मैं एक माँ को याद करता हूँ जिसके पास पांच मिनट का नियम था l प्रतिदिन बच्चों को स्कूल जाने से पांच मिनट पूर्व प्रार्थना के लिए इकट्ठा होना होता था l
बच्चे माँ के चारों ओर इकठ्ठा होते और वह प्रत्येक का नाम लेकर उनके दिन पर प्रभु का आशीष मांगती l फिर उसके प्यार करने के बाद वे चले जाते l पड़ोस के बच्चे भी इसमें शामिल हो जाते थे l कई वर्षों बाद एक बच्चे ने सीखी गई दैनिक प्रार्थना की विशेषता का अनुभव बताया l
भजन 102 का लेखक प्रार्थना का महत्त्व जानता था l इस भजन को कहते हैं, “दीन जन की उस समय की प्रार्थना जब वह दुःख का मारा अपने शोक की बातें यहोवा के सामने खोलकर कहता हो l” उसने पुकारा, “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; … जिस समय मैं पुकारूँ, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले” (पद. 1-2) l परमेश्वर “ऊँचे … स्थान से दृष्टि करके … स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा” (पद. 19) l
परमेश्वर आपकी चिंता करता है और आपकी सुनना चाहता है l चाहे आप पांच मिनट का नियम मानकर अपने दिन पर आशीष मांगे, या परेशानी के समय उसे अधिक समय पुकारते हैं, प्रभु से रोज़ प्रार्थना करें l आपका उदाहारण आपके परिवार और पड़ोसी पर गहरा प्रभाव डालेगा l
हमें परमेश्वर की ज़रूरत है, प्रार्थना इसकी स्वीकृति हैं l