हाल ही के एक सप्ताह में, मुझे इ-मेल में अनेक निमंत्रण मिले l उनमें सेवा निवृति पर “मुफ्त” सेमिनार, रियल एस्टेट, और जीवन बीमा को मैंने तुरंत अलग कर दिया l किन्तु एक लम्बे समय के मित्र के सम्मान में सभा के निमंत्रण ने मुझे तुरंत उत्तर देने को प्रेरित किया, “हाँ! मैं स्वीकार करता हूँ,” निमंत्रण + इच्छा = स्वीकृति l
यशायाह 55:1 बाइबिल में एक महानतम निमंत्रण है l परमेश्वर ने कठिन परिस्थितियों में पड़े अपने लोगों से कहा, “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपये और बिना दाम ही आकर ले लो l” यह परमेश्वर के आंतरिक पोषण, गहरी आत्मिक सनतुष्टि, और जीवन का अद्भुत पेशकश है (पद.2-3) l
यीशु का निमंत्रण बाइबिल के अंतिम अध्याय में दोहराया गया है : आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, ‘आ!’ और सुननेवाला भी कहे, ‘आ!’ जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले” (प्रका. 22:17) l
अक्सर हमारी सोच में अनंत जीवन का आरंभ हमारे मरने के बाद होता है l वास्तव में, हमारे द्वारा यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता ग्रहण करने पर होता है l
परमेश्वर का उसमें अनंत जीवन खोजने का निमंत्रण सभी निमंत्रणों में सबसे महान है! निमंत्रण + इच्छा = स्वीकृति l
यीशु का अनुसरण करने का उसका निमंत्रण स्वीकार करने पर,
हमारा सम्पूर्ण दिशा बदल जाता है l