Month: दिसम्बर 2016

कब्र 7 का धन

मेक्सिको के पुरातत्ववेत्ता अंटोनियो कासो ने 1932 में, मोंटे ऐल्बान, ओक्साका में कब्र 7 खोजा l उसने स्पेनी कब्जे से पूर्व के जवाहिरात “मोंटे अल्बान का धन” और चार सौ से अधिक शिल्पकृतियाँ खोजी l मेक्सिको के पुरातत्व खोज में यह महत्वपूर्ण है l कोई भी कासो के हाथों में शुद्ध सजावटी प्याला देखकर उसकी उत्तेजना की कल्पना ही कर सकता है l

शताब्दियों पूर्व, भजनकार ने सोना या स्फटिक पत्थर से अधिक मूल्यवान धन के विषय लिखा, “जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ” (भजन 119:162) l भजन 119 में, लेखक हमारे जीवनों के लिए परमेश्वर के निर्देश और प्रतिज्ञाओं का महत्त्व जानकर उनकी तुलना बड़े धन से किया जो एक विजेता के कब्जे में आता है l

कासो कब्र 7 की खोज से याद किया जाता है l हम ओक्साका में संग्रहालय में इसका आनंद ले सकते हैं l जबकि, प्रतिदिन हम वचन में जाकर प्रतिज्ञाओं के हीरे, आशा के माणिक, और बुद्धिमत्ता के पन्ना खोज सकते हैं l किन्तु पुस्तक द्वारा इंगित सबसे महान व्यक्तित्व स्वयं यीशु है l आखिरकार, वह ही पुस्तक का लेखक है l

हम मेहनत से भरोसा करें कि यह धन हमें समृद्ध बनाएगा l जैसे भजनकार कहता है, “मैंने तेरी चितौनियों को ... अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण हैं” (पद. 111) l

सुननेवाले और करनेवाले

मेरे पासवान, पति का फ़ोन बजा l हमारे चर्च की एक प्रार्थना योद्धा, अकेले रहने वाली 70 वर्ष की एक महिला को हॉस्पिटल ले जाया गया l वह अत्यधिक बीमार होने के कारण खाना पीना छोड़ दी थी और देखने और चलने में भी असमर्थ थी l इस बात से अज्ञात कि उसके साथ क्या होगा हमने उसके लिए परमेश्वर से सहायता और दया मांगी l हम उसके हालचाल के विषय चिंतित थे l चर्च क्रियाशीलता से 24 घंटे उसके सेवा में लग गई और उसके साथ अन्य मरीजों, आगंतुकों और चिकत्सीय कर्मचारियों के साथ मसीही प्रेम दिखाया l

यहूदी मसीहियों को लिखते हुए याकूब ने कलीसिया को ज़रुरतमंदों की सेवा करने हेतु उत्साहित किया l याकूब चाहता था कि विश्वासी परमेश्वर के वचन को सुनने से अधिक अपने विश्वास को कार्य में बदलें (1:22-25) l अनाथों और विधवाओं की ज़रूरतें दर्शाते हुए (पद.27), उसने एक कमज़ोर समूह को नामित किया, क्योंकि प्राचीन संसार में उनकी सेवा परिवार की जिम्मेदारी थी l

हमारी कलीसिया और समाज में जोखिम में पड़े लोगों के प्रति हमारा प्रतिउत्तर क्या है? क्या हम विधवाओं और अनाथों की सेवा को अपने विश्वास के अभ्यास का महत्वपूर्ण भाग मानते हैं? परमेश्वर हर जगह लोगों की सेवा के प्रति हमारी आँखें खोले l

शांत संवाद

क्या कभी आप खुद से बात करते हैं? कभी-कभी किसी योजना पर कार्य करते हुए-अक्सर कार के अन्दर-मैं मरम्मत के लिए जोर-जोर से बोलकर, सर्वोत्तम विकल्प ढूंढ़ता हूँ l किसी का मुझे “संवाद” करते हुए देखना लज्जाजनक हो सकती है-यद्यपि हममें से अनेक प्रतिदिन खुद से बातचीत करते हैं l

भजनकार अक्सर भजनों में खुद से संवाद करते थे l भजन 116 का लेखक अलग  नहीं है l पद 7 में उसने लिखा, “हे मेरे प्राण, तू अपने निवासस्थल में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है l” अतीत में परमेश्वर की भलाई और विश्वासयोग्यता खुद को याद दिलाना वर्तमान में उसके लिए व्यावहारिक सुख और सहायता है l हम अक्सर इस तरह के “संवाद” भजनों में देखते हैं l भजन 103:1 में दाऊद खुद से बोलता है, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कर; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे l” और भजन 62:5 में वह दृढ़तापूर्वक कहता है, “हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है l”

खुद को परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और उसमें अपनी आशा याद करना भला है l हम भजनकार के उदहारण का अनुसरण करके खुद के प्रति परमेश्वर की अनेक भलाइयों को नाम-ब-नाम याद कर सकते हैं l ऐसा करके हम उत्साहित होते हैं l अतीत में विश्वासयोग्य रहनेवाला परमेश्वर भविष्य में भी अपना प्रेम दिखाता रहेगा l

400 मील से दृष्टि

अंतरिक्ष यान के अंतरिक्ष यात्री, चार्ल्स फ्रैंक बोल्डन जूनियर कहते हैं, “पहली ही बार अंतरिक्ष में जाने पर पृथ्वी के विषय मेरा दृष्टिकोण नाटकीय ढँग से बदल गया l पृथ्वी से 400 मील ऊपर से, उसको सब कुछ शांतिमय और खुबसूरत दिखाई दिया l फिर भी बोल्डन ने याद किया कि मध्य पूर्व के ऊपर से गुज़रते समय, वह वहाँ पर जारी द्वन्द पर विचारते हुए “वास्तविकता में पहुँच” गया l फिल्म निर्माता जैरेड लेटो से एक साक्षात्कार में, बोल्डन ने उस क्षण पृथ्वी को उस अवस्था में देखा जैसा उसे होना चाहिए-और तब उसे बेहतर बनाने की चुनौती महसूस की l

बैतलहम में यीशु के जन्म के समय, संसार परमेश्वर की इच्छानुसार नहीं था l इस नैतिक और आत्मिक अंधकार में यीशु सबके लिए जीवन और ज्योति लेकर आया (यूहन्ना 1:4) l यद्यपि संसार ने उसे नहीं पहचाना, “जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया” (पद.12) l

जीवन के अपने मूल अवस्था में नहीं होने के कारण हम दुखित होते हैं-जब परिवार टूटते हैं, बच्चे भूखे होते हैं, और संसार युद्ध में संलग्न है l किन्तु परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि कोई भी मसीह में विश्वास करके एक नयी दिशा में बढ़ सकता है l

क्रिसमस का मौसम हमें स्मरण कराता है कि उद्धारकर्ता, यीशु, उसको ग्रहण करने और उसका अनुसरण करनेवाले को जीवन और ज्योति देता है l