जीत में बदली हुई हार
हमारे चर्च में अतिथि बैंड स्तुति और आराधना में अगुआई कर रहा था, और प्रभु के लिए उनका उत्साह हृदय स्पर्शी था l हम उनके जोश को देख रहे थे और अनुभव कर रहे थे l
तब उन संगीतज्ञों ने बताया कि वे सब पूर्व कैदी रह चुके हैं l अचानक उनके गीतों में एक नया अर्थ दिखाई दिया, और मैंने महसूस किया कि क्यों उनकी प्रशंसा उनके लिए इतना महत्वपूर्ण थी l उनकी प्रशंसा ऐसे टूटे हुए जीवनों की गवाही थी जो अब नए बन चुके थे l
संसार सफलता को गले लगा सकता है l किन्तु बीती हार की कहानियाँ लोगों को आशा भी देती हैं l ये कहानियाँ हमें भरोसा देती हैं कि हमारे समस्त हार के बाद भी परमेश्वर हमसे प्रेम करता है l पासवान गैरी इनरिंग कहते हैं कि इब्रानियों 11 में जिसे हम विश्वास का भवन पुकारते हैं, परमेश्वर का ऐसा भवन भी हो सकता है जहाँ हार जीत में बदल गयी हो l उनका मानना है, “शायद ही उस अध्याय में ऐसा कोई व्यक्ति है जिसके जीवन में गंभीर दोष न रहा हो l किन्तु परमेश्वर हारे हुए जीवनों को नया बनाने के कार्य में लगा हुआ है . . . यह परमेश्वर के अनुग्रह का महान सिद्धांत है l”
मैं भजन 145 का सुख पसंद करता हूँ, जो परमेश्वर के “आश्चर्यकर्मों”(पद.5-6) की और महिमामय राज्य(पद.11) की चर्चा करता है l वह उसकी करुणा (पद.8-9) और विश्वासयोग्यता (पद.13) का वर्णन करता है, उसके तुरंत बाद वह भजन हमें बताता है कि परमेश्वर गिरते हुओं को संभालता है (पद.14) l जब वह हमें उठाता है उसके सारे गुण दिखाई देते हैं l वह नया बनाने के कार्य में ही लगा हुआ है l
क्या आप पहले हार का सामना कर चके हैं? क्या आप नये बनाए गए हैं? सभी छुटकारा पाए हुए लोग परमेश्वर के अनुग्रह की कहानियाँ हैं l
जीत में बदली हुई हार
हमारे चर्च में अतिथि बैंड स्तुति और आराधना में अगुआई कर रहा था, और प्रभु के लिए उनका उत्साह हृदय स्पर्शी था l हम उनके जोश को देख रहे थे और अनुभव कर रहे थे l
तब उन संगीतज्ञों ने बताया कि वे सब पूर्व कैदी रह चुके हैं l अचानक उनके गीतों में एक नया अर्थ दिखाई दिया, और मैंने महसूस किया कि क्यों उनकी प्रशंसा उनके लिए इतना महत्वपूर्ण थी l उनकी प्रशंसा ऐसे टूटे हुए जीवनों की गवाही थी जो अब नए बन चुके थे l
संसार सफलता को गले लगा सकता है l किन्तु बीती हार की कहानियाँ लोगों को आशा भी देती हैं l ये कहानियाँ हमें भरोसा देती हैं कि हमारे समस्त हार के बाद भी परमेश्वर हमसे प्रेम करता है l पासवान गैरी इनरिंग कहते हैं कि इब्रानियों 11 में जिसे हम विश्वास का भवन पुकारते हैं, परमेश्वर का ऐसा भवन भी हो सकता है जहाँ हार जीत में बदल गयी हो l उनका मानना है, “शायद ही उस अध्याय में ऐसा कोई व्यक्ति है जिसके जीवन में गंभीर दोष न रहा हो l किन्तु परमेश्वर हारे हुए जीवनों को नया बनाने के कार्य में लगा हुआ है . . . यह परमेश्वर के अनुग्रह का महान सिद्धांत है l”
मैं भजन 145 का सुख पसंद करता हूँ, जो परमेश्वर के “आश्चर्यकर्मों”(पद.5-6) की और महिमामय राज्य(पद.11) की चर्चा करता है l वह उसकी करुणा (पद.8-9) और विश्वासयोग्यता (पद.13) का वर्णन करता है, उसके तुरंत बाद वह भजन हमें बताता है कि परमेश्वर गिरते हुओं को संभालता है (पद.14) l जब वह हमें उठाता है उसके सारे गुण दिखाई देते हैं l वह नया बनाने के कार्य में ही लगा हुआ है l
क्या आप पहले हार का सामना कर चके हैं? क्या आप नये बनाए गए हैं? सभी छुटकारा पाए हुए लोग परमेश्वर के अनुग्रह की कहानियाँ हैं l
परमेश्वर जानता है
अपने चर्च में एक दुखित महिला से मिलकर डेनिसी ने उसकी सहायता करना चाहा l प्रति सप्ताह वह उसे परामर्श देती रही और उसके लिए प्रार्थना करती रही l डेनिसी उसकी सलाहकार बन गयी l हालाँकि, चर्च के कुछ अगुए डेनिसी के प्रयासों पर ध्यान न देकर उस स्त्री के लिए एक चर्च कर्मचारी को सलाहकार नियुक्त किया l उनकी टिप्पणी थी, कोई उसकी सहायता नहीं कर रहा है l
जबकि वह कोई ख्याति नहीं चाहती थी, डेनिसी मदद करने से पीछे नहीं हटी किन्तु थोड़ा निराश हुई l उसने मुझसे कहा, “ऐसा महसूस होता है जैसे मैं कुछ नहीं कर रही हूँ l”
हालाँकि, एक दिन, उस युवा स्त्री ने डेनिसी से बोला कि वह अपनी सांत्वना के लिए उसके प्रति धन्यवादी थी l डेनिसी उत्साहित हुई l उसे ऐसा लगा जैसे परमेश्वर उससे कह रहा है, “मैं जानता हूँ कि तुम वहाँ पर उसके लिए उपलब्ध हो l” डेनिसी अभी भी निरंतर उस स्त्री से मिलती है l
कभी-कभी, हम भी खुद को अयोग्य समझते हैं जब हमारे प्रयासों को अस्वीकार किया जाता है l हालाँकि, बाइबिल, हमें याद दिलाती है कि हमारे कामों को परमेश्वर जानता है l वह जानता है जो दूसरे नहीं कर रहे हैं l और जब हम उसके लिए काम करते हैं, वह प्रसन्न होता है किन्तु मनुष्यों की बड़ाई के लिए नहीं l
शायद इसलिए यीशु ने हमसे यह बोलकर एक उदहारण दिया कि हमारा “दान गुप्त” रहे ताकि “तेरा पिता जो ... देखता है, तुझे प्रतिफल” दे (मत्ती 6:4) l हमें मान्यता और प्रशंसा के लिए दूसरों की ओर देखने की ज़रूरत नहीं; हम ढाढ़स बांधें कि जब हम उसकी और दूसरों की सेवा में विश्वासयोग्य होंगे यह उसे परमेश्वर मालूम है l
जीवन के लिए प्रशिक्षण
लम्बी दौड़ का मेरा प्रशिक्षण ठीक नहीं चल रहा था, और हाल ही की मेरी दौड़ विशेष तौर से निराशाजनक थी l आधे समय तक मैं चलता था और एक बिंदु पर मुझे बैठना पड़ता था l ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं छोटी-जांच में हार चुका था l
तब मुझे याद आया कि प्रशिक्षण का सम्पूर्ण मकसद यही था l यह न ही उतीर्ण होने की जांच थी, न ही कोई पदवी पाने की l इसके बदले, मुझे अपने धीरज को बढ़ाने के लिए बार-बार इसमें से होकर जाना था l
शायद आप किसी आज़माइश का सामना करते हुए बुरा महसूस करते हैं l परमेश्वर हमारी आत्मिक मांसपेशी और धीरज को मजबूत बनाने के लिए हमें ऐसी जांच के समय से निकलने देता है l वह हमें उस पर निर्भरता सिखाता है, और पवित्र बनने के लिए शुद्ध करता है, ताकि हम और भी मसीह के समान बन जाएं l
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भजनकार परमेश्वर द्वारा इस्राएलियों को आग और पानी में से ले जाने के लिए उसकी प्रशंसा करता है (भजन 68:10-12) जब वे दासत्व और निर्वासन में दुःख उठाए l परमेश्वर ने न केवल उनकी रक्षा की और अति बहुतायत के स्थान में लेकर आया, किन्तु इस प्रक्रिया में उनको विशुद्ध भी किया l
जांच से निकलते हुए, हम परमेश्वर पर सामर्थ्य और दृढ़ता के लिए निर्भर हो सकते हैं l वह हमें हमारे कठिनतम क्षणों के द्वारा परिस्कृत कर रहा है l
पहुँच का स्वभाग्य
प्रतिरूप होने के बावजूद, दक्षिणी इस्राएल में स्थापित मंदिर (मिलाप का तम्बू) विस्मयकारी था l निर्गमन 25-27 में वर्णित विवरण के अनुरूप मूल आकर में निर्मित (असली स्वर्ण और बबूल की लकड़ी को छोड़कर), वह दक्षिणी मरुभूमि में स्थित था l
जब हमारे पर्यटक समूह को “पवित्र स्थान” और “महापवित्र स्थान” में “संदूक” दिखाने के लिए ले जाया गया हममें से कुछ एक लोग हिचकिचाए l क्या यह वह महापवित्र स्थान नहीं था जिसमें केवल महायाजक ही प्रवेश कर सकता था? हम इसमें कैसे इतनी सरलता से प्रवेश कर सकते हैं?
मैं कल्पना करता हूँ कि इस्राएली हर बार अपने बलिदानों के साथ मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करते समय भयभीत होते होंगे, यह समझते हुए कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की उपस्थिति में आ रहे हैं l और जब-जब मूसा द्वारा उनको परमेश्वर का सन्देश मिलता होगा वे आश्चर्यचकित होते होंगे l
आज, आप और मैं यह जानते हुए कि यीशु के बलिदान ने परमेश्वर और हमारे बीच की दीवार तोड़ दी है हम भरोसे के साथ परमेश्वर के निकट आ सकते हैं (इब्रा. 12:22-23) l हर एक व्यक्ति परमेश्वर से कभी भी संवाद करके उसके वचन को पढ़कर उसकी सीधी सुन सकता है l हम सीधी पहुँच का आनंद लेते हैं जो इस्राएलियों की कल्पना थी l स्वर्गिक पिता की प्रिय संतान होकर प्रतिदिन उसकी विस्मयकारी उपस्थिति में जाकर उसको संजोने का महत्त्व समझें l
पिता समान
क्या एक बच्चे को अपने माता-पिता का नक़ल उतरना प्रीतिकर नहीं लगता? कितनी बार हम एक किशोर बच्चे को कार के सीट पर बैठे, काल्पनिक स्टीयरिंग पकड़े हुए ड्राईवर को ध्यान पूर्वक देखते हुए पाते है कि पिता आगे क्या करेंगे l
मैं भी बचपन में ऐसा ही करता था l अपने पिता का नक़ल करने से अधिक आनंददायक कुछ भी नहीं था-और मेरा उनका नक़ल करते देखकर उन्हें ज़रूर ही अधिक आनंद आता होगा l
मैं परमेश्वर को उसी तरह महसूस करते हुए कल्पना कर सकता हूँ जब उसका प्रियतम पुत्र पिता की तरह ही कार्य करता है-भटके हुओं तक पहुंचना, ज़रुरतमंदों की मदद, बीमारों की चंगाई l यीशु ने कहा, “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है; क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है” (यूहन्ना 5:19) l
हमें भी वही करने को बुलाया गया है-“प्रिय बालकों के समान परमेश्वर का अनुसरण करो, और प्रेम में चलो” (इफि. 5:1-2) l मसीह के समान बनने के लिए उसमें बढ़ते हुए, हमें पिता की तरह प्रेम करना, क्षमा करना, देखभाल करना, और उसको प्रसन्न करने हेतु जीवन बिताएं l पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में उसका नक्ल करना आनंददायक है, जानते हुए कि हमारा पुरस्कार प्रेमी पिता की प्यार भरी, कोमल मुस्कराहट है l