स्पर्श करने की ताकत
भारत में बीसवीं सदी के अग्रणी चिकित्सा मिशनरी डॉ. पॉल ब्रैंड ने कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को देखा l एक मुलाकात के दौरान, उन्होंने मरीज को आश्वास्त करने के लिए छूआ कि इलाज संभव था l उस व्यक्ति के आँसू बहने लगे l एक परिचर ने यह कहते हुए डॉ. ब्रैंड को उस मरीज का आँसू समझाया, "आपने उसे छूआ और वर्षों से उसे किसी ने नहीं छूआ है l ये ख़ुशी के आँसू हैं l"
यीशु की आरंभिक सेवा में, एक कुष्ठ रोगी उसके पास आया l कुष्ठ सभी प्रकार के संक्रामक त्वचा रोगों के लिए प्राचीन सूचक था l पुराना नियम की व्यवस्था अनुसार इस व्यक्ति को अपने रोग के कारण अपने समाज से बाहर रहना अनिवार्य था l इत्तेफाक से रोगी का स्वस्थ्य व्यक्तियों के निकट संपर्क में आने पर उसे ऊँची आवाज़ में, "अशुद्ध! अशुद्ध!" पुकारना होता था जिससे लोग उससे दूर चले जाएँ (लैव्यव्यावस्था 13:45-46) l परिणामस्वरूप, उक्त व्यक्ति मानव संपर्क से महीनों या वर्षों तक दूर हो सकता था l
तरस से भरकर, यीशु ने हाथ बढ़ाकर उस व्यक्ति को छूआ l यीशु अपनी सामर्थ्य और अधिकार से मात्र एक शब्द बोलकर लोगों को चंगा कर सकता था (मरकुस 2:11-12) l लेकिन जब यीशु एक व्यक्ति से जो खुद को अपने शारीरिक बीमारी के कारण अकेला और तिरस्कृत महसूस करता था मुलाकात की, उसके स्पर्श ने उस व्यक्ति को निश्चित किया कि वह अकेला नहीं किन्तु स्वीकृत है l
जब परमेश्वर हमें अवसर देता है, हम सम्मान और महत्त्व के कोमल स्पर्श द्वारा करुणा और तरस दिखा सकते हैं l मानव स्पर्श की सरल, उपचार शक्ति, दुखित लोगों को हमारी देखभाल और चिंता लम्बे समय तक याद दिलाती है l
यीशु की कहानियाँ
मुझे बचपन में स्थानीय छोटा पुस्तकालय जाना पसंद था l एक दिन, पुस्तकों के नवयुवक भाग को देखते हुए मैंने महसूस किया कि मैं लगभग सभी पुस्तक पढ़ सकती हूँ l अपनी उत्सुकता में मैं एक सच्चाई भूल गयी कि नयी पुस्तकें निरंतर पुस्तकालय में जुड़ती रहती थीं l मेरे साहस करने के बावजूद भी पुस्तकें बहुत अधिक थीं l
नयी पुस्तकें निरंतर पुस्तक की आलमारियाँ भर्ती रहती हैं l प्रेरित यूहन्ना नए नियम की अपनी पाँच पुस्तक- यूहन्ना का सुसमाचार; 1, 2, 3 यूहन्ना और प्रकाशितवाक्य जो हाथ से लिपटे हुए चर्म पत्रों पर लिखे गए गए थे को देखकर अवश्य ही वर्तमान में पुस्तकों की उपलब्धता से चकित हुआ होता l
यूहन्ना ने पवित्र आत्मा से विवश होकर यीशु का जीवन व सेवा का आखों देखा हाल मसीहियों को लिखा (1 यूहन्ना 1:1-4) l किन्तु यीशु के कार्य और शिक्षा का एक अंश मात्र ही यूहन्ना के लेखों में है l वास्तव में, यूहन्ना कहता है, यदि यीशु के समस्त कार्य लिखे जाते तो “वे संसार में भी न समातीं” (यूहन्ना 21:25) l
यूहन्ना का दावा वर्तमान में भी सच है l यीशु के विषय जितनी भी पुस्तकें लिखीं गयी हैं, के बाद भी, संसार के पुस्तकालय उसके प्रेम और अनुग्रह की कहानियाँ अपने में समा नहीं सकती हैं l हम इस बात का भी उत्सव मना सकते हैं कि हमारे पास भी बाँटने और आनन्दित होने के लिए व्यक्तिगत कहानियाँ हैं जो हम निरंतर बताते रहेंगे ! (भजन 89:1)
प्रोत्साहित करनेवालों की आशीष
2010 में बनी फिल्म द किंग्स स्पीच इंग्लैंड के राजा जॉर्ज षष्टम(King George VI) की कहानी है, जिसमें वह अपने भाई द्वारा सिंहासन त्याग देने के कारण अपेक्षा के विपरीत राजा बना l देश द्वितीय विश्व युद्ध के कगार पर खड़ा था, सरकारी अधिकारी रेडियो की प्रभावशाली भूमिका के कारण एक शिष्ट और युक्तिपूर्ण नेतृत्व चाहते थे l हालाँकि, राजा जॉर्ज षष्टम, हकलाने की समस्या से संघर्ष करते थे l
मैं फिल्म द्वारा जॉर्ज की पत्नी, एलिजाबेथ के चित्रण की ओर विशेष तौर से आकर्षित हुआ l जॉर्ज द्वारा भाषण की कठिनाई पर विजय पाने के लिए उसके सम्पूर्ण कठिन संघर्ष में, वह निरंतर उसके उत्साह का श्रोत बनी रही l उसकी पत्नी के दृढ़ समर्पण से उसे आवश्यक सहायता मिली जिससे युद्ध के दौरान चुनौती पर विजय प्राप्त करके वह अच्छी प्रकार शासन चला सका l
बाइबल प्रोत्साहित करनेवालों की कहानियों को चिन्हांकित करती है जिन्होंने चुनौतीपूर्ण समयों में जबरदस्त मदद की l इस्राएल के युद्ध के समय मूसा को हारून और हुर का समर्थन मिला (निर्गमन 17:8-16) l इलीशिबा ने अपनी गर्भवती रिश्तेदार, मरियम को प्रोत्साहित किया (लुका 1:42-45) l
अपने मन-परिवर्तन के बाद, पौलुस को बरनबास का समर्थन चाहिए था, जिसके नाम का शब्दश: अर्थ है “शांति का पुत्र l” जब शिष्य पौलुस से भयभीत थे, बरनबास ने, खुद की ख्याति की जोखिम उठाकर, उसकी जिम्मेदारी ली (प्रेरितों 9:27) l मसीही समुदाय द्वारा पौलुस को स्वीकारे जाने के लिए उसका समर्थन महत्वपूर्ण था l बाद में बरनबास पौलुस का सहचर और प्रचारक साथी बना (प्रेरितों 14) l खतरों के बावजूद, दोनों ने मिलकर सुसमाचार प्रचार किया l
यीशु के विश्वासियों को आज भी “एक दूसरे को शांति [देने] और एक दूसरे की उन्नति का कारण” बनने के लिए बुलाया गया है (1 थिस्स. 5:11) l काश हम भी दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए उत्सुक हों, विशेषकर उनके कठिन समयों में l
यात्रा के लिए सामर्थ्य
मसीही जीवन की एक उत्कृष्ट रूपक कथा, हाइंड्स फीट ऑन हाई प्लेसेस(Hinds Feet on High Places), हबक्कूक 3:19 पर आधारित है l कहानी का अत्यधिक-भयभीत नामक चरित्र चरवाहे के साथ यात्रा पर जाता है l किन्तु बहुत डरा हुआ होने के कारण अत्यधिक-भयभीत चरवाहे से उसे गोद में लेकर चलने का आग्रह करता है l
चरवाहा दयालुता से उसको उत्तर देता है, “बजाए इसके कि तुम खुद ही ऊँचे स्थानों पर चढ़ो मैं स्वयं तुम्हें गोद में उठाकर ले चल सकता था l किन्तु यदि मैंने ऐसा किया होता, तो तुम्हारे पिछले टांग विकसित नहीं होते, और ऐसी स्थिति में तुम मेरे साथ चल नहीं पाते l”
अत्यधिक-भयभीत पुराने नियम के नबी हबक्कूक के प्रश्न दोहराता है (और यदि मैं ईमानदार हूँ तो मेरे भी प्रश्न वही हैं) : “मैं क्यों दुःख सहूँ?” “मेरी यात्रा कठिन क्यों है?”
इस्राएल के निर्वासन में जाने से पहले, हबक्कूक, यहूदा में ई. पूर्व सातवीं शताब्दी के आधिरी भाग में था l नबी ऐसे समाज में खुद को उपस्थित पाया जो सामाजिक अन्याय को अनदेखा करता था और बेबीलोन के आसन्न आक्रमण से अभय था (हबक्कूक 1:2-11) l उसने प्रभु से हस्तक्षेप करके कष्ट को दूर करने को कहा (1:13) l परमेश्वर का उत्तर था कि वह न्याय करेगा किन्तु अपने समय में (2:3) l
विश्वास में, हबक्कूक ने प्रभु पर भरोसा करने का चुनाव किया l यदि कष्ट का अन्त नहीं भी होता है, नबी यह विश्वास करता था कि परमेश्वर निरंतर उसकी सामर्थ्य बना रहेगा l
हम भी सुखकर महसूस कर सकते हैं कि प्रभु हमारी सामर्थ्य है और दुःख सहने में हमारी सहायता करते हुए मसीह के साथ हमारी संगति को गहरा करने में हमारे जीवन की सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण यात्राओं का उपयोग करेगा l
स्वर्ग से सहायता
SOS मोर्सकोड सिग्नल 1905 में बना क्योंकि नाविकों को संकट का सिग्नल देने के लिए एक मार्ग की आवश्यकता थी। 1910 में स्टीमशिप केंटकी जहाज द्वारा छयालिस लोगों को बचाने के किए सिग्नल का प्रयोग किया गया।
SOS हाल ही का आविष्कार है, परन्तु मदद के लिए पुकारना उतना पुराना है जितनी मानवता। जब विजयी इस्राएली उस वायदे के देश में बस रहे थे जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था, तब यहोशू ने चौदह वर्षों तक इस्राएलियों का (यहोशू 9:18) और चुनौतीपूर्ण भूभाग (3:15-17) विरोध का सामना किया। इस दौरान "परमेश्वर यहोशू के..." (6:27)।
यहोशू 10 में, जब इसराएली अपने सहयोगी गिबोनियों की सहायता के लिए जाते हैं जिनपर पांच राजाओं ने हमला किया था, तब यहोशू जानता था कि शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित करने के लिए परमेश्वर की मदद की ज़रूरत होगी (पद12)। परमेश्वर ने ओले भेजकर उत्तर दिया, यहां तक कि दुश्मनों को पराजित करने का समय देने के लिए सूर्य को थामे रखा। यहोशू 10:14 बताता है, "यहोवा तो इस्राएल...!"
यदि आपके सामने चुनौतियां हैं, तो आप परमेश्वर को SOS भेज सकते हैं। भले ही मिलने वाली मदद यहोशू से अलग हो, शायद एक अप्रत्याशित नौकरी, अच्छा डॉक्टर या दुख में शांति। हियाव बांधेंऍ वह आपकी पुकार का उत्तर दे रहे हैं, और आपके लिए लड़ रहे हैं।
चौकस देखभाल
स्कूल जाने से पूर्व मैंने अपने बेटे से पूछा कि क्या उसने दांत साफ़ किए है l दोबारा पूछते हुए, मैंने उसे सच बोलने का महत्त्व याद दिलाया l मेरे कोमल चेतावनी से बेखबर, उसने मुझसे गंभीर किन्तु मज़ाकीय तरीके से कहा कि मेरे लिए बाथरूम में सुरक्षा कैमरा लगाना ज़रूरी है l तब मैं खुद जांच पाऊंगा कि मैंने अपने दांत साफ़ किये कि नहीं और फिर झूठ बोलने की परीक्षा नहीं आएगी l
सुरक्षा कैमरा नियम पालन करने में हमारी मदद कर सकता है, लेकिन इसके बाद भी कई स्थान हैं जहां हम जा सकते हैं और कई तरीके हैं जहाँ हम लोगों की आँखों से छिप सकते हैं l यद्यपि हम सुरक्षा कैमरा से बच सकते हैं या उसको धोखा दे सकते हैं, हम यह सोचकर कि हम परमेश्वर की निगाहों से दूर हैं खुद को ही धोखा देंगे l
परमेश्वर पूछता है, “क्या कोई ऐसे गुप्त स्थानों में छिप सकता है, कि मैं उसे न देख सकूँ? (यिर्मयाह 23:24) l उसके प्रश्न में उत्साह और चेतावनी दोनों ही हैं l
चेतावनी यह है कि हम परमेश्वर से छिप नहीं सकते हैं l हम न उससे आगे निकल सकते हैं और न ही उसको धोखा दे सकते हैं l हमारे सारे कार्य उसके सामने हैं l
उत्साह यह है कि पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां हम हमारे स्वर्गिक पिता के चौकस देखभाल से बाहर हैं l हमारे अकेलेपन में भी परमेश्वर हमारे साथ है l चाहे हम कहीं भी जाएं, उस सच्चाई का ज्ञान हमें उसके वचन के प्रति आज्ञाकारी बनने को उत्साहित करें और हमारी देखभाल करनेवाले परमेश्वर की शांति हमें प्राप्त हो l
छिपी हुई सुन्दरता
टोबागो द्वीप से दूर कैरेबियन सागर में तैरते समय उसकी सतह के नीचे देखने के लिए स्नोर्कल(snorkel) अर्थात् श्वास लेने के लिए नली की ज़रूरत को समझाने के लिए हमें अपने बच्चों को फुसलाना था l किन्तु गोता लगाकर जब वे जल के ऊपर आए वे बहुत उल्लसित थे, “नीचे बहुत प्रकार की मछलियाँ हैं! वह इतना सुन्दर है जो मैंने कभी नहीं देखा है जैसे रंगीन मछली!”
इसलिए कि, जल का सतह मीठे पानी की झील की तरह ही दिखाई देती थी जैसे हमारे घर के निकट है, हमारे बच्चे सतह के नीचे छिपी खूबसूरती से वंचित रह जाते l
जब नबी शमूएल यिशे के बेटों में से एक बेटे को इस्राएल के अगले राजा के रूप में अभिषेक करने गया, उसने उसके बड़े बेटे, एलीआब के रूप को देखकर प्रभावित हो गया l नबी ने सोचा कि उसको सही व्यक्ति मिल गया है, किन्तु प्रभु ने एलीआब को अस्वीकार कर दिया l परमेश्वर ने शमूएल को याद दिलाया कि उसका “देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है” (1 शौमेल 16:7) l
इसलिए शमूएल ने पूछा कि क्या उसके और भी बेटे हैं l सबसे छोटा पुत्र उपस्थित नहीं था किन्तु अपने परिवार की भेड़ें चरा रहा था l सबसे छोटा पुत्र, दाऊद को बुलाया गया और प्रभु ने शमूएल से उसे अभिषेक करने को कहा l
अक्सर हम लोगों का बाहरी स्वरुप देखते हैं और हमारे पास हमेशा उनकी भीतरी, और कभी-कभी छिपी, खूबसूरती देखने का समय नहीं होता l जो परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण है उसे हम हमेशा विशेष नहीं मानते हैं l किन्तु यदि हम समय निकालकर सतह के नीचे झांकेंगे, हमें महान ख़जाना मिलेगा l
जगत की ज्योति
मेरी पसंदीदा कलाकृति इंगलैंड, ऑक्सफ़ोर्ड में केम्बल कॉलेज चैपल में टंगा हुआ है l चित्रकार, विलियम होलमैन हंट की चित्रकला, द लाइट ऑफ़ द वर्ल्ड , में यीशु को अपने हाथ में लालटेन लिए हुए एक घर के दरवाजे को खटखटाते हुए दिखाया गया है l
दरवाजे में हैंडल का नहीं होना उस चित्रकला का एक लुभावना पक्ष है l जब पूछा गया कि दरवाजा कैसे खोला जाएगा, हंट का कहना था कि वे प्रकाशितवाक्य 3:20 का चित्र दर्शाना चाहते थे, “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर [आऊंगा] l”
प्रेरित यूहन्ना के शब्द और चित्रकारी यीशु की दयालुता प्रगट करती है l वह शांति का उपहार देने के लिए हमारी आत्माओं के द्वार पर धीरे-धीरे खटखटाता है l यीशु हमारे प्रतिउत्तर के लिए धीरज रखकर इंतज़ार करता है l वह खुद ही दरवाजा खोलकर हमारे जीवनों में प्रवेश नहीं करता है l वह अपनी इच्छा हमारे जीवनों पर नहीं थोपता है l इसके बदले, वह सभी लोगों को उद्धार का उपहार देता है और हमारे मार्गदर्शन के लिए हमें ज्योति l
जो कोई दरवाजा खोलता है, वह उसके अन्दर आने का वादा करता है l और कोई अनिवार्यता या ज़रूरत नहीं है l
यदि आप यीशु की आवाज़ और आपकी आत्मा के दरवाजे पर धीमी दस्तक सुने तो, उत्साहित हो जाएं कि वह आपके लिए धीरज से इंतज़ार करता है और जब आप उसे अपने जीवन में बुलाएँगे वह प्रवेश करेगा l
एक मित्र का सुख
मैंने एक माँ के विषय पढ़ा जो अपनी बेटी को देखकर चकित हो गयी क्योंकि स्कूल से लौटते समय वह कमर से पैर तक कीचड़ से सनी हुई थी l उसकी बेटी ने बताया कि एक सहेली फिसल कर कीचड़ में गिर गयी थी l जबकि दूसरी मदद ढूढ़ने गयी, उसकी छोटी बेटी दुखित हुई और अपनी सहेली को अपने चोटिल पैर को पकड़े हुए बैठे देखकर, शिक्षिका के आने तक अपनी सहेली के साथ उस कीचड़ में बैठ गयी l
जब अय्यूब ने अपने बच्चों की विनाशकारी हानि उठायी और उसका सम्पूर्ण शरीर पीड़ादायक घावों से भर गया, उसका दुःख अत्यधिक दुखदायी था l बाइबल बताती है कि उसके तीन मित्र उसको दिलासा देना चाहते थे l जब उनकी मुलाकात अय्यूब से हुई, वे “चिल्लाकर रो पड़े; और अपना अपना बागा फाड़ा और आकाश की ओर धूल उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाला l तब वे साथ दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दुःख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उससे एक भी बात न कही” (अय्यूब 2:12-13) l
आरम्भ में अय्यूब के मित्रों ने आश्चर्जनक समझ दर्शायी l उन्होंने भाप लिया कि अय्यूब को केवल किसी व्यक्ति की ज़रूरत थी जो उसके संग बैठकर उसके साथ विलाप कर सके l वे तीन लोग अगले कुछ अध्यायों में बोलने वाले थे l विडम्बना यह है कि जब उसके मित्र बोलना आरंभ करते हैं, वे अय्यूब को व्यर्थ सलाह देते हैं (16:1-4) l
अक्सर किसी दुखित मित्र को दिलासा देते समय उसके दुःख में उसके साथ बैठना सबसे अच्छा है l