मैं साफ और निश्चल पियेट झील में घने शैवाल में शान्ति से मछली पकड़ रहा था । मैंने एक मछली को घने वनस्पतियों से निकलकर कुछ खोजते देखा । उसने मेरे मछली पकड़ने की डोरी में लगे चारे की ओर बढ़ा, उसे देखा और शैवाल में लौट गया । उसे काँटा दिखायी देने तक यह बार-बार हुआ। तब अपना पूँछ हिलाकर लौट गया और नहीं लौटा ।

शैतान मछली पकड़ने के काँटे की तरह हमारे सामने परीक्षाएँ लाता है । वह स्वादिष्ट दिखता है । तृप्ति की प्रतिज्ञा करता है । किन्तु शैतान की शक्ति वहीं पर समाप्त हो जाती है । वह हमें काँटा पकड़ने को विवश नहीं कर सकता । उसकी शक्ति हमारी इच्छा के छोर पर रुक जाती है-हमारे निर्णय बिन्दू पर । पवित्र आत्मा की चेतावनी पर और हमारे नहीं कहने पर, शैतान कुछ भी नहीं कर सकता । याकूब के अनुसार वह भाग जाता है(4:7)।

विश्वासी होकर, हम प्रेरित पतरस के शब्दों में महा सुख पाते हैं, जिसने स्वयं महा परीक्षा का सामना किया(मत्ती 26:33-35)। जीवन के उत्तरार्ध में उसने लिखा, “सचेत हो, और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान खोज में रहता है …. विश्वास में दृढ़ होकर, …. उसका सामना करो” (1 पतरस 5:8-9)।

जिस तरह उस मछली ने काँटा नहीं पकड़ी हम परमेश्वर की सामर्थ में सफलतापूर्वक शैतान के आकर्षक युक्तियों का सामना कर सकते हैं!