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भले कामों में धनी

एक धोबिन के रूप में सात दशकों की कड़ी मेहनत——हाथ से कपड़े साफ़ करना, सुखाना और प्रेस करना——के बाद, ओसियोला मैक्कार्टी अंततः छियासी वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होने के लिए तैयार थी l उन्होंने इतने वर्षों में ईमानदारी से अपनी अल्प कमाई बचाई थी, और अपने समुदाय को आश्चर्यचकित करते हुए, उन्होंने ज़रूरतमंद छात्रों के लिए छात्रवृत्ति कोष बनाने के लिए पास के विश्वविद्यालय को $150,000(लगभग 1.24 करोड़) का दान दिया l उनके निस्वार्थ उपहार से प्रेरित होकर, सैकड़ों लोगों ने उनकी निधि को तीन गुना करने के लिए पर्याप्त दान दिया l 

ओसियोला समझ गयी कि उसकी संपत्ति का असली मूल्य उसे अपने लाभ के लिए उपयोग करने में नहीं, बल्कि दूसरों को आशीर्वाद देने में है l प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को उत्साहित किया कि वह उन लोगों को आज्ञा दे जो इस वर्तमान संसार में धनी हैं, “भले कामों में धनी बने”(1 तीमुथियुस 6:18) l हममें से प्रत्येक को प्रबंधन के लिए धन दिया गया है, चाहे वह वित्तीय साधनों के रूप में हो या अन्य संसाधनों के रूप में l अपने संसाधनों पर भरोसा करने के बजाय, पौलुस हमें केवल परमेश्वर पर आशा रखने (पद.17) और “उदार और सहायता देने में तत्पर” (पद.18) बनकर स्वर्ग में धन इकठ्ठा करने की चेतावनी देता है l 

परमेश्वर की अर्थव्यवस्था में, रोक के रखना और उदार न होना केवल खालीपन की ओर ले जाता है l प्रेम से दूसरों को देना पूर्णता का मार्ग है l अधिक के लिए प्रयास करने के बजाय, हमारे पास जो कुछ है उसमें भक्ति और संतुष्टि दोनों रखना, महान लाभ है (पद.6) l ओसियोला की तरह अपने संसाधनों के प्रति उदार होना हमारे लिए कैसा रहेगा? आइये आज हम अच्छे कामों से समृद्ध होने का प्रयास करें क्योंकि परमेश्वर हमारी अगुआई करता है l 

 

उपासना स्थल

जब द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स/लोकसभा(House of Commons) पर बमबारी की गयी, तो प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने संसद से कहा कि उन्हें इसके मूल डिज़ाइन के अनुसार इसका पुनर्निर्माण करना चाहिए l यह छोटा होना चाहिए, इसलिए बहसें आमने-सामने रहेंगी l यह अर्धवृत्ताकार के बजाय आयताकार(oblong) होना चाहिए, जिससे राजनेताओं को “केंद्र के चारों ओर घूमने” की अनुमति मिल सके l इसने ब्रिटेन की पार्टी प्रणाली को संरक्षित रखा, जहाँ वामपंथी(Left) और दक्षिणपंथी(Right) पूरे कमरे में एक-दूसरे का सामना करते थे, जिससे पक्ष बदलने से पहले सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती थी l चर्चिल ने निष्कर्ष निकाला, “हम अपने इमारतों को आकार देते हैं और उसके बाद हमारी इमारतें हमें आकार देती हैं l”

परमेश्वर सहमत प्रतीत होते हैं l निर्गमन के आठ अध्याय (अध्याय 24-31) तम्बू के निर्माण सम्बंधित निर्देश देते हैं, और छह और (अध्याय 35-40) वर्णन करते हैं कि इस्राएल ने यह कैसे किया l परमेश्वर उनकी आराधना की परवाह करता था l जब लोग आँगन में दाखिल हुए, तो चमचमाते सोने और तम्बू के रंगीन पर्दों ने उन्हें चकाचौंध कर दिया (26:1, 31-37) l होमबली की वेदी (27:1-8) और जल पात्र (30:17-21) ने उन्हें उनकी क्षमा की कीमत की याद दिलाई l तम्बू में एक दीवट (25:31-40), रोटी की मेज़ (25:23-30), धूप की वेदी (30:1-6), और वाचा का संदूक (25:10-22) था l प्रत्येक वस्तु का बहुत महत्व था l 

परमेश्वर हमें हमारे उपासना स्थल के लिए विस्तृत निर्देश नहीं देते हैं जैसा उसने इस्राएल के साथ किया था, फिर भी हमारी उपासना कम महत्वपूर्ण नहीं है l हमारा असली अस्तित्व उसके रहने के लिए अलग रखा गया एक तम्बू/उपासना स्थल होना है l हम जो कुछ भी करें वह हमें याद दिलाए कि वह कौन है और क्या करता है l 

 

यीशु में विश्राम प्राप्त करना

अशांत आत्मा धन और सफलता से कभी संतुष्ट नहीं होती l एक मृत देशी संगीत आइकॉन(icon) इस सच्चाई की गवाही दे सकता है l उनके लगभग चालीस एल्बम शीर्ष दस चार्ट में और इतनी ही संख्या एक एकल में शामिल हुयी l लेकिन उन्होंने कई शादियाँ की और जेल में भी समय बिताया l अपनी सभी उपलब्धियों के बावजूद, उन्होंने एक बार शोक व्यक्त किया था : “मेरी आत्मा में एक बेचैनी है जिसे मैंने कभी नहीं जीता है, संगीत, विवाह या अर्थ से नहीं . . . यह अभी भी कुछ हद तक है l और यह मेरे मरने के दिन तक रहेगा l”  दुःख की बात है कि उनका जीवन समाप्त होने से पहले उन्हें अपनी आत्मा में शांति मिल सकती थी l 

यीशु उन सभी को, इस संगीतकार की तरह, जो पाप और उसके परिणामों में परिश्रम करने से थक गए हैं, व्यक्तिगत रूप से उसके पास आने के लिए आमंत्रित करता है : “मेरे पास आओ,” वह कहता है(मत्ती 11:28) l जब हम यीशु में उद्धार प्राप्त करते हैं, तो वह हमारा बोझ हटा देगा और “हमें विश्राम देगा l” एकमात्र ज़रूरत है उस पर विश्वास करना और फिर उससे सीखना कि उसके द्वारा प्रदान किये गए बहुतायत के जीवन को कैसे जीना है(यूहन्ना 10:10) l मसीह के शिष्यता का जूआ उठाने से हमें “[हमारी] आत्माओं को विश्राम” मिलता है (मत्ती 11:29) l 

जब हम यीशु के पास आते हैं, तो वह परमेश्वर के प्रति हमारी जवाबदेही को कम नहीं करता है l वह हमें अपने साथ जीने का एक नया और कम बोझिल तरीका प्रदान करके हमारी बेचैन आत्माओं को शांति देता है l वह हमें सच्चा विश्राम देता है l 

 

नया और निश्चित

तीन वर्ष तक, घरेलु ज़रूरतों के अलावा, सुज़न ने अपने लिए कुछ भी नहीं ख़रीदा l कोविड-19 महामारी ने मेरे मित्र की आय को प्रभावित किया और उसने एक साधारण जीवन शैली अपना ली l उसने बताया, “एक दिन, अपने अपार्टमेन्ट की सफाई करते समय, मैंने देखा कि मेरी चीज़ें कितनी जर्जर और फीकी दिख रही थीं l” “तभी मुझे नयी चीज़ों की कमी महसूस होने लगी—ताज़गी और उत्साह की अनुभूति l मेरा परिवेश थका हुआ और नीरस लग रहा था l मुझे ऐसा लगा जैसे आगे देखने के लिए कुछ भी नहीं है l” 

सुज़न को बाइबल की एक अविश्वसनीय पुस्तक में प्रोत्साहन मिला l यरूशलेम के बेबीलोन के कब्जे में आने के बाद यिर्मयाह द्वारा लिखित, विलापगीत नबी और लोगों द्वारा सहे गए दुःख  के खुले घाव का वर्णन करता है l हालाँकि, दुःख की निराशा के बीच, आशा के लिए निश्चित आधार है—परमेश्वर का प्रेम l यिर्मयाह ने लिखा, “उसकी दया अमर है l प्रति भोर वह नयी होती रहती है”(3:22-23) l 

सुज़न को स्मरण आया कि परमेश्वर का गहरा प्यार हर दिन नए सिरे से आता है l जब परिस्थितियाँ हमें यह महसूस कराती हैं कि अब आगे देखने के लिए कुछ नहीं है, तो हम उसकी विश्वासयोग्यता को स्मरण कर सकते हैं और आशा कर सकते हैं कि वह हमारे लिए कैसे प्रबंध/प्रदान करेगा l हम विश्वास के साथ परमेश्वर पर आशा रख सकते हैं, यह जानते हुए कि हमारी आशा कभी व्यर्थ नहीं जाती(पद.24-25) क्योंकि यह उसे दृढ़ प्रेम और करुणा में सुरक्षित है l 

सुज़न कहती है, “परमेश्वर का प्यार मेरे लिए हर दिन कुछ नया है l” “मैं आशा के साथ आगे देख सकती हूँ l”