कार पर लगे परमेश्वर विरोधी स्टिकर्स ने विश्विविद्यालय व्याख्याता का ध्यान अपनी ओर खींचा l पूर्व में खुद एक नास्तिक, उसने सोचा कि शायद कार-मालिक विश्वासियों को क्रोध दिला रहा था l “क्रोध नास्तिक को अपनी नास्तिकता प्रमाणित करने में मदद करता है,” उसने समझाया l तब उसने चिताया, “अक्सर, नास्तिक अपनी इच्छा पा लेता है l”
अपनी विश्वास यात्रा में, उसने एक मसीही मित्र की दिलचस्पी याद की जिसने उसे मसीह की सच्चाई बतायी l उसके मित्र के “आग्रह भाव में क्रोध नहीं था l” वह उस दिन प्राप्त वास्तविक आदर और शिष्टता भूल नहीं सकता l
विश्वासी दूसरों द्वारा मसीह के अपमान को अनादर मानते हैं l किन्तु यीशु को वह इन्कार कैसा लगता है? यीशु ने हमेशा धमकियां, और घृणा सही, किन्तु अपने ईश्वरत्व पर शक नहीं किया l एक बार, एक गाँव के इन्कार करने पर, याकूब और यूहन्ना ने तुरंत विरोध किया, “हे प्रभु, क्या … हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?” (लूका 9:54) l यीशु ने “फिरकर उन्हें डांटा” (पद.5) l आखिरकार, “परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा कि जगत पर दंड की आज्ञा दे, परन्तु … जगत उसके द्वारा उद्धार पाए” (यूहन्ना 3:17) l
हम चकित होंगे कि परमेश्वर नहीं चाहता हम उसका बचाव करें l उसकी इच्छा है कि हम उसके प्रतीक बनें! इसमें समय, मेहनत, संयम, और प्रेम ज़रूरी है l
यीशु का बचाव करने का सर्वोत्तम तरीका उसके समान जीवन बिताना है l