जब मैंने अपने मित्र इरिन के टखने पर टैटू देखा जिसमें बॉल फेंककर खूटियों का गिरना दर्शाया गया था तो मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुयी l इरिन को इस अद्वितीय टैटू को प्राप्त करने की प्रेरणा सारा ग्रोव्स के गीत “सेटिंग अप द पिन्स” को सुनकर मिली थी l यह दक्ष गीतकाव्य श्रोताओं को अपने दोहराए जानेवाले, दिनचर्या में आनंद खोजने के लिए उत्साहित करता है जो कभी-कभी अपने हाथों से बार-बार उन खूंटियों को पुनः खड़ा करने की तरह व्यर्थ महसूस होता है, केवल फिर से किसी के द्वारा पुनः गिराए जाने के लिए l

कपड़े धोना, भोजन बनाना, मैदान साफ़ करना l जीवन कामों से भरा हुआ है जिन्हें, एक बार पूरा करने के बाद, पुनः दोहराया जाना है – बार-बार l यह कोई नया संघर्ष नहीं है परन्तु एक पुरानी निराशा, जिसके साथ पुराने नियम के सभोपदेशक पुस्तक में भी जूझा गया था l यह पुस्तक लेखक द्वारा शिकायत करते हुए आरम्भ होता है कि दैनिक मानव जीवन न ख़त्म होने वाले चक्र की भांति व्यर्थ है (1:2-3), अर्थहीन भी, क्योंकि “जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा” (पद.9) l

फिर भी, मेरे मित्र की तरह, लेखक यह याद करके पुनः आनंद का भाव और अर्थ प्राप्त कर सका कि हमारी आखिरी तृप्ति “परमेश्वर का भय [मानना] और उसकी आज्ञाओं का पालन है” (12:13) l यह जानने से तसल्ली मिलती है कि परमेश्वर साधारण, कदाचित जीवन के नीरस पहलुओं को भी महत्त्व देता है और हमारी विश्वासयोग्यता को पुरुस्कृत करेगा (पद.14) l

आप निरंतर कौन सी “खुटियाँ” खड़ी कर रहे है? उन दिनों में जब दोहराए जानेवाले कार्य थकानेवाले महसूस हो, काश हम थोड़ा समय निकालकर हर एक कार्य को प्रेम के बलिदान के रूप में परमेश्वर को सौंपेंl