आज मैंने अपने खलिहान में एकलौता फूल देखा-एक छोटा बैगनी फूल “रेतीले स्थान में अपना मिठास बिखेरते हुए” कवि थॉमस ग्रे की खूबसूरत पंक्तियाँ हैं l निश्चित तौर पर इस ख़ास फूल को पहले किसी ने नहीं देखा था, और शायद आगे भी कभी नहीं देखेगा l यह ख़ूबसूरती ऐसी जगह क्यों? मैं विचारा l
प्रकृति बर्बाद नहीं होती l प्रतिदिन यह अपने सृष्टिकर्ता की सच्चाई, भलाई, और सुन्दरता दर्शाती है l प्रतिदिन प्रकृति परमेश्वर की महिमा को नए और निर्मल तरीके से प्रगट करती है l क्या मैं उसको उस खूबसूरती में देखता हूँ, अथवा उस पर सरसरी नज़र डालकर उसको नज़रन्दाज़ कर देता हूँ l
समस्त प्रकृति सृष्टिकर्ता की खूबसूरती फैलाती है l हमारा प्रतिउत्तर उपासना, प्रशंसा, और धन्यवाद हो सकता है-मक्के के फूल की चमक, सूर्योदय के प्रताप, और एक खास वृक्ष की बनावट के लिए l
सी.एस.ल्युईस गर्मी के एक दिन जंगल में टहलने का वर्णन करते हैं l उसने अभी-अभी अपने मित्र को परमेश्वर के प्रति धन्यवादी होना सिखाया था l उसके पैदल साथी ने निकट की एक छोटी नदी में जाकर झरने में अपना चेहरा और हाथ धोकर पुछा, “क्यों न इसी से आरंभ की जाए?” ल्युईस के अनुसार उसने उस क्षण एक महान सिद्धांत सिखा : “जहाँ आप हैं वहीं से आरम्भ करें l”
एक टपकती जलधारा, वृक्षों के मध्य बहती हवा, एक छोटी चिड़िया, एक छोटा फूल l क्यों नहीं हम इनसे धन्यवाद आरंभ करें?
सभी सुन्दरता के पीछे [परमेश्वर] ही सुन्दरता है l स्टीव डिविट