हमारी बूढ़ी कुतिया हमारे पलंग के निकट सुकड़कर पिछले 13 वर्षों से सोती है l

सामान्यतः वह न हिलती-डुलती है न ही आवाज़ करती है, किन्तु अभी हाल ही से वह बीच रात में धीरे से हमें अपने पंजे से जगाती है l हमने लगा वह बाहर जाना चाहती है l किन्तु हमने जाना वह हमारी उपस्थिति के विषय निश्चित होना चाहती है l अब वह लगभग बहरी और दृष्टिहीन हो गई है l हमारे हिलने-डुलने और हमारी सांस की आवाज़ उसे सुनायी नहीं देती l हमें छूकर निश्चित होना चाहती है l इसलिए मैं उसके सिर को सहलाकर उसे निश्चित करता हूँ कि मैं हूँ l फिर वह सो जाती है l

“मैं ….. तेरे सामने से किधर भागूं?” दाऊद ने परमेश्वर से पूछा (भजन 139:7) l दाऊद इसे अत्यधिक आराम के रूप में लिया l उसने ध्यान दिया, “यदि मैं …. समुद्र के पार जा सकूँ, तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, …. तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा” (पद. 9-12) l

अन्धकार में खो गए हैं? दुखित, भयभीत, कसूरवार, शंकित, निराश हैं? परमेश्वर के विषय आश्वसत् नहीं हैं? अन्धकार उसके लिए अँधियारा नहीं है l यद्यपि वह अदृश्य है, वह निकट है l उसने कहा है, “मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा” (इब्रा.13:5) l अपनी हाथ बाधाएँ l वह है l