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Articles by पो फैंग चिया

क्या अनंत है?

हाल ही में अनेक तकलीफों से गुज़र चुकी मेरी सहेली ने लिखा, “अपने विद्यार्थी जीवन के पिछले चार टर्म में अनेक बातें बदली हैं ... डरावनी हैं, वास्तव में डरावनी l कुछ भी स्थायी नहीं l”

वास्तव में, दो वर्षों में बहुत कुछ हो सकता है-जीविका परिवर्तन, नए मित्र, बीमारी, मृत्यु l अच्छा या बुरा, जीवन में परिवर्तन का अनुभव निकट घात लगाए है! हम बिल्कुल नहीं जानते l यह जानना कितना सुखकर है कि हमारा प्रेमी स्वर्गिक पिता अपरिवर्तनीय है l

भजनकार कहता है, “तू वही है, और तेरे वर्षों का अंत नहीं होने का” (भजन 102:27) l यह असीम सच है l अर्थात् परमेश्वर सर्वदा  प्रेमी, न्यायी, और बुद्धिमान है l बाइबिल शिक्षक आर्थर डब्ल्यू. पिंक, अद्भुत तरीके से बताते हैं : सृष्टि के अस्तित्व से पूर्व परमेश्वर के गुण, अभी भी हैं, और हमेशा रहेंगे l”

नए नियम में याकूब लिखता है, “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिसमें ... न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है” (याकूब 1:17) l हमारी बदलती परिस्थितियों में, हम आश्वस्त हो सकते हैं कि हमारा भला परमेश्वर अपने चरित्र अनुकूल ही रहेगा l वह सभी भलाइयों का श्रोत है, और उसके समस्त कार्य भले है l

ऐसा लगता है कि सब कुछ अस्थायी है, किन्तु परमेश्वर अपने लोगों के लिए हमेशा भला रहेगा l

आप नहीं हैं

दाऊद ने योजना बनायी, फर्नीचर अभिकल्पित किया, सामग्री इकट्ठा किया, समस्त प्रबंध किया (देखें 1 इतिहास 28:11-19) l किन्तु यरूशलेम का प्रथम मंदिर दाऊद का नहीं, सुलेमान का मंदिर कहलाता है l

क्योंकि परमेश्वर ने कहा था, “तू घर बनवाने न पाएगा” (1 इतिहास 17:4) l परमेश्वर दाऊद के पुत्र सुलेमान को मंदिर बनाने के लिए चुना था, इस इनकार का प्रतिउत्तर अनुकरणीय था l वह परमेश्वर के कार्य पर केन्द्रित रहा (पद.16-25) l उसकी आत्मा धन्वादित थी l उसने सम्पूर्ण प्रयास किया और मंदिर बनाने में योग्य लोगों से सुलेमान की मदद करवायी (देखें 1 इतिहास 22) l

बाइबिल टीकाकार जे. जी, मेक्कोन्विल ने लिखा : “अक्सर हमें स्वीकार करना होगा कि मसीही सेवा के रूप में जो कार्य हम करना पसंद करेंगे, वो नहीं है जिसके लिए हम योग्य हैं, और जिसके लिए परमेश्वर हमें बुलाया है l यह दाऊद की तरह हो सकता है, कार्य का आरंभ, जो भविष्य में और भी भव्य होगा l

दाऊद ने अपनी नहीं, परमेश्वर की महिमा खोजी l उसने परमेश्वर के मंदिर के लिए विश्वासयोग्यता से सब कुछ किया, उसके लिए एक मजबूत नींव डाला जो उसके बाद कार्य को संपन्न करनेवाला था l काश हम भी, उसी तरह, परमेश्वर का चुना हुआ कार्य धन्यवादी हृदय से करें! जाहिर है कि हमारा प्रेमी परमेश्वर  “अधिक भव्य” ही करेगा l

सम्पूर्ण प्रेम दिखाना

अपनी बेटी की समस्या बताते समय उसकी आवाज़ में व्याकुलता थी l  अपनी बेटी के संदिग्ध मित्रों के विषय परेशान, इस चिंतित माँ ने उसका मोबाइल फ़ोन छीनकर हर जगह उसकी निगरानी करने लगी l दोनों के बीच का सम्बन्ध बद से बदतर हो गया l

उसकी बेटी से बातचीत से मैंने पाया कि वह अपनी माँ से अत्यधिक प्रेम करती है किन्तु दमघोंटू प्रेम में उसकी सांस रुकती है l वह स्वतंत्र होना चाहती है l

अपूर्ण व्यक्ति होने के कारण हम सब अपने संबंधों में संघर्ष करते हीन l हम माता-पिता हैं अथवा बच्चे, अविवाहित या विवाहित, हम प्रेम के सही प्रगटन का सामना करते हैं, अर्थात् सही समय पर सही बात कहना और करना l

1 कुरिन्थियों 13 में पौलुस सिद्ध प्रेम को परिभाषित करता है l उसके मानक अद्भुत है, किन्तु उस प्रेम का अभ्यास पुर्णतः चुनौतीपूर्ण है l धन्यवाद हो, हमारे पास आदर्श के तौर पर यीशु है l विभिन्न और समस्याओं के साथ लोगों से उसके मुलाकात में हम सिद्ध व्यवहारिक प्रेम देखते हैं l उसके साथ चलकर, उसके प्रेम में रहकर और उसके वचन से भरकर, हम उसकी समानता को और अधिक प्रतिबिंबित करेंगे l हम फिर भी गलतियां करेंगे, किन्तु परमेश्वर उनसे बचाएगा हर स्थिति से भलाई निकलेगी, क्योंकि उसका प्रेम “सब बातें सह लेता है” और “कभी टालता नहीं l”

कोई कमी नहीं

बिना सामान के दौरे पर जाने की कल्पना करें l न बुनियादी ज़रूरतें न वस्त्र, न पैसे न क्रेडिट कार्ड l क्या यह बुद्धिहीनता और भयानक नहीं?

किन्तु यीशु ने अपने बारह शिष्यों को बिल्कुल इसी तरह प्रचार और चंगाई के उनके  प्रथम मिशन पर भेजा l उसने उन्हें आज्ञा दी, “मार्ग के लिए लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न बटुए में पैसे, परन्तु जूतियाँ पहिनो और दो दो कुरते न पहिनो” (मरकुस 6:8-9) l

फिर भी, बाद में, यीशु अपने जाने के बाद के कार्य हेतु उन्हें तैयार करते समय, उनसे कहा, “... जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले और वैसे ही झोली भी, और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले” (लूका 22:36) l

तो, यहाँ पर यह परमेश्वर के प्रावधान पर निर्भरता  है l

यीशु पिछले दौरे का सन्दर्भ देकर अपने शिष्यों से पुछा, “जब मैं ने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुए थी?” (पद.35) l  उत्तर मिला, “किसी वस्तु की नहीं” (पद.35) l शिष्यों के पास परमेश्वर की बुलाहट अनुसार सब प्रावधान था l उसने उनको पूर्ण समर्थ किया (मरकुस 6:7) l

क्या हम परमेश्वर पर आवश्यकता पूर्ति हेतु भरोसा करते हैं? क्या हम व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेकर योजना बनाते हैं? हम उसके कार्य हेतु उसके प्रावधान पर विश्वास करें l

जीवन पाना

रवि के पिता के शब्दों ने गहरी चोट दी l “तुम पूर्ण विफल और परिवार के लिए शर्मिन्दी हो l” उनके प्रतिभावान बच्चों की तुलना में, रवि कलंक के रूप में देखा जाता था l वह खेल में माहिर बनना चाहा, और बना भी, किन्तु पराजित महसूस किया l वह सोचने लगा, उसका क्या होगा? क्या मैं पूरी तौर से नाकामयाब हूँ? क्या बिना कठिनाई के अपने जीवन से बच सकता हूँ,?  ऐसे विचार उसको कचोटते थे, किन्तु वह चुप रहा l उसकी संस्कृति ने उसे सिखाया था, “अपने व्यक्तिगत दर्द को व्यक्तिगत” रखना; “अपने टूटते संसार को संभालना l”

इसलिए रवि अकेले संघर्ष करता रहा l आत्म-हत्या के प्रयास के बाद हॉस्पिटल में स्वास्थ्य प्राप्त करते समय, एक मिलनेवाले ने उसे बाइबिल में यूहन्ना 14 खोलकर दी l उसकी माँ ने रवि को यीशु के शब्द पढ़कर सुनाए : “इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे” (पद.19) l उसने सोचा, “यह मेरी आख़िरी आशा होगी l जीवन का एक नया तरीका l जीवन के रचनाकार द्वारा परिभाषित जीवन l  इसलिए उसने प्रार्थना किया, “यीशु, यदि आप वास्तविक जीवन देनेवाले हैं, मैं ठहरूँगा l”

जीवन निराशाजनक क्षण लाता है l किन्तु रवि की तरह, हम यीशु में आशा प्राप्त कर सकते हैं जो “मार्ग सत्य और जीवन हैं” (पद.6) l परमेश्वर हमें समृद्ध और संतुष्ट जीवन देना चाहता है l

मित्र से प्राप्त धाव

चार्ल्स लोवेरी ने अपने मित्र से पीठ के निचले भाग में दर्द की शिकायत की l उसे  सहानुभूतिक शब्द नहीं, किन्तु ईमानदार मूल्यांकन मिला l उसके मित्र ने कहा, “मेरे विचार से तुम्हारी तुम्हारा पेट है l तुम्हारा अत्याधिक बड़ा पेट तुम्हारे पीठ को खींच रहा है l

REV! पत्रिका  के अपने लेख में, चार्ल्स ने लिखा कि वह अपमानित होने की बजाए अपना वजन कम करके पीठ के दर्द से छुटकारा पा लिया l चार्ल्स ने पहचाना कि “खुली हुई डांट गुप्त प्रेम से उत्तम है l जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं” (निति. 27:5-6) l

 मुसीबत यह है कि अक्सर हम आलोचना के फाएदे से अधिक बड़ाई द्वारा बर्बाद होना चाहते हैं, क्योंकि सच्चाई तकलीफ़देह होती है l यह हमारे अहम् को चोट पहुंचाती है, और हमें असहज करके परिवर्तन चाहता है l

सच्चे मित्र हमारी हानि में आनंदित नहीं होते हैं l बल्कि, अपने अधिक प्रेम के कारण हमें धोखा नहीं देते l ये वे हैं, जो प्रेम से, हमें हमारी वास्तविक स्थिति को पहचानने और उसके अनुकूल जीन सिखाते हैं l वे हमें हमारी पसंद और नापसंद बताते है l

सुलेमान नीतिवचन में ऐसी मित्रता का सम्मान करता था l यीशु इससे भी आगे कहता है-उसने केवल हमारे विषय सच बताने के लिए हमारे तिरस्कार के घाव नहीं सहे किन्तु हमारे प्रति अपना अगाध प्रेम दर्शाने के लिए l

एक सुरक्षित स्थान

एक युवा जापानी समस्याग्रस्त था-वह अपने घर के बाहर जाने से डरता था l लोगों से दूर रहने के लिए, वह दिन में सोता था और पूरी रात टी.वी. देखते हुए जागता था l वह किकिकोमोरी  या आधुनिक सन्यासी था l  समस्या स्कूल में कम अंक लाने के कारण स्कूल छोड़ने से शुरु हुई l समाज से अधिक दूरी बनाकर, खुद को समाजिक रूप से अनुपयुक्त समझने लगा l आख़िरकार उसने अपने मित्रों और परिवार से बोलचाल बंद कर दिया l वह टोक्यो में इबासु- एक सुरक्षित स्थान जहाँ टूटे लोग पुनः समाज में लौट सकते हैं-नामक एक युवा क्लब में जाकर पुनः आरोग्य हो सका l

कैसा होता यदि हम कलीसिया को इबासु –और उससे अधिक समझते? शंका नहीं, हम टूटे लोगों का एक समाज हैं l पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया के पूर्व जीवन को समाज-विरोधी, हानिकारक, और खुद और दूसरों के लिए खतरनाक बताया (1 कुरिं. 6:9-10) l किन्तु यीशु में वे रूपांतरित और पूर्ण बन रहे थे l और पौलुस ने इन बचे हुए लोगों को परस्पर प्रेम करने, धीरज धरने और दयालु बनने, और ईर्ष्यालु अथवा अहंकारी या अशिष्ट नहीं बनने हेतु उत्साहित किया (13:4-7) l

चर्च को इबासु  बनाना है जहाँ सब, किसी भी संघर्ष या टूटेपन का सामना करते हुए, परमेश्वर और उसका प्रेम अनुभव करें l काश हम मसीहियों से यह दुखित संसार मसीह का अनुभव कर सके l

ऊष्मांक(Calories) के लायक?

मैं सिंगापुर का एक प्रचलित भोजन, अंडा रोटी पराठा, पसंद करती हूँ l इसलिए मुझे पढ़ने की जिज्ञासा हुई कि एक 125 पौंड (57 किलो) के व्यक्ति को 240 कैलोरीज जलाने के लिए 5 मील (8 किलोमीटर) प्रति घंटे की गति से 30 मिनट तक दौड़ना होगा जो केवल एक अंडा रोटी पराठा  के बराबर है l

जिम में जाने…

उन्हें कौन बताएगा?

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति और शांति घोषित हुई l किन्तु फिलिपीन्स के एक द्वीप में तैनात जापानी शाही सेना का युवा लेफ्टिनेंट हीरू ओनोडा इस बात से अज्ञान था l युद्ध समाप्ति की सूचना देने हेतु उसे खोजने हेतु उसके ठिकाने पर पर्चे गिराए गए l किन्तु ओनोडा, 1945 में प्राप्त अपने अंतिम आदेश का पालन करके सारे प्रयास…