कवि सैमवेल फ़ॉस ने लिखा, “मुझे सड़क किनारे रहकर मनुष्य का मित्र बनने दें” (“द हाउस बाई द साइड ऑफ़ द रोड”) l मैं ऐसा ही रहना चाहता हूँ-लोगों का मित्र l मैं राह के किनारे थकित यात्रियों का इंतज़ार करना चाहता हूँ l मैं दूसरों द्वारा चोटिन एवं अपकृत लोगों को तलाशना चाहता हूँ, जो घायल और निर्भ्रांत हृदय का बोझ उठाते हैं l उनको उत्साहवर्धक शब्द द्वारा पोषित और तरोताजा करके उनको उनके मार्ग पर आगे भेजने के लिए l मैं शायद उनको या उनकी समस्याओं को “ठीक” नहीं कर पाऊँगा, किन्तु उन तक आशीष पहुंचा सकता हूँ l

शालेम का राजा और याजक, मलिकिसिदक, अब्राम को आशीषित किया जब वह युद्ध से लौट रहा था (उत्प. 14) l एक “आशीष” एक छींक के प्रति विनम्र प्रतिउत्तर से अधिक है l हम उनको आशीष के श्रोत के पास लाकर उन्हें आशीषित करते हैं l मलिकिसिदक ने अब्राम को यह कहकर आशीषित किया, “परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, तू धन्य हो” (पद. 19) l

हम दूसरों के संग प्रार्थना करके उनको आशीषित करते हैं; हम उनको ज़रूरत के समय अनुग्रह के सिंहासन तक ले जाकर सहायता दे सकते हैं (इब्रा. 4:16) l हम शायद उनकी परिस्थिति न बदल सकें, किन्तु उनका परिचय परमेश्वर से करा सकते हैं l एक सच्चा मित्र ऐसा ही करता है l