वर्ष 1975 के आरंभ में मेरे साथ कुछ महत्वपूर्ण हुआ l मैं अपने मित्र, फ्रांसिस को खोजकर उसे बताने चला, जिसे मैं अपनी कई व्यक्तिगत् बातें बताता था l मैं उससे उसके घर पर मिलकर उसे रोका l उसने जान लिया कि मैं कुछ विशेष कहनेवाला हूँ l “क्या बात है,” उसने पुछा l मैंने उससे यूँही कह दिया, “कल मैंने अपना जीवन यीशु को दे दिया!”

फ्रांसिस मुझे देखकर, लम्बी सांस लेकर बोला, “मेरी भी बहुत समय से यही इच्छा है l” मैंने उसे अपना वाकया बताया कि कल किसी से सुसमाचार समझकर मैंने यीशु को अपने जीवन में बुलाया l मैं आज भी उसकी आँखों में आंसू याद करता हूँ जब उसने यीशु की क्षमा मांगने हेतु प्रार्थना की l अब जल्दी नहीं थी, हम दोनों ने देर तक मसीह के साथ अपने नए सम्बन्ध की बातें की l

एक व्यक्ति में से दुष्टात्मा निकालने के बाद, यीशु ने उससे कहा, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किये हैं” (मरकुस 5:19) l उस व्यक्ति को सामर्थी उपदेश नहीं; केवल अपनी कहानी बतानी थी l

हमारे परिवर्तन की कहानी जो भी हो, हम उस व्यक्ति की तरह कर सकते हैं : “वह जाकर … प्रचार करने लगा कि यीशु ने मेरे लिया कैसे बड़े काम किये … [हैं] l”