चाची की किडनी फेल होने की बात सुन कर मैं उदास थी। मन किया कि उनसे मिलने जाना फ़िलहाल टाल दूं। तोभी मैं उनसे मिलने गई, हमने साथ खाना खाया, बातें की और प्रार्थना की।  एक घंटे बाद वहाँ से निकलते हुए मैं इतनी उत्साहित थी, जितनी बहुत दिनों बाद पहली बार हुई थी। इसप्रकार अपने अलावा किसी अन्य पर ध्यान केन्द्रित करने से मेरा मूड कुछ सुधर गया।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार देना संतोष देता है, जो लेने वाले में कृतज्ञता देखकर मिलता है। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि मनुष्य की रचना उदार बनने के लिए हुई है!

थिस्सलुनिकियों की कलीसिया को अपने विश्वासी समुदाय का निर्माण करने की प्रेरणा देते हुए शायद इसीलिए पौलुस ने उनसे आग्रह किया कि वे “दुर्बलों को संभालें” (1 थिस्सलुनीकियों 5:14)। और यीशु के इन शब्दों को उद्धृत किया, “कि लेने से देना…” (प्रेरितों के काम 20:35)। भले ही यह आर्थिक दान के संदर्भ में था, समय और प्रयास दान के साथ भी ऐसा ही है।

देने द्वारा ही हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर कैसा महसूस करते हैं, और वह हमें अपना प्रेम देकर इतने आनन्दित क्यों होते हैं, और यह कि हम उनके आनन्द और दूसरों को आशीष देने की संतुष्टि में सहभागी हैं। मन करता है कि अपनी चाची को फिर देख आऊँ।