लन्दन के भीड़ भरी एक स्थानीय ट्रेन में, सुबह के एक यात्री ने उसके रास्ते में आनेवाले एक सहयात्री का अपमान किया l यह एक ऐसा खेदजनक, और विचारहीन क्षण होता है जिसका आमतौर पर हल नहीं होता l किन्तु उसी दिन बाद में, अनपेक्षित हुआ l एक व्यवसायिक मेनेजर ने अपने सोशल मीडिया मित्रों को जल्दी से एक सन्देश भेजा, “बताओ कौन नौकरी के साक्षात्कार के लिए आया है l” जब उसका स्पष्टीकरण इन्टरनेट पर आया, संसार के लोग चौंककर मुस्कराए l कल्पना करें कि नौकरी साक्षात्कार में पहुंचकर आपका अभिवादन करनेवाला वही है जिसने सुबह आपको धक्का देकर आपका अनादर किया था l
शाऊल का सामना अनपेक्षित व्यक्ति से होता है l पंथ नाम के एक समूह के विरुद्ध प्रबल होते समय (प्रेरितों 9:1-2), एक तेज रोशनी ने उसको रोक दिया l तब एक आवाज़ आयी, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” (पद.4) l शाऊल ने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” बोलनेवाले ने उत्तर दिया, “मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है” (26:15) l
वर्षों पूर्व यीशु ने कहा था कि भूखों, प्यासों, अनजान, और बंदियों के साथ हमारा व्यवहार उसके साथ हमारे सम्बन्ध को प्रभावित करता है (मत्ती 25:35-36) l कौन इसकी कल्पना कर सकता है कि किसी के हमें अपमानित करने अथवा जब हम दूसरों की सहायता करते अथवा उसे चोट पहुंचाते हैं, हमसे प्रेम करनेवाला इसे व्यक्तिगत लेता है?
जब हम एक दूसरे की सहायता करते अथवा चोट पहुंचाते हैं, यीशु इसे व्यक्तिगत मानता है l