मेरे चर्च में, वेदी के सामने एक बड़ा क्रूस है l यह मूल क्रूस का प्रतिक है जहाँ यीशु मरा था-हमारे पाप और उसकी पवित्रता का मिलन स्थान l परमेश्वर ने वहाँ पर हमारे मन, वचन और कर्म द्वारा किये गए प्रत्येक पाप के लिए अपने निर्दोष पुत्र को मृत्यु सहने दिया l क्रूस पर, यीशु ने उस कार्य को पूरा किया जो हमें मृत्यु से, जिसके लायक हम थे, बचा सकता था (रोमि.6:23) l

यीशु ने जो हमारे लिए सहा, क्रूस का दृश्य हमें उस पर विचार करने को विवश करता है l उसे कोड़े मारे गए और उस पर थूका गया l सिपाहियों ने उसके सिर पर मारा और घुटने टेक कर उसकी दिखावटी आराधना की l उससे उसकी मृत्यु के स्थान तक अपना क्रूस उठाने को कहा, किन्तु वह कोड़ों की मार से बहुत दुर्बल था l गुलगुता पर, उन्होंने उसे क्रूस पर लटके रहने के लिए उसके हाथों में कीलें ठोकर क्रूस को खड़ा कर दिया l क्रूस पर उसके घावों ने उसके देह का वजन सहा l छः घंटे बाद, यीशु ने अंतिम सांस ली (मरकुस 15:37) l एक सेनानायक यीशु की मृत्यु देखकर बोल पड़ा, “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था!” (पद.39) l 

अगली बार जब आप क्रूस का चिन्ह देखें, विचार करें कि आपके लिए उसका अर्थ क्या है l परमेश्वर पुत्र दुःख उठाकर वहाँ मरा और उसके बाद अनंत जीवन संभव बनाने के लिए पुनरुथित हुआ l