“वह तुम्हारे लिए बिल्कुल ठीक है,” मेरे सहेली ने मुझसे कहा। वह एक व्यक्ति के विषय बोल रही थी जिससे वह अभी मिली थी । उसने उसके दयालु आँखें, उदार मुस्कराहट और नम्र हृदय का वर्णन किया । उससे मिलकर मैंने सहमति जतायी । आज वह मेरा पति है, और कोई आश्चर्य नहीं कि मैं उसे प्यार करती हूँ ।

श्रेष्ठगीत में वधु अपने प्रेमी का वर्णन करती है । उसका प्रेम दाखमधु से श्रेष्ठ और सुगन्धित द्रव्य से अधिक खुशबूदार है । उसका नाम संसार के किसी भी वस्तु से मधुर है । इसलिए वह बताती है कि कोई आश्चर्य नहीं कि वह उससे प्रेम करती है ।

किन्तु किसी सांसारिक व्यक्ति से कहीं महान कोई और है, कोई जिसका प्रेम दाखमधु से श्रेष्ठ है । उसका प्रेम प्रत्येक जरुरत को पूरा करता है । उसकी “महक” सभी इत्रों से श्रेष्ठ है क्योंकि उसने स्वयं को हमारे लिए दे दिया । उसका बलिदान परमेश्वर के समक्ष मीठी-सुगन्ध बन गयी(इफि.5:2) । आखिरकार, उसका नाम सब नामों से श्रेष्ठ है(फिलि.2:9) । कोई आश्चर्य नहीं हम उससे प्रेम करते हैं!

यीशु से प्रेम करना सुअवसर है । यह जीवन का सर्वश्रेष्ठ अनुभव है! क्या हम उसे बताने का समय निकालते हैं? क्या हम अपने उद्धारकर्ता की सुन्दरता शब्दों से बयां करते हैं? यदि हम अपने जीवनों से उसकी खूबसूरती दर्शाते हैं, दूसरे कहेंगे, “कोई आश्चर्य नहीं आप उससे प्रेम करते हैं!”