हॉस्पिटल के आकस्मिक वार्ड में अपने एक मित्र के पास बैठे हुए, मैं दूसरे मरीजों की दुःख भरी आवाजों से द्रवित हुआ l उन सब के लिए प्रार्थना करते समय, मैंने पहचाना हमारा जीवन इस पृथ्वी पर कितना क्षणिक है l तब जिम रीव्ज़ का एक देसी गीत याद आया कि यह संसार हमारा नहीं है – हम “केवल यात्री हैं l”

हमारा संसार थकन, दुःख, भूख, ऋण,निर्धनता, बीमारी, और मृत्यु से भरी है l इसलिए कि हमें इस संसार से गुज़ारना है, यीशु का निमंत्रण सुखद और सामयिक है : “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा” (मत्ती 11:28) l

शायद ही कोई अंतिम संस्कार होगा जहाँ मैंने यूहन्ना के “नए आकाश और नयी पृथ्वी” के दर्शन को उद्धृत होते नहीं सुना होगा (प्रका. 21:1-5) और यह अंतिम संस्कार के लिए बिल्कुल व्यवहारिक है l

किन्तु मेरा मानना है कि यह परिच्छेद मृतक से अधिक जीवितों के लिए है l यीशु में साथ विश्राम करने की उसकी बुलाहट पर चलना हमारे जीवन के लिए है l तब ही हम प्रकाशितवाक्य की प्रतिज्ञा के भागी होंगे l परमेश्वर हमारे बीच निवास करेगा (पद.3) l हमारे आंसू पोंछ देगा (पद. 4) l “मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी” (पद. 4) l

यीशु का निमंत्रण स्वीकार करके उसमें विश्राम करें!