हवा के बगैर संसार में, झील शांत रहते l पेड़ों के गिरते पत्ते सड़कों पर नहीं फैलते l किन्तु शांत हवा में, क्या कोई पेड़ गिरता? एरिज़ोना के मरुस्थल में बायोस्फीयर 2 नामक एक हवा रहित कांच के तीन एकड़ बड़े बुलबुले में ऐसा ही हुआ l उसमें लगे पेड़ स्वाभाविक से अधिक तेज बढ़कर अचानक अपने ही बोझ से गिर गए l प्रोजेक्ट शोधकर्ताओं के अनुसार इन पेड़ों को मजबूती हेतु हवा का दबाव चाहिए था l

यीशु ने अपने शिष्यों का विश्वास मजबूत करने हेतु उनको तूफ़ान का अनुभव करने दिया (मरकुस 4:36-41) l एक रात परिचित झील में, अचानक आया तूफ़ान अनुभवी मछुआरों पर भारी पड़ा l आंधी और पानी से नाव भारी संकट में थी, जबकि थकित यीशु पिछले भाग में सो रहा था l उन्होंने घबराकर उसे जगाया l क्या उनके गुरु को उनकी चिंता नहीं थी? वह क्या सोच रहा था?  तब उन्होंने जानना चाहा l यीशु ने आंधी और पानी को शांत करके  मित्रों से पुछा कि उनको अब तक विश्वास क्यों नहीं था l

यदि आंधी चली नहीं होती, शिष्य कभी नहीं पूछे होते, “यह कौन है कि आंधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?” (मरकुस 4:41) l

आज, जीवन का एक सुरक्षित बुलबुले में होना अच्छा लग सकता है l किन्तु परिस्थिति की आंधी की चीख में उसके “शांत रह” का खुद अनुभव किये बगैर हमारा विश्वास कितना मजबूत होगा?