शब्द दुष्क्रियात्मक अक्सर व्यक्तियों, परिवारों, संबंधों, संस्थाओं, और सरकारों को परिभाषित करने में उपयोग होता है l जबकि क्रियात्मक का अर्थ है, उचित क्रियाशील व्यवस्था में होना, दुष्क्रियात्मक इसका विपरीत है-टूटा हुआ, ठीक से कार्य नहीं कर रहा, अपने बनाए जाने के मकसद को पूरा नहीं कर रहा l
रोमियों की अपनी पत्री में पौलुस आत्मिक दुष्क्रियात्मक मानवता का वर्णन करना आरम्भ करता है (1:18-32) l हम सब उस विद्रोही समूह के हैं : “सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए हैं; कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं … इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं” (3:12,23) l
सुसमाचार है कि “[सब] उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं … जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है” (पद.24-25) l जब हम अपने जीवनों में मसीह को आमंत्रित करके परमेश्वर की क्षमा और नए जीवन की पेशकश स्वीकारते हैं, हम उसकी इच्छानुकूल व्यक्ति बनते हैं l हम तुरंत सिद्ध नहीं बनते, किन्तु अब हमें टूटा और दुष्क्रियात्मक रहने की ज़रूरत नहीं l
हम परमेश्वर के आदर हेतु अपने वचन और कार्य में पवित्र आत्मा द्वारा दैनिक सामर्थ्य पाते हैं और “पुराने मनुष्यत्व [को] उतारकर … नए मनुष्यत्व को पहिन [लेते हैं] जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है” (इफि. 4:22-24) l
मसीह के निकट आने से उसके इच्छानुरूप जीवन जीने में मदद मिलती है l