नियमित आने-जाने वालों ने एक तनावपूर्ण क्षण में एक मार्मिक निर्णय के साक्षी बने l एक 70 वर्षीय वृद्ध महिला ने हाथ बढ़ाकर कोमलता से एक युवक को स्पर्श किया जिसकी तेज़ आवाज़ और अशांत करनेवाले शब्द दूसरे यात्रियों के लिए चौंकानेवाले थे l महिला की दयालुता ने उस व्यक्ति को शांत कर दिया जो ट्रेन के फर्श पर रोते हुए बैठ गया l उसने कहा, “दादी, धन्यवाद,” और उठकर चला गया l महिला ने बाद में बताया कि वह भयभीत थी l किन्तु वह बोली, “मैं एक माँ हूँ और उसे किसी के स्पर्श की ज़रूरत थी l” जबकि बेहतर निर्णय उसे दूरी बनाए रखने का कारण देती, उसने प्रेम का जोखिम उठाया l
यीशु इस तरह की करुणा समझता था l उसने हतोत्साहित देखनेवालों का पक्ष नहीं लिया जब एक परेशान, कुष्ठ लोगी चंगा होने उसके निकट आया l वह अन्य धार्मिक अगुवों की तरह असहाय नहीं था-लोग जो उस कुष्ठ रोगी को गाँव में कुष्ठ रोग लाने के लिए केवल उसकी निंदा करते (लेव्य. 13:45-46) l इसके बदले, यीशु ने उसे छूकर चंगा किया जिसे शायद वर्षों से कोई नहीं छूआ था l
धन्यवाद हो, यीशु उस व्यक्ति के लिए और हमारे लिए, वह देने आया जो कोई भी व्यवस्था नहीं दे सकता था-उसके हाथ और हृदय का स्पर्श l
कोई भी इतना परेशान अथवा अशुद्ध नहीं जिसे यीशु न छू सके l