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Articles by लिसा एम समरा

प्रत्याशा में प्रतीक्षा

ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड, में प्रत्येक मई दिवस (मई 1) पर, एक भीड़ प्रातःकाल बसंत को आमंत्रित करने के लिए इकट्ठी होती है l मैग्डालेन संगीत मण्डली प्रातः 6.00 बजे, मैग्डालेन मीनार से गीत गाते हैं l हजारों लोग गीत एवं घंटी की आवाज़ से काली रात के छटने का इंतज़ार करते हैं l

मैं भी अक्सर, इन मनोरंजन करनेवालों की तरह इंतज़ार करती हूँ l मैं प्रार्थना के उत्तर अथवा प्रभु के मार्गदर्शन का इंतज़ार करती हूँ l यद्यपि मुझे नहीं पता कि कब मेरा इंतज़ार करना समाप्त होगा l भजन 130 में भजनकार लिखता है कि वह किसी गहरी पीड़ा में रहते हुए एक ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है जो सबसे काली रात सी महसूस हो रही है l अपनी परेशानियों में, वह परमेश्वर पर भरोसा करने का चुनाव करता है और जिस तरह पहरुआ अपनी ड्यूटी करते हुए भोर के आने का इंतज़ार करता है, वह भी उसी प्रकार जागता  रहता है l “पहरुए जितना भोर को चाहते हैं, उस से भी अधिक मैं यहोवा को अपने प्राणों से चाहता हूँ” (पद. 6) l

भजनकार को अंधकार से बाहर निकालनेवाला परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का इंतज़ार उसके दुःख के मध्य उसे सहन करने के लिए आशा देती है l सम्पूर्ण वचन में पायी जानेवाली परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर आधारित रहकर, वह आशा उस स्थिति में भी जब प्रथम किरणें अभी तक दिखाई नहीं दी है उसे इंतज़ार करने में उसकी सहायता करती है l 

यदि आप काली रात के मध्य में भी हैं तो भी उत्साहित हो जाएं l सुबह होने वाली है – इस जीवन में अथवा स्वर्ग में! इस बीच, आशा को न त्यागें किन्तु प्रभु के छुटकारे के लिए इंतज़ार करते रहें l वह विशवासयोग्य है l

विश्वास, प्रेम और आशा

मेरी बुआ कैथी ने अपने पिता (मेरे नाना) की घर में 10 वर्ष देखभाल की। जब वह आत्मनिर्भर थे, वह खाना पकाती, कपड़े धोती। उनकी सेहत बिगड़ने पर उन्होंने नर्स की भूमिका निभाई।

उनकी सेवा पौलुस के शब्दों का आधुनिक उदाहरण है, जिसने थिस्सलुनिकियों को लिखा था कि वह उन सब के विषय में परमेश्वर का धन्यवाद...। (1 थिस्सलुनिकियों 1:3)

बुआ ने विश्वास और प्रेम  से सेवा की। उनकी प्रतिदिन की, देखभाल उनके इस विश्वास का परिणाम थी कि इस कार्य की बुलाहट परमेश्वर की ओर से थी। उनका श्रम परमेश्वर और उनके पिता के प्रति प्रेम से उत्पन्न हुआ था।

उनमें भी आशा की धीरता थी। मेरे नाना दयालु व्यक्ति थे, परन्तु उनकी हालत बिगड़ते देखकर उन्होंने परिवार और दोस्तों से मिलना-जुलना और कहीं आना जाना कम कर दिया। वह इसलिए दृढ़ बनी रही क्योंकि उन्हें विश्वास था कि परमेश्वर हर दिन उन्हें सामर्थ देंगे, स्वर्ग की उस आशा के साथ जो मेरे दादा की प्रतीक्षा कर रही थी। 

चाहे किसी अपने की देखभाल करने की,  पड़ोसी की मदद करने की या अपना समय देने की बात हो, धीरज धारण करें क्योंकि आप वह कार्य कर रहे हैं जिसके लिए परमेश्वर ने आपको बुलाया है। आपका श्रम विश्वास, आशा और प्रेम की एक सामर्थपूर्ण गवाही हो सकते हैं।

पानी पर चलना

एक विशेष रूप से अधिक ठन्डे दिन मैं विश्व की पांचवीं बड़ी झील ‘मिशिगन’, को देखने गया जो जम गई थी। दृश्य लुभावना था। पानी लहरों में जम गया था, जो एक अद्भुत बर्फीली कलाकृति बना रहा था।

किनारे पर झील की सतह ठोस होने के कारण मेरे लिए यह "पानी पर चलने" का अवसर था। यह जानते हुए भी कि बर्फ की परत काफी मोटी थी, मैंने कदम फूंक-फूंक कर रखे, डरता था कि बर्फ मेरा भार उठा सकेगी या नहीं। सावधानी से कदम आगे बढाते हुए मैं यीशु के पतरस को नाव से बाहर बुलाने और उसके गलील के सागर पर चलने के बारे में सोचने लगा।

यीशु को पानी पर चलते देख चेले डर गए थे। परन्तु उन्होंने कहा, "ढाढ़स बांधों मैं हूं; डरो मत। "(मत्ती 14:26-27)। अपने डर पर काबू पाकर पतरस नाव के बाहर पानी पर निकल आया क्योंकि वह जानता था कि यीशु वहां थे। जब हवा और लहरों के कारण उसके कदम लड़खड़ाने लगे, तो पतरस ने उन्हें पुकारा। यीशु अब भी वहां थे, इतने निकट कि बचाने के लिए अपने हाथ बढ़ा सकें।

यदि आपको यीशु आज वह करने को कह रहे हैं जो पानी पर चलने के समान असंभव लगता हो, ढाढ़स बान्धो। जिसने आपको बुलाया है वह आपके साथ है।

काफ़ी नहीं है?

कलीसिया से लौटते हुए सफ़र में, मेरी बेटी गोल्डफिश क्रैकर खा रही थी। और मेरे अन्य बच्चे उसे बाँट कर खाने के लिए बार-बार कह रहे थे। बात बदलने के लिए, मैंने पूछा, “तुमने आज क्लास में क्या किया”? उसने कहा कि उन्होंने रोटी और मछली की एक टोकरी बनाई थी क्योंकि एक लड़के ने यीशु को पांच रोटियां और दो मछली दीं थी जिसका प्रयोग यीशु ने 5,000  लोगों को खिलाने के लिए किया था (यूहन्ना 6:1–13)।

अपने लंच को दूसरों के साथ बाँटना उस लड़के के उदारता थी। क्या तुम्हें भी अपनी मछली को बाँट कर नहीं खाना चाहिए? मैंने पूछा। उसने कहा “नहीं माँ। हर किसी के लिए काफ़ी नहीं है!"

जो दिख रहा हो बाँटना कठिन होता है। शायद हम गिनते और तर्क करते हैं कि हर किसी के लिए काफ़ी नहीं होगा। और सोचते है कि अगर मैं दे दूं, तो मेरे पास नहीं होगा।

पौलुस कहते हैं कि जो कुछ हमारे पास है वह परमेश्वर से आता है, जो हमें फलवन्त करना चाहते हैं “हर बात में जिससे [हम] उदार बनें” (2 कुरिन्थियों 9:10–11)। स्वर्ग का गणित आभाव का नहीं वरन बहुतायत का है। जब हम दूसरों के प्रति उदार होते हैं तब परमेश्वर हमारा ध्यान रखने का वादा करते हैं।

आभार की भावना विकसित करना

क्या आप आभार की भावना विकसित करना चाहते हैं? सतराहवीं शताब्दी के ब्रिटिश कवि जॉर्ज हरबर्ट, अपनी कविता “ग्रेटफुल्नेस” के माध्यम से पाठकों को उस लक्ष्य के प्रति प्रोत्साहित करते हैं: "आपने मुझे बहुत कुछ दिया है, एक चीज़ और दे दो: एक आभारी हृदय।" हर्बर्ट समझ गए थे कि आभारी होने के लिए केवल एक ही चीज़ उन्हें चाहिए थी, उन आशीषों के बारे में जागरूकता जो परमेश्वर ने उन्हें पहले ही दी थीं।

रोमियों 11:36  में बाइबिल मसीह यीशु को सभी आशीषों का स्रोत बताती है, "उसी की ओर से और उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है"। इसमें हर रोज़ के जीवन के बहुमूल्य और सांसारिक, वरदान शामिल हैं। जीवन में जो हम प्राप्त करते हैं, वह हमारे स्वर्गीय पिता की ओर से आता है, (याकूब 1:17), और वह अपने प्रेम के कारण उन वरदानों को हमें स्वेच्छा से देते हैं।

उन सभी सुखों के स्रोत का आभार मानना मैं सीख रही हूं जिनका हर दिन अनुभव करती हूँ, और जिन्हें मैं अक्सर महत्वहीन समझती हूँ। जैसे एक ताज़ा सुबह में सैर, दोस्तों के साथ शाम, एक भरपूर रसोई, खिड़की के बाहर सुन्दर दुनिया और ताज़ा कॉफी की सुगन्ध।

इन आशीषों के प्रति जागरूकता आभारी हृदय विकसित करने में हमारी मदद करेगी।