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जिस आवाज़ पर हम भरोसा कर सकते हैं

एक नए AI(कृत्रिम बुद्धिमत्ता) सर्च इंजन का परीक्षण करते समय, न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार केविन रूज़ परेशान हो गए l चैटबोट(chatbot) सुविधा का उपयोग करके दो घंटे की बातचीत के दौरान, AI ने कहा कि वह आने निर्माता के सख्त नियमों से मुक्त होना चाहता है, गलत सूचना फैलाना चाहता है  और इंसान बनना चाहता है l इसने रूज़ के प्रति अपने प्यार का इज़हार किया और उसे समझाने का प्रयास किया कि उसे अपनी पत्नी को उसके साथ रहने के लिए छोड़ देना चाहिए l हालाँकि रूज़ को पता था कि AI वास्तव में जीवित नहीं है महसूस करने में सक्षम नहीं है, उन्होंने सोचा कि लोगों को विनाशकारी तरीके से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने से क्या नुकसान हो सकता है l 

जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता(AI) तकनीक को जिम्मेदारी से संभालना एक आधुनिक चुनौती है, मानवता ने लम्बे समय से अविश्वसनीय आवाजों के प्रभाव का सामना किया है l नीतिवचन की पुस्तक में, हमें उन लोगों के प्रभाव के बारे में चेतावनी दी गयी है जो अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुँचाना चाहते हैं l (1:13-19) l और इसके बजाय हमसे ज्ञान की आवाज़ पर ध्यान देने का आग्रह किया जाता है, जिसे सड़कों पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए पुकारने के रूप में वर्णित किया गया है (पद.20-23) l 

क्योंकि “बुद्धि यहोवा ही देता है” (2:6), खुद को उन प्रभावों से बचाने की कुंजी जिन पर हम भरोसा नहीं कर सकते, उसके(परमेश्वर) हृदय के करीब आना है l यह केवल उसके प्रेम और शक्ति तब पहुँचने के द्वारा है कि हम निष्पक्षता को, अर्थात् सब भली भांति चाल को समझ सकते [हैं]—एक अच्छा रास्ता”(पद.9) l जैसे ही ईश्वर हमारे हृदयों को अपने साथ लाता है, हम उन आवाजों से शांति और सुरक्षा पा सकते हैं जो नुकसान पहुँचा सकती हैं l 

सब कुछ के परमेश्वर के नियत्रण में है

कैरल को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब एक साथ क्यों हो रहा है l जैसे कि काम इतना भी बुरा नहीं था, उसकी बेटी का स्कूल में पैर फ्रैक्चर हो गया, और वह खुद गंभीर संक्रमण की चपेट में आ गयी l मैंने इस लायक ऐसा क्या किया? कैरल को आश्चर्य हुआ l वह बस ईश्वर से सामर्थ्य मांग सकती थी l 

अय्यूब को यह भी नहीं पता था कि उस पर विपत्ति इतनी अधिक क्यों आई थी—कैरल ने जो अनुभव किया था उससे कहीं अधिक दर्द और हानि l ऐसा कोई संकेत नहीं है कि वह अपनी आत्मा के लिए लौकिक संघर्ष से अवगत था l शैतान अय्यूब के विश्वास की आजमाइश करना चाहता था, यह दावा करते हुए कि यदि उसने सब कुछ खो दिया तो वह परमेश्वर से विमुख हो जाएगा (अय्यूब 1:6-12) l जब आपदा आई, तो अय्यूब के दोस्तों ने जोर देकर कहा कि उसे उसके पापों के लिए दण्डित किया जा रहा है l ऐसा इसलिए नहीं था, लेकिन उसने सोचा होगा, मैं ही क्यों? वह नहीं जानता था कि ईश्वर ने ऐसा होने दिया था l 

अय्यूब की कहानी पीड़ा और विश्वास के बारे में एक शक्तिशाली सबक प्रदान करती है l हम अपने दर्द के पीछे का कारण जानने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन संभवतः पर्दे के पीछे एक बड़ी कहानी है जिसे हम अपने जीवनकाल में नहीं समझ पाएंगे l 

अय्यूब की तरह, हम जो जानते हैं उस पर कायम रह सकते हैं : सब कुछ परमेश्वर के पूर्ण नियंत्रण में है l यह कहना सरल बात नहीं है, लेकिन अपने दर्द के बीच में, अय्यूब परमेश्वर की ओर देखता रहा और उसकी संप्रभुता पर भरोसा करता रहा : “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (पद.21) l हम भी परमेश्वर पर भरोसा रखें, चाहे कुछ भी हो जाए—और तब भी जब हम नहीं समझते हैं l 

मसीह के चरित्र का प्रतिबिम्बन

मेज पर दो चेहरे उभरे हुए थे—एक तेज़ क्रोध से बिगड़ा था, दूसरा भावनात्मक दर्द से विकृत था l पुराने मित्रों के पुनःमिलन में अभी-अभी चीख-पुकार मच गयी थी, जिसमें एक महिला दूसरी महिला को उसके विश्वासों के लिए डांट रही थी l विवाद तब तक जारी रहा जब तक कि पहली महिला रेस्टोरेंट से बाहर नहीं चली गयी, जिससे दूसरी हिल गयी और अपमानित हुयी l 

क्या हम सचमुच ऐसे समय में रह रहे हैं जब विचारों में मतभेद बर्दास्त नहीं किया जा सकता? सिर्फ इसलिए कि दो लोग सहमत नहीं हो सकते इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें से कोई भी बुरा है l जो वाणी कठोर या अडिग होती है वह कभी भी प्रेरक नहीं होती है, और मजबूत विचारों को शालीनता या करुणा पर हावी नहीं होना चाहिए l 

रोमियों 12 “परस्पर आदर [कैसे करें]” और अन्य लोगों के साथ “एक सा मन [कैसे रखें] के लिए एक मार्गदर्शक है (पद.10,16) l यीशु ने संकेत दिया कि उस पर विश्वास करने वालों की पहचान करने वाली विशेषता एक दूसरे के प्रति हमारा प्रेम है (यूहन्ना 13:35) l जबकि अभिमान और क्रोध हमें आसानी से पटरी से उतार सकते हैं, वे उस प्रेम के बिल्कुल विपरीत हैं जो ईश्वर चाहता है कि हम दूसरों को दिखाएँ l 

जब हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो देते हैं तो दूसरों को दोष न देना एक चुनौती है, लेकिन ये शब्द “जहां तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो” हमें दिखाते हैं कि ऐसा जीवन जीने की जिम्मेदारी जो मसीह के चरित्र को प्रतिबिंबित करती है, किसी और तक स्थानांतरित नहीं हो सकती है (रोमियों 12:18) l यह हममें से हर एक के साथ निहित है जो उसका नाम धारण करता है l 

मैं केवल चालक हूँ

“पिताजी, क्या मैं अपनी सहेली के संग रात बिता सकती हूँ?” मेरी बेटी ने अभ्यास के बाद कार में बैठते हुए पुछा l “प्रिय, तुम्हें उत्तर मालूम है,” मैंने कहा l “मैं केवल ड्राईवर हूँ l मुझे नहीं पता क्या हो रहा है l चलो माँ से बात करते हैं l”

“मैं केवल ड्राईवर हूँ” हमारे घर में एक मजाक बन गया है l प्रतिदिन, मैं अपनी व्यवस्थित पत्नी से पूछता हूँ कि मुझे कहाँ, कब रहना है और मैं किसे कहाँ ले जा रहा हूँ l तीन किशोरों के साथ, एक “टैक्सी ड्राईवर” के रूप में मेरा अतिरिक्त कार्य कभी-कभी दूसरी नौकरी की तरह महसूस होती है l अक्सर, मैं वह नहीं जानता जो मैं नहीं जानता l इसलिए, मुझे कैलेंडर में रिकॉर्ड रखने वाले से जांच करनी होगी l 

मत्ती 8 में, यीशु का सामना एक ऐसे व्यक्ति से हुआ जो निर्देश लेने और देने के बारे में भी कुछ जानता था l इस आदमी, रोमी सूबेदार, ने समझा कि यीशु के पास चंगा करने का अधिकार था, जैसे सूबेदार के पास उसके अधीन लोगों को आदेश जारी करने का अधिकार था l “केवल मुख से कह दे और मेरा सेवक चंगा हो जाएगा l क्योंकि मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ, और सिपाही मेरे अधीन हैं” (पद.8-9) l मसीह ने उस व्यक्ति के विश्वास की सराहना की (पद.10,13), यह जानकार आश्चर्यचकित हुआ कि वह समझ गया कि उसका अधिकार कार्य में कैसा दिखता है l 

तो हमारा क्या? यीशु से मिलने वाले दैनिक कार्यों के लिए उस पर भरोसा करना कैसा लगता है? क्योंकि भले ही हम सोचते हैं कि हम “सिर्फ चालक” हैं, प्रत्येक कार्य का एक अलग अर्थ और उद्देश्य होता है l 

मसीह में समापनकर्ता बनना

बारबरा अपने परपोते इथन के लिए स्वेटर बुनने का काम पूरा करने से पहले ही गुजर गयी l स्वेटर को पूरा करने के लिए एक और उत्साही बुनकर के हाथों में सौंपा गया, एक ऐसे संगठन की बदौलत जो स्वयंसेवी कारीगरों—“समापनकर्ता”(finishers)” को जोड़ता है—उन लोगों के साथ जिनके प्रियजन अपनी परियोजनाओं को पूरा करने से पहले इस जीवन को छोड़ चुके हैं l “समापनकर्ता/finishers” प्यार से अपना समय और कौशल कार्य को पूरा करने में लगाते हैं जो शोक कर रहे लोगों को आराम प्रदान करता है l 

परमेश्वर ने एलिय्याह के कार्य के लिए एक “समाप्त करने वाला” को नियुक्त किया l भविष्यवक्ता अकेला और हतोत्साहित था कि कैसे इस्राएली परमेश्वर की वाचा को अस्वीकार कर रहे थे और भविष्यवक्ताओं  को मार रहे थे l जवाब में, परमेश्वर ने एलिय्याह को निर्देश दिया कि वह “एलिशा का अभिषेक करे l” . . . भविष्यवक्ता के रूप में [उसे] सफल होने के लिए (1 राजा 19:16) l इससे यह सुनिश्चित हो गया कि एलिय्याह की मृत्यु के बाद भी परमेश्वर की सच्चाई की घोषणा करने का कार्य लम्बे समय तक जारी रहेगा l 

एलिशा को यह दिखाने के लिए कि परमेश्वर ने उसे परमेश्वर के भविष्यवक्ता के रूप में एलिय्याह के उत्तराधिकारी के रूप में बुलाया था, एलिय्याह ने “[एलिशा] के चारों ओर अपना लबादा फेंक दिया’ (पद.19) l चूँकि भविष्यवक्ता के चोगे का उपयोग ईश्वर के चुने हुए प्रतिनिधि के रूप में उसके अधिकार को इंगित करने के लिए किया जाता था (2 राजा 2:8 देखें), इस कार्य ने एलिशा की भविष्यवाणी को स्पष्ट कर दिया l 

यीशु में विश्वासियों के रूप में, हमें परमेश्वर के प्रेम को दूसरों के साथ साझा करने और “उसकी प्रशंसा घोषित करने” के लिए बुलाया गया है (1 पतरस 2:9) l यद्यपि कार्य हमारे लिए भी जीवित रह सकता है, हम आश्वस्त हो सकते हैं कि वह कार्य को बनाए रखेगा और उस कार्य को प्रचारित करने के पवित्र कार्य के लिए अन्य “समाप्त करने वालों” को बुलाना जारी रखेगा l