“घर से अच्छी जगह कोई नहीं l” यह वाक्यांश एक विश्राम स्थान, उसमें रहने, और अपने घर के लिए हमारे अन्दर की गहरी चाह दर्शाता है l यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज खाने के बाद, अपनी भावी मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय बोलते समय, इस बुनियादी ज़रूरत की इच्छा को संबोधित किया l उसकी प्रतिज्ञा थी कि यद्यपि वह चला जाएगा, वह फिर उनके लिए आएगा l और वह उनके लिए जगह तैयार करेगा l एक निवास स्थान l एक घर l

उसने यह स्थान परमेश्वर की व्यवस्था की अनिवार्यता को पूरा करते हुए निर्दोष मनुष्य होकर क्रूस पर अपनी जान देकर उनके और हमारे लिए तैयार किया l उसने शिष्यों को आश्वस्त किया कि यदि वह इस घर को बनाने हेतु कष्ट उठाता है, तो वह अवश्य ही उनके लिए लौटेगा और उनको अकेला नहीं छोड़ेगा l उन्हें अपने जीवन के विषय डरने और चिंता करने की ज़रूरत नहीं, चाहे पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में l

हमारा विश्वास है कि यीशु हमारे लिए घर बना रहा है; कि वह हमारे अन्दर अपना घर बनाता है (देखें यूहन्ना 14:23), और वह हमसे पहले हमारा स्वर्गिक घर बनाने गया है, हम उसके शब्दों से शांति और निश्चयता पाते हैं l हम किसी तरह के भौतिक घर में रहते हों, हम यीशु के हैं, उसका प्रेम हमें थामें है और हम उसकी शांति से घिरे हैं l उसके साथ, घर से अच्छी जगह कोई नहीं l