1950 में युद्ध छिड़ने पर, 15 वर्षीय किम चीन-क्युंग ने अपने देश की रक्षा के लिए दक्षिण कोरियाई सेना में भर्ती हुआ l जल्द ही वह समझ गया कि वह युद्ध की विभीषिका के लिए तैयार नहीं था l अपने चारों ओर अपने मित्रों को मरते देखकर उसने परमेश्वर से आग्रह किया कि जीवन मिलने पर वह अपने शत्रुओं से प्रेम करना सीखेगा l

65 वर्ष बाद, डॉ. किम ने प्रार्थना का उत्तर देखा l दशकों, अनाथों की सेवा और उत्तर कोरियाई और चीनी युवकों की शिक्षा में सहयोग द्वारा उन्होंने अनेक शत्रुओं को मित्र बनाया था l आज वे राजनैतिक उपनाम से दूर रहकर, यीशु में विश्वास के होकर खुद को प्रेम करनेवाला  पुकारते हैं l

योना नबी ने एक भिन्न विरासत छोड़ा l एक महामच्छ के पेट से नाटकीय बचाव पश्चात भी उसका हृदय नहीं बदला l यद्यपि आखिर में वह परमेश्वर का आज्ञाकारी बना, उसने कहा कि परमेश्वर द्वारा उसके शत्रु पर दया करते देखने की बजाए उसके लिए मरना ही अच्छा है (योना 4:1-2, 8) l

योना निनवे के लोगों से प्रेम करना सीखा या नहीं, हम केवल अनुमान लगा सकते हैं l किन्तु हम अपने विषय सोचें l क्या हम उनके प्रति योना का आचरण अपनाएंगे जिनसे हम डरते हैं और घृणा करते हैं? या अपने शत्रु से प्रेम करने की योग्यता मांगेंगे जैसे परमेश्वर ने  हम पर करुणा की है l