अपनी पुस्तक स्पिरिचुअल लीडरशिप  में जे. ऑस्वाल्ड सैंडर्स युक्ति  और कूटनीति  के गुण एवं महत्त्व खोजता है l सैंडर्स कहते हैं, “इन दोनों शब्दों के मेल से अपकार और सिद्धांत में समझौता किये बगैर दो विपरीत विचारों के सामंजस्य के कौशल का विचार उभरकर आता है l”

पौलुस रोम में कैद के दौरान, उनेसिमुस नामक भगोड़े दास का आत्मिक सलाहकार और निकट मित्र बन गया, जिसका मालिक फिलेमोन था l पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया का अगुआ, फिलेमोन को पत्र लिखकर उनेसिमुस को मसीह में भाई मानकर स्वीकार करने का आग्रह करते समय, यक्ति और कूटनीति का उदहारण प्रस्तुत किया l “इसलिए यद्यपि मुझे मसीह में बड़ा साहस है कि जो बात ठीक है, उसकी आज्ञा तुझे दूँ l तौभी … भला जान पड़ा कि प्रेम से विनती करूँ … [उनेसिमुस] मेरा तो विशेष प्रिय है ही, पर अब शरीर में और प्रभु में भी, तेरा भी विशेष प्रिय हो” (फिले. 8-9, 16) l

आरंभिक कलीसिया का आदरणीय अगुआ, पौलुस यीशु के अनुयायियों को अक्सर स्पष्ट आदेश देता था l इस परिस्थिति में, यद्यपि, उसने फिलेमोन से समानता, मित्रता, और प्रेम के आधार पर आग्रह किया l “मैं ने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा, कि तेरी यह कृपा दबाव से नहीं पर आनंद से हो” (पद.14) l

हम अपने सभी संबंधों में, प्रेम के भाव में तालमेल और सिद्धांत को बनाए रखने का प्रयास करें l