेश्वर की अगुवाई का पालन करने के लिए आत्मा वह साहस प्रदान करता है, जिसकी हमें आवश्यकता है।
फ्रॉस्टबाइट से मुक्त
सर्दियों के एक दिन मेरे बच्चों ने स्लेज पर जाने की विनती की। तापमान ज़ीरो डिग्री फारनहाईट तक पहुँचा हुआ था। हिम कण हमारी खिडकियों तक फैले हुए थे। मैंने इस पर विचार किया और हाँ कह दिया , परन्तु उन्हें अच्छे से कपड़े पहनने और एकसाथ रहने और हर पन्द्रह मिनट में अन्दर आने के लिए बताया।
प्रेम में मैंने वे नियम बनाए, ताकि मेरे बच्चे फ्रास्टबाइट के बिना मुक्त हो कर खेल सकें। मेरे विचार से भजन 119 का लेखक परमेश्वर के भले मन्तव्य को पहचान गया, जब उसने लगातार दो पदों को लिखा, जो एक दूसरे के विरोधी प्रतीत होते हैं: “मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार सदा सर्वदा चलता रहूँगा” और “मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है” (पद 44-45) । यह कैसे है कि भजनकार ने स्वतन्त्रता और व्यवस्था का पालन करने वाले आत्मिक जीवन को एकसाथ मिला दिया?
परमेश्वर के बुद्धिमतापूर्ण निर्देशों का पालन करना हमें उन परिणामों से बचाता है, जो उन चुनावों से आते हैं, जिन्हें बाद में बदलना चाहते हैं। दोषभाव और पीड़ा के बोझ के बिना हम अपने जीवनों का आनन्द उठाने के लिए स्वतन्त्र हैं। परमेश्वर हमें यह करो और यह न करो के निर्देशों के साथ नियन्त्रित नहीं करना चाहता, परन्तु उसके निर्देश दर्शाते हैं कि वह हम से प्रेम करता है।
जब मेरे बच्चे स्लेज चला रहे थे, मैंने उन्हें पहाड़ी से तेज़ी से नीचे आते देखा। मैं उनके हंसी के ठाहकों और उनकी गुलाबी हुई गालों को देखकर मुस्कुराई। मेरे द्वारा दी गई सीमाओं में वे स्वतन्त्र थे। यही अकाट्य विरोधाभास परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध में भी है-यह हमें भजनकार के साथ यह कहने की ओर ले कर जाता है, “अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूँ” (पद 35)।
सनातन सहायक
रीढ़ की हड्डी की चोट से लकवाग्रस्त होने के बाद, मार्टी ने एमबीए अर्जित करने के लिए कॉलेज जाने का फैसला किया l मार्टी की माँ, जूडी, ने उसके लक्ष्य को वास्तविकता बनाने में सहायता की l वह उसके साथ निरंतर बैठकर हर व्याख्यान और अध्ययन नोट्स लिखने और प्रोद्योगिकी मुद्दों को समझने में उसकी सहायता की l उसने उसे मंच पर पहुँचाकर डिप्लोमा प्राप्त करने में उसकी सहायता की l मार्टी ने व्यवहारिक सहायता से अप्राप्य को संभव कर लिया l
यीशु जानता था उसके पृथ्वी से जाने के बाद उसके चेलों को उसी प्रकार की सहायता की ज़रूरत होगी l उसने अपनी शीघ्र घटित होनेवाली अनुपस्थिति की बात कही, उसने कहा वे पवित्र आत्मा द्वारा परमेश्वर के साथ एक नए प्रकार का सम्बन्ध प्राप्त करेंगे l आत्मा उन्हें पल-पल मदद करेगा - एक शिक्षक और मार्गदर्शक जो केवल उनके साथ निवास ही नहीं करेगा किन्तु उनमें बसेगा भी (यूहन्ना 14:17, 26) l
आत्मा परमेश्वर की ओर से यीशु के शिष्यों को आंतरिक सहायता पहुंचाएगा, जो उन्हें सुसमाचार सुनाते समय उनको वह सब बातें सहने की शक्ति देगा जिसे वे अपने बल पर बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं l संघर्ष के क्षणों में, आत्मा उनको यीशु की कही बातें स्मरण दिलाएगा (पद.26) : तुम्हारे मन व्याकुल न हों . . . एक दूसरे से प्रेम करो . . . पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ l
क्या आप अपनी सामर्थ्य और योग्यता से बाहर कुछ सहन कर रहे हैं? आप आत्मा की सनातन सहायता पर निर्भर हो सकते हैं l आपके अन्दर पवित्र आत्मा का काम उसे [परमेश्वर को] उचित महिमा देगा l
बुद्धिमत्ता का श्रोत
एक व्यक्ति ने एक महिला पर मुकद्दमा दायर कर दिया, कि महिला के पास उसका कुत्ता था l कोर्ट में महिला ने कहा, उसका कुत्ता उस व्यक्ति का नहीं हो सकता और जज को बताया उसने उसे कहाँ से ख़रीदा था l वास्तविक मालिक का पता चल गया जब जज ने कोर्ट के कमरे में ही उस कुत्ते को खोल दिया l पूंछ हिलाते हुए, वह अपने मालिक के पास दौड़ गया l
प्राचीन इस्राएल का एक न्यायी, सुलैमान को इस तरह का एक मामला सुलझाना पड़ा l दो महिलाएँ एक ही छोटे लड़के की माँ होने का दावा कर रही थीं l दोनों के दलील को सुनने के बाद, तलवार से उस बच्चे को दो भाग में विभाजित करने को कहा l बच्चे की असली माँ ने अपना बच्चा नहीं मिलने की स्थिति में भी उसकी जान बचाने के उद्देश्य से उसे दूसरी स्त्री को दे देने का आग्रह किया (1 राजा 3:26) l सुलैमान में उसे बच्चा दे दिया l
न्यायोचित और नैतिक, सही और गलत क्या है का निर्णय करने के लिए बुद्धिमत्ता अनिवार्य है l यदि हम सचमुच बुद्धि का मूल्य समझते हैं, हम सुलेमान की तरह, परमेश्वर से समझने वाला हृदय मांग सकते हैं (पद.9) l परमेश्वर दूसरों की रुचियों के साथ हमारी आवश्यकताओं और इच्छाओं को संतुलित करके हमारे निवेदन का उत्तर दे सकता है l वह दीर्घकालीन(कभी-कभी अनंत) लाभ के विरुद्ध अल्पकालीन लाभ को तौलने में हमारी मदद भी कर सकता है ताकि हम अपने जीवन जीने में उसका आदर कर सकें l
हमारा परमेश्वर केवल एक सिद्ध बुद्धिमान न्यायी ही नहीं है, किन्तु एक व्यक्तिगत परामर्शदाता भी है जो हमें बड़ी मात्रा में ईश्वरीय बुद्धिमत्ता भी देना चाहता है (याकूब 1:5) l
वश में रखना असम्भव
मेक्सिको की खाड़ी में अपने मित्रों के साथ तैरती हुयी, कैत्लिन का एक शार्क से सामना हुआ, जो उसके पैरों पर झपटकर उसे खींचने लगा l कैत्लिन ने जवाबी हमले में शार्क के नाक पर एक जोर का घूँसा मारा l हिंसक शार्क हारकर उसके पाँवों को छोड़कर चला गया l यद्यपि उसके काटने के कारण उसे 100 से अधिक टाँके लगे, शार्क कैत्लिन को अपने पकड़ में नहीं ले सका l
यह कहानी मुझे यह सच्चाई याद दिलाती है कि यीशु ने मृत्यु पर वार करके, उसके अनुयायियों को डराने और उन्हें पराजित करने की उसकी शक्ति समाप्त कर दी l पतरस के अनुसार, “क्योंकि मृत्यु के वश में रहना उसके लिए असम्भव था” (प्रेरितों 2:24) l
पतरस ने यरूशलेम में एक भीड़ से यह शब्द कहे l शायद उनमें से कईयों ने यीशु को दण्डित करने के लिए चिल्लाए होंगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए” (मत्ती 27:22) l परिणामस्वरूप, रोमी सैनिकों ने उसे मरने तक क्रूस पर टंगा हुआ रखा l परमेश्वर द्वारा यीशु को जिलाए जाने तक उसका शरीर तीन दिनों तक कब्र में रखा रहा l उसके पुनरुत्थान के बाद, पतरस और अन्य लोग उससे बात और उसके साथ भोजन किया, और चालीस दिनों के बाद वह स्वर्ग पर उठा लिया गया (प्रेरितों 1:9) l
पृथ्वी पर यीशु का जीवन शारीरिक दुःख और मानसिक पीड़ा के मध्य बीता, इसके बावजूद परमेश्वर की सामर्थ्य ने कब्र को पराजित कर दिया l इसके कारण, मृत्यु या कोई और संघर्ष/पीड़ा हमें सर्वदा अपने पकड़ में नहीं रख सकती l एक दिन सभी विश्वासी परमेश्वर की उपस्थिति में अनंत जीवन और परिपूर्णता का अनुभव करेंगे l उस भविष्य पर केन्द्रित होकर हम वर्तमान में स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं l
परमेश्वर के साथ वास्तविक रहना
मैं अपने सिर को झुकाकर, अपनी आँखों को बंद करके, अपने हाथों को जोड़कर प्रार्थना करना आरम्भ कर देता हूँ l “प्रिय परमेश्वर, मैं आपके सामने एक बच्चे की तरह आता हूँ l मैं आपकी सामर्थ्य और भलाइयों को स्वीकार करता हूँ . . . l” अचानक, मेरी आँखें खुल जाती हैं l मुझे याद आता है कि मेरे बेटे ने इतिहास के प्रोजेक्ट को पूरा नहीं किया है, जो उसको कल दिखाना है l स्कूल के बाद उसे बास्केटबाल गेम भी खेलना है, और मैं कल्पना करता हूँ कि वह मध्य रात्रि तक जागकर अपना गृह कार्य पूरा कर रहा है l इससे मैं चिंतित हो जाता हूँ कि कहीं थकान से उसे बुखार न आ जाए!
सी.एस. लयूईस प्रार्थना में विकर्षण के विषय अपनी पुस्तक स्क्रूटेप लेटर्स में लिखते हैं l उन्होंने ध्यान दिया कि हमारे मस्तिष्क के भटकने पर, हम अपनी पूर्व की प्रार्थना में लौटने के लिए अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करते हैं l लयूईस यद्यपि इस परिणाम पर पहुँचते हैं, कि उस विकर्षण को [अपनी] वर्तमान समस्या के रूप में स्वीकार करना बेहतर होगा और उसे [परमेश्वर] के आगे [रखकर], उसे अपनी प्रार्थना का मुख्य विषय बना लेना चाहिए l”
प्रार्थना में भटकाव लानेवाली एक स्थायी चिंता अथवा एक पापी विचार भी परमेश्वर के साथ हमारी चर्चा का केंद्रबिंदु बन सकता है l जब हम परमेश्वर से बातचीत करते हैं उसकी इच्छा है कि हम वास्तविक बनकर उसे अपनी गहरी चिंता, भय, और संघर्ष बताएं l वह हमारी बातों से चकित नहीं होता है l वह एक घनिष्ट मित्र की देखभाल की तरह हमारा ध्यान रखता है l इसीलिए हम अपनी सारी चिंता और बेचैनी उस पर डालने में उत्साहित होते हैं – क्योंकि उसको हमारा ध्यान है (1 पतरस 5:7) l
प्रबल प्रेम
शादी के एक हफ्ते पहले, सारा की सगाई टूट गई। उदास और निराश होने के बावजूद, उसने रिसेप्शन के खाने को बेकार ना जाने देने का फैसला किया। उत्सव की योजना और अतिथियों की लिस्ट बदल कर उसने स्थानीय आश्रय स्थलों के निवासियों को भोज में बुलाया।
फरीसियों को स्वार्थहीन दया करने के महत्व को समझाने के लिए यीशु ने कहा, "जब तू भोज करे..." (लूका 14:13-14)। उन्होंने कहा कि तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास बदले में मेज़बान को देने के लिए कुछ नहीं। यीशु ने उन लोगों की मदद करने की अनुमति दी जो ना तो दान दक्षिणा, न दिलचस्प बातें और नाही ऊंची जान-पहचान से इसकी आपूर्ति कर सकें।
यदि विचार किया जाए कि यीशु ने ये वचन तब कहे जब वे एक फरीसी के दिए भोज में बैठे थे तो, उनका कथन भडकाने वाला और उग्र लगेगा। परन्तु सच्चा प्रेम उग्र होता है। बदले में बिना कुछ पाने के उम्मीद किए दूसरों की मदद करना प्रेम है। इसी समान यीशु ने हम में से प्रत्येक से प्रेम किया। उन्होंने हमारी भीतरी दरिद्रता को देखकर हमारे लिए अपना जीवन दे दिया।
मसीह को व्यक्तिगत रूप से जानना, उनके अनंत प्रेम की थाह लेना है। हम सभी आमंत्रित हैं कि यह जानें कि "मसीह के प्रेम की चौड़ाई..." (इफिसियों 3:18)।
परमेश्वर कैसा है?
एक विशेष अवसर को मनाने के लिए, मेरे पति मुझको एक स्थानीय कला दीर्घा (Art gallery) ले गए और मुझे उपहार देने के लिए मुझसे कोई चित्रकला चुनने को कहा l मैंने वन के बीच से बहती हुई एक छोटी नदी की छोटी चित्रकला का चुनाव किया l उस चित्र में नदी का तल पूरे चित्र फलक(Canvas) पर फैला हुआ था, और इस कारण आकाश का हिस्सा बहुत कम दिखाई दे रहा था l हालाँकि, नदी की प्रतिबिम्ब में सूरज, पेड़ों की चोटियाँ, और धुंधला फ़िज़ा स्पष्ट था l केवल पानी की सतह पर ही आसमान “देखा” जा सकता था l
आत्मिक भाव में, यीशु उस नदी के समान है l जब हम जानना चाहते हैं कि परमेश्वर कैसा है, हम यीशु की ओर देखते हैं l इब्रानियों का लेखक कहता है कि वह “[परमेश्वर] के तत्व की छाप [है]” (1:3) l यद्यपि हम “परमेश्वर प्रेम है” जैसे बाइबल के प्रत्यक्ष कथनों से परमेश्वर के विषय सच्चाइयाँ सीख सकते हैं, हम परमेश्वर को उन समस्याओं में कार्य करते हुए देखकर जिनसे हमारा सामना इस संसार में होता है, हम अपनी समझ को और भी गहरा कर सकते हैं l यीशु हमें दिखाने आया कि वह मानव रूप में परमेश्वर है l
परीक्षा में, यीशु ने परमेश्वर की पवित्रता प्रगट किया l आत्मिक अन्धकार का सामना करते हुए, उसने परमेश्वर का अधिकार दर्शाया l लोगों की परेशानियों से जूझते हुए, उसने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता दिखाई l अपनी मृत्यु में, उसने परमेश्वर का प्रेम प्रगट किया l
यद्यपि हम परमेश्वर के विषय सब कुछ नहीं समझ सकते हैं – वह असीमित है और हम अपनी सोच में सीमित हैं – हम मसीह को देखकर परमेश्वर के चरित्र के विषय निश्चित हो सकते हैं l
यह कौन है?
कल्पना करें कि आप धूल सने मार्ग पर दर्शकों के साथ खड़े हैं। पीछे खड़ी एक महिला अपने पैर उच्चकर देखने की कोशिश कर रही है कि कौन आ रहा है। दूर गधे पर बैठा एक व्यक्ति आ रहा है। उसके निकट आने पर लोग अपने वस्त्र सड़क पर डालने लग जाते हैं। अचानक, किसी टहनी के चटकने की आवाज आती है। कोई खजूर की शाखाएं काट रहा है और लोग उन्हें गधे के सामने डाल रहे हैं।
क्रूसित होने से पूर्व जब यीशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया तो उनके अनुयायियों ने उत्साहपूर्वक उन्हें सम्मानित किया।“सारी मण्डली उन सब सामर्थ...”। (लूका 19:37)। यीशु के भक्त कह रहे थे, "धन्य है वह राजा..."(पद 38)। उनके उत्साह ने लोगों को प्रभावित किया। सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, यह कौन है? (मत्ती 21:10)।
आज भी, लोग यीशु के बारे में उत्सुक हैं। हालांकि हम शाखाओं से उनके मार्ग को प्रशस्त या प्रशंसा में चिल्लाकर स्तुति नहीं कर सकते, फिर भी हम उन्हें आदर दे सकते हैं। हम उनके सामर्थ के कार्यों की बातें, जरूरतमंद लोगों की सहायता, धैर्य से अपमान को सहन, और गहराई से दूसरों को प्रेम कर सकते हैं। हमें उन दर्शकों को बताने के लिए तैयार रहना चाहिए जो पूछते हैं, "यीशु कौन है?"