कभी-कभी हम दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के वाक्य पूरी करते हैं l हम तीस वर्षों के वैवाहिक जीवन में एक दूसरे की सोच और बात करने से बहुत अधिक परिचित हैं l हमें किसी वाक्य को पूरा करने की ज़रूरत नहीं; केवल एक शब्द अथवा एक झलक किसी विचार को ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है l

इसमें सुख है-एक जोड़ी पुरानी जूती की तरह जिसे आप पहनते हैं क्योंकि वे अच्छे से पैरों में आ जाती है l कभी-कभी हम एक दूसरे को प्रेमपूर्वक “मेरी पुरानी जूती” भी पुकारते हैं-ऐसा अभिनन्दन जिसे आप समझ नहीं पाएंगे यदि आप हमें अच्छी तरह जानते नहीं हैं l हमारे वर्षों के सम्बन्ध ने अभिव्यक्तियों के साथ अपनी एक भाषा बना ली है, जो दशकों  के प्रेम और भरोसा का परिणाम है l

यह जानना सुखकर है कि परमेश्वर हमें गहरी अंतरंगता से प्रेम करता है l दाऊद ने लिखा, “हे यहोवा, मेरे मुँह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो” (भजन 139:4) l यीशु के साथ एक शांत बातचीत की कल्पना करें जब आप उसे अपने हृदय की गहरी बातें बता रहें हों l बोलने में कठिनाई होने पर, वह परिचित होने की मुस्कराहट के साथ आपकी बाते पूरी करता है l कितना भला है कि परमेश्वर के साथ बातचीत में सही शब्दों की ज़रूरत नहीं होती! वह हमें समझने के लिए हमें पर्याप्त प्रेम करता और जानता है l