बिना सामान के दौरे पर जाने की कल्पना करें l न बुनियादी ज़रूरतें न वस्त्र, न पैसे न क्रेडिट कार्ड l क्या यह बुद्धिहीनता और भयानक नहीं?

किन्तु यीशु ने अपने बारह शिष्यों को बिल्कुल इसी तरह प्रचार और चंगाई के उनके  प्रथम मिशन पर भेजा l उसने उन्हें आज्ञा दी, “मार्ग के लिए लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न बटुए में पैसे, परन्तु जूतियाँ पहिनो और दो दो कुरते न पहिनो” (मरकुस 6:8-9) l

फिर भी, बाद में, यीशु अपने जाने के बाद के कार्य हेतु उन्हें तैयार करते समय, उनसे कहा, “… जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले और वैसे ही झोली भी, और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले” (लूका 22:36) l

तो, यहाँ पर यह परमेश्वर के प्रावधान पर निर्भरता  है l

यीशु पिछले दौरे का सन्दर्भ देकर अपने शिष्यों से पुछा, “जब मैं ने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुए थी?” (पद.35) l  उत्तर मिला, “किसी वस्तु की नहीं” (पद.35) l शिष्यों के पास परमेश्वर की बुलाहट अनुसार सब प्रावधान था l उसने उनको पूर्ण समर्थ किया (मरकुस 6:7) l

क्या हम परमेश्वर पर आवश्यकता पूर्ति हेतु भरोसा करते हैं? क्या हम व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेकर योजना बनाते हैं? हम उसके कार्य हेतु उसके प्रावधान पर विश्वास करें l