कॉलेज बास्केटबॉल खेलते समय, मैंने हरेक खेल के मौसम में अभिज्ञ निर्णय किया कि मैं जिम में जाकर अपने को पूरी तरह कोच के अधीन करूँगा-कोच की आज्ञानुसार सब करूँगा l
मेरे टीम के लिए यह बोलना लाभकारी नहीं होता, “हे कोच! मैं यहाँ हूँ l मैं बास्केट में बाल डालना चाहता हूँ और बाल को आगे ले जाना चाहता हूँ, किन्तु मुझसे बाल लेकर दौड़ने, बचाव करने और पसीना बहाने को न कहें !”
टीम की भलाई के लिए प्रत्येक सफल खिलाड़ी को कोच की बातों पर पर्याप्त् भरोसा करना होगा l
मसीह में, हमें परमेश्वर का “जीवित बलिदान” बनना होगा (रोमियों 12:1) l हम अपने उद्धारकर्ता और प्रभु से बोलते हैं : “मैं आप पर भरोसा करता हूँ l जो भी आप मुझे आज्ञा देंगे, मैं करूँगा l” तब वह हमें हमारे मस्तिष्क को उसकी इच्छित वस्तुओं पर केन्द्रित होने के लिए “रूपांतरित” करता है l
यह जानना सहायक होगा कि परमेश्वर वही हमसे करवाता है जिसके लिए सज्जित किया है l जैसे पौलुस याद दिलाता है, “उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं” (पद.6) l
जानते हुए कि हम अपने जीवनों में परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, हम अपना जीवन उस पर निछावर कर सकते हैं, यह जानकार कि उसने हमें बनाया और उसके लिए समस्त प्रयास में हमारी मदद करता हैं l
परमेश्वर के समक्ष खुद को निछावर करने में कोई जोखिम नहीं है l