1861 में, हेनरी वाड्सवर्थ लॉन्गफेलो की पत्नी, फ्रांसेस की त्रासदीपूर्ण मृत्यु हो गई l उसने लिखा, “उसके बिना पहला क्रिसमस अकथनीय रूप से दुखद था l अगला वर्ष भी बदतर था l बच्चे कहते हैं, ‘क्रिसमस मुबारक हो, किन्तु अब यह मेरे लिए नहीं है l’ ”
1863 में, अमरीकी गृह युद्ध में, लॉन्गफेलो का पुत्र फ़ौज में गंभीर रूप से घायल हो गया l उसी वर्ष, क्रिसमस के दिन जब चर्च के घंटे एक और दुःखद क्रिसमस की घोषणा कर रहे थे, लॉन्गफेलो ने लिखना आरंभ किया, “आई हर्ड द बेल्स ऑफ क्रिसमस डे l” कविता का आरंभ सुखद था, किन्तु तत्पश्चात् दुखद l मध्य चौथे अन्तरे की प्रबल कल्पना क्रिसमस कैरल के अनुकूल नहीं लगती l पांचवे और छठवें अंतरे तक, लॉन्गफेलो का अकेलापन लगभग पूरा होता है l “तबाही का मंज़र था,” उसने लिखा l कवि तक़रीबन आशाहीन : “इस पृथ्वी पर शांति नहीं है,” मैंने कहा l
किन्तु तब, उस सूने क्रिसमस दिन, लॉन्गफेलो ने आशा के अदम्य आवाज़ सुनकर 7 वाँ अन्तरा लिख दिया l
तब घंटियों की आवाज़ और तेज हुई: “परमेश्वर न मृतक न सोया हुआ! असत्य पराजित, सत्य प्रबल, पृथ्वी पर शांति, और मनुष्यों में सद्भावना !”
युद्ध और उसकी व्यक्तिगत् त्रासदी जारी रही, किन्तु क्रिसमस न रुकी l उद्धारकर्ता जन्मा है! उसकी प्रतिज्ञा है, “मैं सब कुछ नया कर देता हूँ!” (प्रका.21:5) l